Friday 19 June 2015

— : पेड़ और आदमी : —



फलदार पेड़ ढेला खाता है और फल देता है.
पेड़ ही बनना है, तो फलदार पेड़ बने.
लाख ढेला खाये, फिर भी फल देता जाये.

जब फल देने लायक नहीं बचे,
तो निझार हो उकठ जाना
और फिर ठूँठ बन जाना बेहतर है.
या फिर शानदार शाह बलूत बने,
ताकि पुनुई अकासे जाये और सोर पताले.
पहाड़ी तूफ़ान का शान से सामना करे.

बेहया का पेड़ होना ठीक नहीं.
बेहया तो बेहया है.
बेहया ग़ड़ही के बगल में उगता है.
बेहया आसानी से पानी पा जाता है.
बेहया आसानी से खाना पा जाता है.
बेहया किसी काम का नहीं है.
बेहया को कोई नहीं पूछता.

पेड़ है, तो जीवन है.
पेड़ है, तो आदमी है.
जब आदमी नहीं था, तब भी पेड़ था.
पेड़ आदमी की ज़रूरत है.
आदमी पेड़ लगाता है.
आदमी पेड़ उगाता है.

पेड़ पेड़ है और आदमी आदमी.
पेड़ से पाने के चक्कर में आदमी जुगाड़ लगाता है.
आदमी पेड़ से बहुत कुछ लेता है.
आदमी ढेला मारता है.
पेड़ फल देता है.

पेड़ सूख जाता है.
आदमी पेड़ काटता है.
पेड़ सीधा हो, तो आरी चलती है.
पेड़ कटता जाता है और पटरा देता जाता है.
पटरे के साथ आदमी बुरादा भी पा जाता है.

पेड़ अँइठोर हो, तो टाँगी चलती है.
पेड़ फटता जाता है और चइला देता है.
चइला फटता है और चइली निकलती है.

मगर पेड़ गँठगर हो, तो चिम्मड़ होता है.
चिम्मड़ गाँठ पर टाँगी छटक जाती है.
चिम्मड़ गाँठ पर आरी मुरुक जाती है.
चिम्मड़ गाँठ पर केवल छिन्नी चलती है.
चिम्मड़ गाँठ में छिन्नी फँसा कर पच्चर लगता है.
छिन्नी और पच्चर पर हथौड़ा चलता है.

चिम्मड़ गाँठ आसानी से नहीं फटती.
चिम्मड़ गाँठ मुश्किल से फटती है.
चिम्मड़ गाँठ से न तो पटरा निकलता है और न चइला-चइली.
चिम्मड़ गाँठ फटती भी है, तो केवल चुन्नी निकलती है.
कभी-कभी चुन्नी छटक भी जाती है.
चुन्नी छटकती है, तो कभी-कभी आँख में घुस जाती है.
छटकने वाली चुन्नी से आँख फूट जाती है.

पेड़ को आदमी से ख़तरा होता है.
आदमी को पेड़ से कोई ख़तरा नहीं होता.
चिम्मड़ गाँठ बहुत ख़तरनाक होती है.
कोई-कोई आदमी भी चिम्मड़ होता है.
आदमी को चिम्मड़ गाँठ से सजग रहना चाहिए.
आदमी को चिम्मड़ आदमी से और भी सजग रहना चाहिए.
वरना....

ढेर सारे प्यार के साथ — गिरिजेश (11.6.15)

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