Thursday 26 September 2013

मैं क्यों लिखता हूँ ! - गिरिजेश



प्रिय मित्र,
कई बार मेरे मित्र मुझसे पूछते हैं -
"मैं जैसा लिखता हूँ, वैसा क्यों लिखता हूँ?"
आपमें से कुछ मेरे लेखन को पसन्द करते हैं और प्रशंसा भी करते हैं. कुछ उसे शेयर भी करते हैं. मगर कुछ मित्रों के दिल को मेरी कलम की तीख़ी धार चीर जाती है और उनको दुःख होता है कि मैंने ऐसा क्यों लिख दिया! 

कुछ मुझे गालियाँ देते हैं, तो कुछ मेरे ऊपर इस या उस दल की राजनीति और विचारधारा कासमर्थक या विरोधी होने का आरोप लगाते हैं. कुछ को मैं मुस्लिम तुष्टीकरण करता लगता हूँ, तो कुछ को इस्लाम के मुखालिफ़ अकेले खड़े हो कर नक्कारखाने में तूती की आवाज़ बुलन्द करता दिखाई देता हूँ. कई बार मैं हिन्दुओं के नाम पर कलंक घोषित किया जाता हूँ, तो कई बार ब्राह्मणों के नाम पर कलंक. दलित मुझे ब्राह्मण मान कर गालियाँ देते हैं, तो सवर्ण और अन्ध हिन्दूवादी मेरे दिमाग में भरी गन्दगी के लिये मुझे कोसते हैं. कुछ को मेरे भारतीय होने पर ही सन्देह हो जाता है, तो कुछ मुझे रूस या चीन का प्रचारक समझते हैं. किसी भी पूर्वनिर्धारित अवस्थिति पर खड़ा जड़सूत्रता और पूर्वाग्रह से ग्रसित मन वाला हर एक इंसान मुझे अपने विरोधी के साथ खड़ा देखता है, अपने साथ नहीं. 

मेरे भी सामने यह प्रश्न खड़ा होता है कि मेरे बारे में ऐसा अनेक लोगों को क्यों लगता है? क्या मैं ज़िन्दगी में मिली असफलताओं से घबरा कर पलायन करके अपने कमरे में कैद हो गया हूँ? क्या फेसबुक मेरे लिये भी अनेक दूसरे लोगों की तरह टाइम-पास करने का ज़रिया भर है? क्या मैं फेसबुक पर लोकप्रियता हासिल करने के चक्कर में रहता हूँ? क्या मैं केवल एक खाली दिमाग शैतान का घर हूँ? क्या मैं अपने अकेलेपन को दूर करने के चक्कर में फेसबुक पर चिपका रहता हूँ? क्या मेरे अहंकार को लोगों का दिल दुखा कर सुकून मिलता है? क्या मैं परपीड़क मनोरोगी हूँ?

आखिर मैं क्यों लिखता हूँ?
मेरी समझ है कि मैंने अपनी अब तक की पूरी ज़िन्दगी पूरे ईमान से शोषित-पीड़ित इन्सानियत की ख़िदमत में विनम्रतापूर्वक जिया है. आगे भी मेरा इरादा इसी रास्ते पर चलते जाने का है. इसमें मेरा दम्भ नहीं है. यह मेरा अपना देश है. यह मेरा अपना समाज है. आप सभी मेरे अपने हैं - मित्र है. इस समाज ने ही मुझे हर तरह से मदद दिया है. मेरे मित्रों ने ही मेरे सपनों को पंख दिये हैं. उन्होंने ही मेरी रचना-कल्पना को रूपायित करने के लिये मंच मुहैया किया है. मुझे इसी समाज से अपनी समझ भी मिली है. मेरी विचारधारा भी इस समाज की ही उपज है. समूची मानवता की विरासत मेरी अपनी है. मुझे अपने ज़िद्दी पुरखों की सूझ-बूझ और बहादुरी पर गर्व है. मैं उनकी तरह ही जूझना चाहता हूँ.

