Monday 2 June 2014

आसन्न जन-ज्वार की तैयारी की गुहार !


हौसला बनाये रखिए, साथियो !
अभी जीवन के समुद्र में भाटा आया है.
ज्वार उसी के पीछे आने ही वाला है.
वक्त ठहरता नहीं है.
इतिहास आगे को ही बढ़ता है.
उसकी प्रतिगति होती ही नहीं.
उसकी केवल प्रगति ही होती है.

देखते-देखते अक्सर वह हो जाता है, जिसकी हमको कल्पना भी नहीं होती.
एक दिन लेनिन को रूसी क्रान्ति के हो जाने की कल्पना भी नहीं थी.
एक दिन नेहरू को देश के आज़ाद हो जाने की कल्पना भी नहीं थी.
जो अभी 16 मई को हुआ, वह भी 15 मई तक सबकी कल्पना से परे था.
ख़ुद शासक दल को भी ख़ुद पर भरोसा नहीं था.
दुनिया भर के चुनाव-विशेषज्ञों-विश्लेषकों को भी कल्पना नहीं थी.
सबके आकलन को धता बता कर भा.ज.पा. को पूर्ण बहुमत मिल गया.

भारत का 'पूँजीवादी जनतन्त्र' 16 मई को 'फ़ासिस्ट सत्ता' में बदल चुका.
वह भारत के समकालीन इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण काला शुक्रवार था.
पूँजीवादी संसद में पक्ष-विपक्ष दो होते हैं.

कल तक इस तन्त्र के सदन में विपक्ष था.
अभी विपक्ष पोलियो-ग्रस्त है.
यह तन्त्र विकलांग हो चुका.
सत्ता मनमानी करने की कूबत में है.
उसकी मनमानी के अनिवार्यतः जनविरोधी-राष्ट्रविरोधी परिणाम भी आयेंगे ही.

शोषण बढ़ेगा, उत्पीड़न बढ़ेगा, तो जनचेतना विकसित होगी ही.
जन का प्रतिवाद जन-प्रतिरोध में बदलेगा ही.
और तब जन-आन्दोलनों की कल्पनातीत लहरें एक के बाद एक लगातार लहराती हुई आती जायेंगी.
तब वह होगा, जिसके लिये पीढ़ियाँ धीरज से कुर्बानी देती हैं.
तब वह होगा, जिसकी प्रतीक्षा जनता दशकों तक करती है.
तब भारतीय इतिहास का अगला पन्ना मेहनतकश के खून-पसीने से लिखा जायेगा.
तब हमारे देश में वह इन्कलाब होगा, जैसा अभी तक कभी भी कहीं भी नहीं हुआ.

इतिहास की इस करवट में भविष्य की धमक सुनिए.
असली जनतन्त्र लाने की लड़ाई कल भी जारी थी, आज भी जारी है.
केवल इतिहास का रथ-चक्र अब और तेज़ी से घूमना शुरू कर चुका है.
हर बार हमने ही इतिहास बनाया है.
इस बार भी हम ही इतिहास बनाने जा रहे हैं.
हर बार हिटलर हारा है.
इस बार भी हिटलर हारने वाला है.
हमको पूरा भरोसा है ख़ुद पर, आप पर, जन-समुदाय पर.
लेख वालेसा ने कहा था : "सर्दियाँ तुम्हारी थीं. वसन्त हमारा होगा."
आइए, एक बार फिर "शुरू से शुरू करें !".
शुरू करेंगे, तो अन्त भी करेंगे ही.

केवल हौसला रखिए.
अपने मतभेदों को भूल जाइए.
और अपनी रफ़्तार तेज़ कीजिए.
सारे दोस्तों के हाथ कस कर मजबूती के साथ पकड़िए.
एकजुटता के एक मंच पर पूरे देश की जनपक्षधर ताक़तों को एक साथ जोड़ने की पहल लीजिए.
इन्कलाब ज़िन्दाबाद !
फासिज़्म मुर्दाबाद !!
- आपका गिरिजेश (2.6.14. 11.30.am)

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