Saturday 28 September 2013

क्या अल्लाह ग़रीब-परवर है ? - गिरिजेश





प्रिय मित्र, अगर सभी धर्मानुयायियों की तरह ही आप भी कहते हैं कि अल्लाह ग़रीब-परवर है. वह सब का मुसीबत में मददगार है. वह ज़ालिमों को पसन्द नहीं करता. मगर तब ऐसा क्यों है कि सारे के सारे ज़ालिम केवल अल्लाह के नाम पर ही ज़ुल्म करते रहते हैं... मजहब कोई भी हो, ऊपर वाले का नाम लेकर ही मुट्ठी भर नीचे वाले अपने जैसे और अपनी ही नस्ल के सभी इन्सानों को बार-बार अपने मजहबी जुनून का शिकार बनाते रहते हैं. 

धरती पर किसी भी दूसरे जीवधारी ने अपनी नस्ल के दूसरे जीवधारियों के साथ कभी भी इतना बुरा सुलूक नहीं किया, जितना एक इंसान दूसरे इंसान के साथ पीढ़ी-दर-पीढ़ी हज़ारों वर्षों से लगातार करता चला आ रहा है. 

वह कैसा सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी अल्लाह है ? वह क्यों हर बार इस तरह के नाकाबिल-ए-बरदाश्त ज़ुल्म को चुपचाप बरदाश्त ही करता रहता है ! और वह क्यों मानवता के पूरे इतिहास में किसी भी मामले में किन्हीं भी ज़ालिमों का कभी भी कुछ भी नहीं बिगाड़ पाया ? 

जब कभी भी ज़ुल्म को माकूल जवाब मिला है, तो यह तथाकथित सर्वशक्तिमान ख़ुदा के कहर के चलते नहीं मिल सका है. हर बार ज़ुल्म के हद से गुज़र जाने के बाद केवल और केवल उसके खिलाफ़ प्रतिरोध की आवाज़ बुलन्द करने वाले और मर-मिटने पर आमादा हो कर हथियार उठा कर प्रतिशोध लेने वाले दिलेर विद्रोहियों के तेवर के चलते जालिमों को मटियामेट होना पड़ा है.

सवाल उठता है कि दरअसल क्या उसका वज़ूद है भी ?
इस सवाल का ज़वाब खोजने वाले दिमागों में से अनेक ने उसके न होने के ही बारे में बताया है. 
इसीलिये शहीद-ए-आज़म भगत सिंह ने कहा था - "मैं नास्तिक क्यों हूँ!" 
राहुल सांकृत्यायन ने कहा - "तुम्हारी क्षय हो!". 

धरम-करम, अल्लाह-ईश्वर, स्वर्ग-नरक, भूत-प्रेत, पूजा-पाठ, तीरथ-बरत - सब के सब केवल ढोंग हैं, भ्रम हैं, अन्धविश्वास हैं, सब के सब पूरी तरह से अतार्किक हैं और केवल कोरी गप हैं. 

मजहब और उससे जुड़ी सारी कल्पनाएँ इन्सान के दिमाग की पैदाइश हैं. वे सभी मुट्ठी भर मक्कार इन्सानों द्वारा सभी मासूम इन्सानों को बेवकूफ बनाने और लूटने के हथियार भर हैं.

हर धरम का नाश हो ! 
इन्सानियत ज़िन्दाबाद !!
अन्ध-विश्वास मुर्दाबाद !!!
वैज्ञानिक दृष्टिकोण ज़िन्दाबाद !!!!

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