Saturday 8 March 2014

कॉमरेड स्टालिन के सवाल पर :


कॉमरेड स्टालिन के बारे में मेरा स्टैंड एक दम दो-टूक है. मैं समझता हूँ कि यह स्टालिन ही थे, जिनके दम बूते पर लेनिन और क्रुप्स्काया विदेश में बैठ कर सोवियत क्रांति के पहले लिख सके थे. यह स्टालिन ही थे, जिनके नेतृत्व में सोवियत क्रान्ति शानदार तरीके से परवान चढी और उस की धार बनी रही. यह स्टालिन ही थे, जिन्होंने लेनिन के जीवन में उनके कन्धे से कन्धा मिला कर और उनके अवसान के बाद भी प्रतिक्रान्ति के हमलों से क्रान्ति की वैचारिक और ज़मीनी हिफाज़त की. यह स्टालिन ही थे, जिन्होंने हिटलर को परास्त करके अपने ही बंकर में आत्महत्या करने तक पहुँचाने वाली सोवियत फौजों का ज़बरदस्त और शानदार नेतृत्व किया. ये सभी उनके पॉजिटिव थे. 

आप उनकी जगह ख़ुद को खड़ा कर के देखिये तो समझ में आयेगा कि उन परिस्थितियों में उनके सारे ही निर्णय सही थे. स्वायत्तता तक राष्ट्रीयताओं के आत्मनिर्णय के और भाषा के सवाल पर उनकी ही प्रस्थापनाओं को लेनिन ने भी स्वीकार किया था. मेरी दृष्टि में केवल एक असफलता उनकी रही और वह उनकी जगह किसी से भी होती, माओ से भी हुई ही. वह थी उनके बाद ख्रुश्चोव का उत्कर्ष और पूँजीवाद की पुनर्स्थापना, जो किसी भी तरीके से रोके नहीं रुकी. आज मार्क्सवाद के सामने और विश्व-क्रान्ति के सामने माओ के सांस्कृतिक क्रान्ति के सूत्र को समाजवादी जनतन्त्र में और भी प्रभावशाली तरीके से लागू करने का प्रश्न युगजन्य दायित्व है. 

मैं तो यह मानता हूँ कि पूरी मानवता के इतिहास में तीन सबसे अधिक सख्त इन्सान उभरे. स्पार्टकस, रोबेस्पियरे और स्टालिन. और मैं घोषित तौर पर स्टालिन को विश्व-क्रान्ति के चौथे सबसे बड़े नेता के रूप में स्वीकारता हूँ. विश्व-स्तरीय किसी भी व्यक्तित्व का मूल्यांकन सभी लोग करते ही हैं. परन्तु किसी के भी बारे में कोई भी कुछ भी कहे, उसके पहले ख़ुद को उसकी जगह खड़ा करके देख लेना चाहिए कि अगर वह उन परिस्थितियों के बीच रहता, तो क्या निर्णय लेता. 

और तब कम से कम मैं मानता हूँ कि स्टालिन के पास सख्त होने के अलावा कोई और विकल्प नहीं हो सकता था. मैं विनम्रता को मनुष्य के सबसे अच्छे गुणों में से मानता हूँ. परन्तु दृढ़ता के साथ जुड़ी विनम्रता को ही. और स्टालिन दृढ़ता के साथ निर्णय ले सकने वाले क्रान्तिकारी नेता थे. वह वर्गयुद्ध लड़ रहे थे. उनके कन्धों पर धरती के एकमात्र सर्वहारा सत्ता के अस्तित्व को बचाने का और आगे विकसित करने का दायित्व था. और युद्ध की अपनी शर्तें होती हैं. उनको वह सब कुछ करना ही पडा, जो उन्होंने किया. प्रतिक्रान्तिकारी प्रतिपक्ष भी लगातार उनके लिये फूल नहीं बरसा रहा था, न तो उनके जीवित रहते और न ही उनके निधन के बाद. मेरी समझ है कि अगर स्टालिन और माओ को गलत कहा जायेगा, तो ख्रुश्चोव और देंग सियाओ पिंग को सही कहना होगा. और यह मूलभूत गलती मार्क्सवाद से ही विचलन हो जायेगी.

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