Saturday 28 June 2014

उनकी कब्रें तैयार करो! - गिरिजेश


हम सत्तू खाकर जी लेंगे, हम गन्दा पानी पी लेंगे;
सो लेंगे हम फुटपाथों पर, पर नहीं स्वयं को बेचेंगे
पैसे वालों के हाथों पर।

हम बिना दवा के रह लेंगे, हम शीत-घाम सब सह लेंगे;
करते हैं भरोसा हाथों पर, पर नहीं थूक कर चाटेंगे,
अपने ज़मीर के ख़्वाबों को टुकड़ों में कभी न बाँटेंगे।

अपनी ख़ातिर सूखी रोटी, उनकी ख़ातिर तर माल सभी;
अपनी ख़ातिर खंखड़ गमछा, उनकी तौलिया-रुमाल सभी।
अपनी ख़ातिर पद-यात्रा है, उनकी ख़ातिर है वायुयान;
अपनी ख़ातिर टुटही खटिया, उनकी ख़ातिर ए.सी. वितान।
अपनी मँड़ई भी चूती है, बरसातों के दिन-रातों में;
उनके ऊँचे महलों में तो रहती दीवाली रातों में।
ढिबरी से काम चलाना ही अपने लोगों को पड़ता है;
हरदम बिजली की जगमग से उनका आवास दमकता है।

अपना जीवन, उनका जीवन, दोनों जीवन जीवन ही हैं;
बस फ़र्क यही हम पशुवत हैं, पर वे तो केवल धन-पशु हैं।
विपरीत परिस्थिति में पल कर तन-मन को सबल बनाया है;
है तभी, आज फिर इस तन पर धन-पशु को लालच आया है।
वे सदा लार टपकाते हैं, आँखें भी ख़ूब दिखाते हैं;
पर नहीं समझते हैं सच को, खुद को हरदम भरमाते हैं।
दौलत मेहनत ने पैदा की, मेहनत ने बदली है दुनिया;
दौलत वालों की सुख-सुविधा मेहनतकश की ही बदौलत है।

सब कुछ पर कब्ज़ा करना ही उनका अब तक का सपना है;
पर सब कुछ जग का है किसका - यह सत्य हमीं को कहना है।
हम अपने जैसों में खुश हैं, हम बिना दवा सो लेते हैं;
खटते हैं हम जब दिन भर तो सपने भी नहीं खटकते हैं।
वे हर पल शक में जीते हैं, हरदम खतरे में रहते हैं;
कब कौन दग़ा देगा उनको, अनुमान लगाया करते हैं।
उनकी तनाव की बीमारी, हर दिन बढ़ती ही जाती है;
फिर ऐसा भी दिन आता है, जब नींद ही नहीं आती है।

खोजा करते, पोसा करते, पाला करते ग़द्दारों को;
साँपों को दूध पिलाते हैं, हम सब को दंश पिलाने को।
मजबूरन ही घिर जाने पर वे पीछे कदम हटाते हैं;
गुर्राना छोड़ रिरिकते हैं, अपना ड्रामा फैलाते हैं।
है न्याय सत्य के साथ अड़ा, कब तक साज़िश है पल सकती?
उनकी टुच्ची तदबीरों से आसन्न मुसीबत टल सकती!
पुरखों ने आन निभायी है, हर बार जब भी बन आयी है;
पीछे न हटाया कदमों को, अपनी ललकार गुँजायी है।

औकात न अपनी भूलेंगे, आँधी के झूले झूलेंगे;
प्रतिशोध-स्वप्न की रचना में उत्कर्ष-शीर्ष तक छू लेंगे।
दौलत वाले हैं मुट्ठी-भर, मेहनतकश अरब-करोड़ों में;
बस जंग शुरू हो जाने दो, कितना दम होगा रोड़ों में?
उनकी कब्रें तैयार करो, संसार हमारा अपना है;
गद्दार अगर है कोई तो, उससे भी तुरत निपटना है।
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117 हजार करोड़ के घर में रहते हैं मुकेश अम्बानी को हर माह 70 लाख से ऊपर बिजली का बिल आता हैं ,यह बिल लगभग उतना ही है, जितना कि 7000 घरों का महीने भर का बिजली बिल होता है। बिजली बिल और रख-रखाव में जो खर्च होता हैं उससे एक पूरी शहर का खर्च उठाया जा सकता हैं !

मुकेश अंबानी का मुंबई स्थित 27 मंजिला घर 'एंटीलिया' धरती पर सबसे महंगा घर है। इसे बनाने पर करीब एक से दो अरब डॉलर (10 हजार 855 करोड़ रुपए) का खर्च आया है।' एंटीलिया की छह मंजिलों पर सिर्फ पार्किंंग और गैरेज हैं। इस गगनचुंबी इमारत में रहने के लिए चार लाख वर्ग फीट जगह है, जिसमें एक बॉलरूम है। छत क्रिस्टल से सजी है। एक सिनेमा थिएटर, बार, तीन हेलिपैड हैं। करीब 600 कर्मचारियों का स्टाफ एंटीलिया का रख-रखाव करता हैं। घर में रहने वाले केवल 5 ..नीता अम्बानी -3 बच्चे और मुकेश अम्बानी !
इस देश के संसाधनों का फिजूल खर्च किस बेरहमी से किया जाता हैं सुनकर भी तकलीफ होती हैं |


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