Saturday 1 March 2014

और 'जंग' जारी रहेगी...


आज विवेकानन्द का चित्र देखा. 
अपने बैच में 'राहुल सांकृत्यायन जन इण्टर कॉलेज' की 'सपाट प्रतियोगिता' में विवेकानन्द ने "नौ सौ पचपन" (955) सपाट खींच कर रिकॉर्ड बनाया था. 
विवेकानन्द जैसे युवक जहाँ भी रहेंगे, मुझे उनकी प्रतिभा और कृतित्व पर जीवन भर गर्व रहेगा.
तब वहाँ तरह-तरह की प्रतियोगिताएँ होती थीं.
तब छात्रों-छात्राओं को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से लैस किया जाता था.
अब इस वर्ष छात्रों के विदाई-समारोह के नाम पर 'रामचरित मानस' के 'सुन्दर काण्ड' का पाठ किया गया.
जीवन का सत्य कल्पना से भी विचित्र होता है.
अगर 'आज' 'कल' जैसा नहीं है, तो 'कल' भी 'आज' जैसा ही निश्चित नहीं होगा.
मुझे 'कल' को 'आज' से बेहतर बनाने के लिये जूझने पर भरोसा है.
और अपनी कूबत भर इसी के लिये गिरता-पड़ता, ढहता-ढमिलाता, टूटता-दरकता, हारता-भागता, सोचता-विचारता जूझता चला जा रहा हूँ.
'कल' जो साथ थे, 'आज' दूर हैं.
'आज' जो साथ हैं, शायद उनमें से भी 'कल' कुछ दूर चले ही जायेंगे.
मगर 'कल' निश्चय ही कुछ और ही सही साथ तो होंगे ही.
और हमारी 'जंग' जारी रहेगी.

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