मैं अपने देश को, अपने लोगों को, अपनी दुनिया को तह-ए-दिल से प्यार करता हूँ. उनकी तरह-तरह की सीमाएँ मुझे अपनी लगती हैं. उनकी सभी विकृतियों में मैं ख़ुद की कमियों को टटोल पाता हूँ. मैं इस समाज को और बेहतर और सुन्दर बनाना चाहता हूँ. मैं इसके एक-एक अवरोध को पूरी निर्ममता के साथ पूरी तरह से दूर करना चाहता हूँ. मैं सारी समस्याओं का समाधान करना चाहता हूँ. 

मगर सामाजिक समस्याओं का वैयक्तिक समाधान होता ही नहीं. उनका तो केवल सामूहिक प्रयास से ही निराकरण किया जा सकता है. और सामूहिक प्रयास के लिये वैचारिक सहमति का माहौल पैदा करना ज़रूरी है. सामूहिक शक्ति को समेकित करने के लिये सभी वर्ग-बन्धुओं के बीच के मनोमालिन्य को दूर करना ज़रूरी है. सभी जनपक्षधर शक्तियों के प्रतिवाद के स्वर को सशक्त करने के लिये सभी मित्रों के साथ न्यूनतम बिन्दुओं पर एकजुटता की ज़मीन तैयार करना ज़रूरी है. 

ऐसे में मैं हर उस कमी के खिलाफ़ कलम चलाने की कोशिश करता हूँ, जो मानवता की प्रगति में बाधक प्रतीत होती है. मैं ऐसे हर विचार का विरोध करता हूँ, जो जन-सामान्य को तकलीफ़ देता है. मैं ऐसे हर कृत्य की भर्त्सना करता हूँ, जो मानवता को कलंकित करता है. मैं ऐसे हर षड्यंत्र का पर्दाफाश करता हूँ, जो मासूम जनगण को छलने की मंशा से मक्कार शासक वर्गों द्वारा लगातार किया जा रहा है. मैं ऐसी हर अफ़वाह का विरोध करता हूँ, जो दोस्ती की जगह नफ़रत फैलाने की कुटिल मंशा से उड़ाई जाती है. मैं ऐसे हर अंधविश्वास का खण्डन करता हूँ, जो हमारी आँखों पर पट्टी बाँध कर हमें कूप-मण्डूक बना कर भाग्य और भगवान् के भरोसे रह कर ज़िन्दगी की जंग में हारते चले जाने पर हमारे दुखी मन को आहिस्ता-आहिस्ता सहलाता है और हमारे हौसले और ज़िद को तोड़ता है. मैं ऐसे हर तर्क का समर्थन करता हूँ, जो हमारे मनोबल को और सशक्त करता है. 

मैं वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तर्क-सम्मत आचरण से युवा पीढ़ी को लैस करने की कोशिश करता रहता हूँ. इसी कोशिश में मैं ज़मीन पर बोलता हूँ और फेसबुक पर लिखता हूँ. मेरी कामना है कि ज़िन्दगी भर मुझे जैसे छला गया, मुझे जैसे झेलना पड़ा, वैसे किसी और मासूम युवा को न झेलना पड़े. मैं चाहता हूँ कि मानवता की विकास-यात्रा में जिस मोड़ तक हमारे पुरखे हमें पहुँचा सके, हमारे बच्चे उससे एक क़दम और आगे बढ़ कर और भी बेहतर समाज की रचना करने में सफल हों. 

उनकी ज़िन्दगी और भी ख़ूबसूरत बन सके. वे और भी उन्नत मनोभूमि पर विकसित हो सकें. वे एक दूसरे के ख़िलाफ़ परस्पर नफ़रत का ज़हर न उगलें. वे अपने पूर्वाग्रहों से मुक्त हो सकें. और इस तरह तरह-तरह की तकलीफों से भरी ज़िन्दगी जीने के बजाय एक दूसरे के साथ प्यार, सहजता और सहयोग के साथ रह सकें. वे और भी खुश हो सकें. वे पूरी आन-बान-शान के साथ सिर उठा कर चल सकें. वे अपने ख़ुद के विचारों और आचरण पर गर्व कर सकें. वे मानसिक शान्ति और आत्मिक आनन्द के साथ जी सकें. वे शोषण-उत्पीड़न-नफ़रत से रहित समाज में सहज भाव से सुकून से जिन्दा रह सकें.

