Monday 8 June 2015

____ विचारणीय क्रान्तिकारी गतिविधि ___

प्रिय मित्र, इधर मुझे जगह-जगह से एक विशेष खबर मिल रही है.
दो नौजवान "hole-timer" क्रान्तिकारी आज-कल आज़मगढ़ सहित पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में एक विशेष प्रचार अभियान को अपना एकमात्र कार्यभार बना कर सक्रिय हैं.
वे हर उस आम-ओ-खास से मुलाकात करते जा रहे हैं, जिसको मेरे बारे में कुछ भी जानकारी है.
हर मुलाकात में उनके पास एक ही रिपोर्ट होती है.
वह रिपोर्ट उनकी आँखों देखी नहीं होती.
वह उनके लिये अपने उस खास लीडर से सुनी-सुनाई कहानी ही होती है, जिसके बारे में लोग बताते हैं कि वह सात समुन्दर पार से अपनी हर कठपुतली को हिलाता रहता है.
हर मुलाकाती से वे एक ही स्वर में अपना टेप चलाते जा रहे हैं.
उनके व्याख्यान के बीच-बीच में 'लेनिन ने कहा...' और 'माओ ने कहा...' वाले जुमले ज़रूर और अनिवार्य रूप से निकलते रहते हैं.
उनका मकसद लेनिन और माओ के कहने का प्रचार करने की तुलना में सामने वाले पर अपने 'hole-timer होने के अहंकार और अपनी किताबी विद्वत्ता का रुआब ग़ालिब करना होता है.
वे ऐसे हर मुलाकाती से ज़ोरदार गालियों से अलंकृत अपने प्रवचन में बताते जा रहे हैं कि मैं यानि गिरिजेश तिवारी कितना यौन-कुण्ठित, लालची, स्वार्थी और गया-गुज़रा इन्सान हूँ.
और जब कभी कोई मुलाकाती उनसे पूछ बैठता है कि लेनिन और माओ ने जो कहा और जिसके लिये कहा, उसके अलावा क्या आपका ख़ुद का भी कुछ कहना है, तो उनकी बोलती पर थोड़ी देर के लिये ढक्कन लग जाता है.
मैं उनके इस क्रान्तिकारी-प्रचार-अभियान की सफलता की तह-ए-दिल से कामना करता हूँ.
मैंने जीवन भर इन्सानों के बच्चों के बीच से गढ़-गढ़ कर एक से बढ़ कर एक 'शेर' ही बनाये, अपने निकट आने वाले हर किशोर-किशोरी और तरुण-तरुणी को मैं 'शेर' ही बनाता रहा हूँ, और अभी भी हर दिन ऐसे हर युवा को 'शेर' ही बना रहा हूँ.
मगर इस समय काल-प्रवाह की ऐसी त्रासदी है कि मेरे कुछ 'शेर-बच्चों' को ये ख़ूनी भेड़िये उठा ले जा रहे हैं और भेड़ियों की जमात में जाने के बाद देखी-देखा अपनी मासूमियत में उनके मुँह से भी 'शेर की दहाड़' की जगह 'भेड़ियों की गुर्राहट' निकलती सुनी जा रही है.
मैं उस दिन की भी प्रतीक्षा पूरे धैर्य के साथ कर रहा हूँ, जब इन ख़ूनी भेड़ियों की असलियत उनके अपने ख़ुद के अनुभव का सच्चा हिस्सा होगी.
और तब वे ख़ुद को ही नहीं, बल्कि भेड़ियों के झुण्ड में फँसे दूसरे सभी 'शेर-बच्चों' को भी इन भेड़ियों के चंगुल से आज़ाद करेंगे.
और फिर वे उन सब के साथ मिल कर असली वाली शेर की दहाड़ में बोलेंगे.
और तब समूचा जंगल उनकी उस दहाड़ की प्रतिध्वनि से थर्रा जायेगा और उसकी गूँज से सनसना उठेगा.
अभी भी ऐसे तरह-तरह के भेड़ियों के ख़ूनी गिरोहों से दम भर जूझने वाले 'शेर-दिल जियालों' की गिनती कम नहीं है.
सृजन ही मेरा संकल्प है.
अपनी आख़िरी साँस तक 'शेर-बच्चों' की गिनती बढ़ाते चले जाना ही मेरी ज़िन्दगी का एक मात्र उद्देश्य है.
इन्कलाब ज़िन्दाबाद !
उकसावेबाज़ मुर्दाबाद !!
ढेर सारे प्यार के साथ — आपका गिरिजेश (5.6.15.)

1 comment:

  1. Girijesh Tiwari ... "आप तो नौजवान हैं ! ....
    फिर क्यों इतना परेशान हैं ?"

    Saurav Sharma jai hind sir

    Saurav Sharma jo log khud sirf khud ke liye hi jite h vo chahe nojvan ho ya bajurg pareshan hi rahenge or dusro ko bhi pareshan karengd

    Susmita Rai when cowards cannot defeat you by wisdom and truth (which they don't have) , they take help of this cowardice act. Nothing to worry sir. What you have contributed to indian society , will go long way. These are small hurdles in that way.

    Amit Azamgarh
    गिजियावन तिवारी का व्यक्तित्व निर्माण यानि व्यक्तित्व विनाश परियोजना-

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