Sunday 14 June 2015

___विगलित मन___


उतराते-डूबते हैं काल के प्रवाह में,
तैरने चले थे हम मन के उछाह में;
जीना नहीं सीख सके मरने से डरते हैं,
मुक्त हो नहीं पाते रोज़-रोज़ मरते हैं. 

जो कुछ भी बीत चुका जो कुछ भी रीत चुका,
उसकी परवाह अभी भी हम क्यों करते हैं;
क्या-क्या है बचा अभी कितनी उमंग है,
जीवन की धारा में कितनी तरंग है.

सोचें फिर एक बार थम कर कर लें विचार,
जारी है जीवन का भीषण रण दुर्निवार;
हो चुका शरीर गलित मन है आहत-विगलित,
फिर भी हम एक बार ख़ुद को निहार लें.

अब भी जो बची उसी शक्ति को समेट कर,
एक बार लोगों को ज़ोर से पुकार लें;
नन्हा-सा दीप एक छोटी-सी ज्वाला बन,
अन्धकार के विरुद्ध युद्ध में मशाल लें. – गिरिजेश (14.6.15.)
__________________________


क्रान्ति वर्ग-संघर्ष है.
क्रान्ति बच्चों का खेल नहीं है.
क्रान्ति आर-पार का संग्राम है.
सबसे विकसित दिमाग अपनी समूची कूबत लगा कर इसके लिये प्रयास करते हैं.
सबसे विकसित दिमाग अपनी समूची कूबत लगा कर इसका विरोध-अवरोध करते हैं.
सब कुछ दाँव पर लगा कर एक क्रान्तिकारी जूझने का संकल्प लेता है.
सब कुछ पीछे छोड़ कर एक क्रान्तिकारी विनम्रता के साथ आत्माहुति देने के लिये आगे बढ़ता है.
विनम्रता और दृढ़ता दोनों ही एक क्रान्तिकारी के सद्गुण हैं.
उद्दंडता और दम्भ दोनों ही एक क्रान्तिकारी के दुर्गुण हैं.

No comments:

Post a Comment