अपनी इस कोशिश में कई बार कटु सत्य कहने के लिये मैं बाध्य होता हूँ. और इससे जिन भी मित्रों को कष्ट पहुँचा देता हूँ. उन सब से मैं विनम्रतापूर्वक क्षमा-याचना करता हूँ. मेरा निवेदन है कि आप भी मेरी मंशा को महसूस करें और युवा-जागरण के इस विराट ऐतिहासिक दायित्व का सफलतापूर्वक निर्वाह करने में अपना सक्रिय योगदान दें.
ढेर सारे प्यार के साथ - आपका अपना गिरिजेश

15 comments:

  1. Ranjeet Bhangal - "आज अगर हम चाहते हैं। कि मानव सभ्यता आगे बढ़े और इसका वजूद कम से कम उतने ही और समय तक के लिए तो बना ही रहे जितना पुराना हम अपने इतिहास को जानते हैं
    तो यकीन मानिए हमें आप जैसे लोगों की सख्त जरूरत है
    Girijesh Tiwari sir ji!"

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  2. दिनेशराय द्विवेदी - तिवारी जी, "पूरी ज़िन्दगी पूरे ईमान से शोषित-पीड़ित इन्सानियत की ख़िदमत में विनम्रतापूर्वक जिया है." इस तरह के वाक्य क्या ये प्रदर्शित नहीं करते कि हम अभी भी अपने मन से मध्यवर्ग को पूरी तरह से त्याग नहीं सके। उजरती मजदूरों की जमात का पूरी तरह से हिस्सा नहीं बन पाए?"

    Girijesh Tiwari - मित्र, मैं आपसे सहमत हूँ. शब्दों की सीमा होती है. भाव और बोध के बीच अन्तर होता है. और वर्गीय पृष्ठभूमि से इतनी आसानी से पिण्ड नहीं छूटता. यह लम्बी साधना और मित्रों की कड़ी आलोचना के बिना मुमकिन नहीं होता.

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  3. Khan Fareed - "बहुत विख्यात नारा है । "आगे बढ़ो संघर्ष करो " बस इसी पर अमल करिए । आपके प्रयास सराहनीय हैं ।"

    Shamim Shaikh - "हर धर्म और मज़हब में फेसिस्ट विचार हैं,हर धर्म मज़हब के लोगों को अपने अंदर के फेसिस्ट तत्वों के विरुद्ध जागरूकता पैदा करना चाहिए, हर धर्म मज़हब में संकीर्ण और बेईमान सोच रखने वाले प्रगतिशील लोगों को गली देते हैं,लेकिन यही गाली खा कर भी उनसे संघर्ष करने वाले ईमानदार और सही लोग हैं."

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  4. Drss Yadav - "गिरिजेश जी
    मैं इसी आजमगढ़ का रहने वाला हूँ
    मैं आपकी भावनाओं को समझता हूँ , लेकिन आपकी आलोचना भी करता हूँ ।
    इसका एक कारण है , आप शोषित मानवता की बात तो करते है , लेकिन आपकी भाषा में सवर्ण होने का दंभ है ।"

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  5. Neeles Sharma - "ye post likhne ki jaroorat nahi thi, dil se aur majboot baniye fir aap khud dekhenge ki is post ki jaroorat nahi thi"

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  6. Ankur Rai - "Har acche kam ka virod hota .waise he aap k sath bhi ho rha . Aap is par dayan n dekar. Apne purpose par focus kriye . Hum aapke sath hai."

