Monday 24 September 2012

साहिर लुधियावानी की कलम से -


प्रेम के प्रतीक ताजमहल की प्रशंसा में अनेक रचनाएँ हैं. 
मगर साहिर का ताज वर्गीय शोषण से तीखी नफ़रत करने वाली विद्रोही चेतना के विरोध का एकमात्र स्वर होने के नाते मुझे सबसे अधिक प्रिय है.


ताजमहल - साहिर लुधियानवी


ताज तेरे लिये इक मज़हर-ए-उल्फ़त ही सही 
तुझको इस वादी-ए-रंगीं से अक़ीदत ही सही

मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझ से! 

बज़्म-ए-शाही में ग़रीबों का गुज़र क्या मानी 
सब्त जिस राह में हों सतवत-ए-शाही के निशाँ 
उस पे उल्फ़त भरी रूहों का सफ़र क्या मानी 

मेरी महबूब! पस-ए-पर्दा-ए-तशहीर-ए-वफ़ा
तू ने सतवत के निशानों को तो देखा होता 
मुर्दा शाहों के मक़ाबिर से बहलने वाली 
अपने तारीक मकानों को तो देखा होता

अनगिनत लोगों ने दुनिया में मुहब्बत की है 
कौन कहता है कि सादिक़ न थे जज़्बे उनके 
लेकिन उन के लिये तशहीर का सामान नहीं 
क्योंकि वो लोग भी अपनी ही तरह मुफ़लिस थे 

ये इमारात-ओ-मक़ाबिर, ये फ़सीलें,ये हिसार
मुतल-क़ुलहुक्म शहंशाहों की अज़मत के सुतूँ 
सीना-ए-दहर के नासूर हैं, कुहना नासूर
जज़्ब है जिसमें तेरे और मेरे अजदाद का ख़ूँ 

मेरी महबूब ! उन्हें भी तो मुहब्बत होगी 
जिनकी सन्नाई ने बख़्शी है इसे शक्ल-ए-जमील
उन के प्यारों के मक़ाबिर रहे बेनाम-ओ-नमूद
आज तक उन पे जलाई न किसी ने क़ंदील

ये चमनज़ार ये जमुना का किनारा ये महल 
ये मुनक़्क़श दर-ओ-दीवार, ये महराब ये ताक़ 
इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले कर 
हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़

मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझ से! 

शब्दार्थ: मज़हर-ए-उल्फ़त = प्रेम का द्योतक, वादी-ए-रंगीं = रमणीय स्थान, अक़ीदत = श्रद्धा, बज़्म-ए-शाही = बादशाहों के दरबार, सब्त = अंकित, सतवत-ए-शाही = राजसी वैभव, पस-ए-पर्दा-ए-तशहीर-ए-वफ़ा = प्रेम के विज्ञापन के परदे के पीछे, सतवत = राजसी वैभव, मक़ाबिर = मक़बरों, तारीक = अंधेरे, सादिक़ = पवित्र, तशहीर = विज्ञापन, मुफ़लिस = निर्धन, इमारात-ओ-मक़ाबिर = भवन और मक़बरे, फ़सीलें = परिकोटे, हिसार = क़िले, मुतल-क़ुलहुक्म = आदेश देने में स्वतन्त्र, अज़मत के सुतूँ = वैभव के खम्भे, सीना-ए-दहर = संसार के वक्षस्थल के, कुहना = पुराने, जज़्ब = समाया हुआ है, अजदाद = पूर्वजों, सन्नाई = कारीगरी, बख़्शी = प्रदान की है, शक्ल-ए-जमील = सुन्दर रूप, बेनाम-ओ-नमूद = अनाम और बिना निशान के, क़ंदील = मोमबती, चमनज़ार = उद्यान, मुनक़्क़श = नक़्क़ाशी किए हुए, (साभार कविताकोश)

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