Saturday 1 March 2014

'आप' सरकार के त्यागपत्र के बारे में :


प्रिय मित्र, कल रात अरविन्द केजरीवाल ने जनलोकपाल के नाम पर अपनी सरकार का त्यागपत्र दे दिया. आज अभी कई मित्रों की पोस्ट्स पढ़ने को मिलीं. उनके इस कदम की आप सभी की भर्त्सना उचित है. 

मगर एक बार रुक कर हमें यह सोचना चाहिए कि इस कदम के पीछे उनका क्या गणित है. मुझे याद है जब केजरीवाल ने पार्टी बनाने की घोषणा की थी, तो हम सब को अन्ना उनसे बेहतर दिखाई दे रहे थे. क्योंकि अन्ना सत्ता से दूर रह कर आन्दोलन के द्वारा सत्ता पर अंकुश लगाने के पक्ष में थे. वक्त ने अन्ना को वहाँ पहुँचा दिया, जहाँ उनके जाने की हमने कल्पना भी नहीं की थी. 

और उसी वक्त ने केजरीवाल की पार्टी को उस मरहले तक पहुँचाया कि हमारे अनेक वामपन्थी, समाजवादी और क्रान्तिकारी साथी उसमें जा चुके हैं. और अभी भी अनेक ऐसे लोग या तो ख़ुद वहाँ जाने के बारे में विचार करने या अपने मित्रों को वहाँ चले जाने की सलाह देने में लगे हैं.

हम सब को अच्छी तरह से पता है कि देश में पूँजीवादी जनतन्त्र है और केवल संसदीय पथ पर चल कर समाजवादी जनतन्त्र की मंजिल तक नहीं जाया जा सकता.

अरविन्द केजरीवाल को क्रान्ति के पैमाने पर तोलने की चूक करना वस्तुगत होना नहीं है. उनको और उनकी पार्टी को उनकी वर्गीय पृष्ठभूमि के धरातल पर ही तोलना उचित होगा. 

केजरीवाल को क्रान्ति नहीं करनी है. उनका सपना भ्रष्टाचार मुक्त पूँजीवादी व्यवस्था है. और उनको संसदीय पथ पर ही आगे बढ़ना है. पिछले चुनाव के परिणाम ने उनकी पहल की लोकप्रियता हम सब के सामने ला दी है. अगला चुनाव आसन्न है. केवल दिल्ली ही नहीं अपितु देश के अन्य भागों में भी उनकी पार्टी सक्रिय है. और उनकी नज़र अगले चुनाव पर लगी है.

पिछले चुनाव के परिणाम से उनके लोगों में आत्मविश्वास भी बढ़ा है और लोगों का उनकी पार्टी पर भरोसा भी. आज जन-सामान्य के बीच चर्चा उनके पक्ष में गरम है. निश्चय ही अगले चुनाव में कांग्रेस और मोदी गिरोह के बीच की टक्कर का परिणाम 'आप' के बीच में कूद पड़ने पर अब वह तो नहीं ही होगा, जिसकी कल्पना चुनावी गणित की भविष्यवाणी करने वाले इसके पहले तक किया करते थे. मोदी गिरोह को जो बढ़त मिलनी थी, वह भी प्रभावित होने जा रही है और कांग्रेस के पाले में गिरने वाले वोटों की गिनती भी प्रभावित होनी ही है. 

ऐसे में संसद में अरविन्द केजरीवाल का स्वर और भी प्रभावी होने जा रहा है. क्योंकि 'आप' को अगले चुनाव में निश्चय ही बेहतर नतीज़े दिख रहे हैं. और अगर दिल्ली विधान-सभा का दुबारा चुनाव हुआ, और वह अभी नहीं तो कभी तो होगा ही, तो 'आप' को पूर्ण बहुमत भी इस बार अवश्य ही मिलेगा. 

अब इस जनविरोधी पूँजीवादी व्यवस्था की सीमाओं में इससे अधिक सुधार के प्रयास कर पाना सम्भव है ही नहीं. इसे लोग भी जानते हैं और हम भी. परन्तु इसी 'लोकतन्त्र' में अभी भी देश की जनता की आस्था पूर्ववत बनी हुई है. लोग राहत देने के लिये अरविन्द केजरीवाल द्वारा किये गये इतने भी प्रयास से पुलकित हैं. उनको अरविन्द केजरीवाल की सीमाएँ नहीं दिख रही हैं. इसके उलट उनको अरविन्द केजरीवाल ही राहत दे सकने वाले 'देवदूत' प्रतीत हो रहे हैं. ऐसे में लोगों के बीच बन चुकी अपनी छवि का अधिकतम लाभ उनको और उनकी पार्टी को अवश्य ही मिलेगा. और तन्त्र अब और भी सुरक्षित और समर्थ होकर जन-सामान्य की 'बेहतर सेवा' कर सकेगा. यही अरविन्द केजरीवाल का भी सपना है और जन-सामान्य भी अभी यही सपना देख रहा है.

ऐसे में हमें अपनी आलोचना के शब्दों को लोगों के दिमाग तक पहुँचा सकने लायक और भी तर्कपरक और धारदार बनाना होगा. उनको यह समझाने का प्रयास करना होगा कि आकर्षक और सुन्दर लगने वाला जनलोकपाल और राहत देने वाले अरविन्द केजरीवाल भी इसी व्यवस्था को बनाये रखना चाहते हैं. इसे बदलना नहीं. वे पूँजी की ऑक्टोपसी जकड़ से श्रमिक वर्ग को मुक्त करने में नितान्त असमर्थ हैं. मेरा तो यही आकलन है कि इतिहास के इस मोड़ पर भी एक बार फिर से इस देश का शोषक-शासक वर्ग अपनी डुगडुगी बजा कर जन-सामान्य को सम्मोहित कर ले जा रहा है. 

सोचना हमें ही है कि ऐसे में भी हम क्या केवल वर्तमान की त्रासदी में उलझे क्रान्तिकारी आन्दोलन की यथास्थिति की जड़ता को तोड़ने के लिये पहल ले सकेंगे या अभी भी इस विसंगति में अपनी पूर्ववत जड़ता और आत्म-मुग्धता के शिकार बने रहेंगे. हमें पता है कि श्रमिक वर्ग को पूरी मुक्ति केवल शहीद-ए-आज़म भगत सिंह की जन-क्रान्ति के माध्यम से ही मिलनी है. और हम सब को उसकी ही तैयारी के क्रम में सभी जनपक्षधर स्वरों के बीच 'शोषण-उत्पीड़न-साम्प्रदायिक नफ़रत के विरुद्ध क्रान्तिकारी एकजुटता' के लिये अपने प्रयास को अब तो और भी तेज कर ही देना है. 
ढेर सारे प्यार के साथ - आपका गिरिजेश

No comments:

Post a Comment