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  7. Sheshnath Rai - "साहब सवालिया निशान तो कविवर बच्चन जी पर भी उठे थे बिन पिए मधुशाला कैसे लिखा! परन्तु कवि लेखक समाज मेँ सुधार लाने मेँ अहम् भूमिका निभाते हैँ! बिन पिए नशा का और मधुशाला का वर्णन कर डाला! साहब भौकना कुत्तोँ की खानदानी परम्परा है।
    आप निरंतर कार्यरत् रहेँ हम आपके साथ हैँ"

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  8. Ranjeet Bhangal - "ये हम लोगों का फर्ज है sir ji!
    विरोधियों के पास जब कोई सशक्त जवाब नहीं होते तब वह व्यक्तिगत रूप से ते चोट करना शुरू कर देते हैं इनकी एसी करतूतों का जवाब भी हमें अपने इसी तार्किक तरीके से ही देना चाहिए।
    लगे रही�ए हम आपके साथ हैं ।"

    Jagmohan Lohian - "we are with you.....aap jaise sach bolne aur likhne wale hain hee kitne iss desh mein..!!!!!!"

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  9. R.s. Shrivastava Shrivastava - "आज समय आ गया है जब हमें वैचारिक जद्दोजहद के हथियार का ही उपयोग करना चाहीये जहा पर दुश्मन modernity -culture, human rights and democracy के मुद्दों पर हम जनपक्षधर बुधीजीयीओं को मुह की कहानी पडी है या हमको उनको शिकस्त दे दी है ..............इतना ही नहीं लोक जन या सर्वहारा वर्ग के अधिकायत लोगों के दिमाग में अपने पक्ष को रखते हुए उनको गुमराह करने में कामयाबी भी हाशिल कर ली है .................आगे होने वाली समग्र क्रांती वैचारिक क्रांती या वैचारिक आधार पर गैर जन पक्षधर -अलोक्त्रन्तिक -गैर सर्वहारा ताकतों को शिकस्त दिए विना संभव नहीं है : डॉ र.स. श्रीवास्तवा : srivasav_rs@yahoo.co.in : 9415108304:

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  10. Shail Tyagi Bezaar - 'ghalib' bura na maan jo waaiz bura kahe... aisa bhi hai koi sab achchha kahe'n jise...

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  11. Yadav Shambhu - "इस कलम की यह धार सदा ऐसी ही बनी रहे ...युवाओं में एक बैज्ञानिक और व्यापक लोकतांत्रिक समझ को विकसित करने में आपका योगदान बहुमुल्यवान है."

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  12. Faqir Jay - "एक और लोहा वाला आपके घर पैदा हुआ है -फ़क़ीर जय .लोहा साथ है मजबूती के लिए ."

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  13. Jamil Khan - "AP insaf pasand hei sach ko sach awor jhooth ko jhooth kahne ki himmat hei isi jajbe ke waje se ap hame bahut pasand hei"

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  14. Afroz Alam - "girjesh ji aap jase logo ki is jail aur andhviswasi smaj ke udhar keep liye zaroori hai"

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  15. आपका बिचार अतिउत्तम है.आवाम को उनके अधिकारों को प्रति जगाना और उन्हें संघर्ष के लिए प्रेरित करना शिक्षा और संस्कार का असली मकसद है.भूमि,नदी,जंगल एवं पहाड़ अकूत प्राकृतिक संसाधन पर कब्जा मुट्ठी भर पूंजिपत्तियों का है.आज का युवा वर्ग बेरोजगार एवं भूखा चौराहा पर खड़ा है जिसका मुख्य कारण है अपने अधिकारों के प्रति अन्नभिगता.पूंजीवादी शिक्षा एवं बिरासत में पाए संस्कार उन्हें मंदिर,मस्जिद,गिरजाघर,गुरुद्वारा की और धकेल दिया है जिसपर उन्हें कुछ प्राप्त करने का भारी आस्था है.आस्था और अंधविश्वास से ही वे कुछ प्राप्त करना चाहते है जो भटकाव है.कुसंसकार एवं कुशिक्षा उनके सोच को कुंद कर दिया है जो इस देश में गरीबी भुखमरी,भ्रष्टाचार अत्याचार एवं अन्याय की जड़ है.मौजूदा चालु शिक्षा हासिल कर लेने के बाद भी उन्हें नहीं मालुम पड़ता है की सरकार क्या है और उसका काम क्या है? हमारा देश इसी बिमारी से जूझ रहा है.

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