Friday 20 June 2014

______"सुनो ! सुनो ! सुनो !"_______


सुनो मेरे साथी,
सुनो मेरे दोस्त,
सुनो मेरे लोगो !

सुनो, वक्त की पुकार सुनो !
यही तो वक्त है !
वक्त इससे बेहतर कब था !
यह उनका वक्त है !
यही हमारा भी वक्त है !

सोचो मेरे साथी, शान्त मत रहो !
बोलो मेरे दोस्त, चुप मत रहो !
करो मेरे लोगो, कुछ तो करो !
मेरे अपनो, सोचो, बोलो, करो !

अभी मैं भी ज़िन्दा हूँ !
अभी तुम भी ज़िन्दा हो !
अभी वे भी ज़िन्दा हैं !
अभी हम सब ही ज़िन्दा हैं !

जो बोलता नहीं,
जो सोचता नहीं,
जो करता नहीं,
वह ज़िन्दा नहीं रह पाता है !
सोचना, बोलना और करना ही ज़िन्दा रहने की शर्त है.

क्या तुम अभी भी सुकून की साँस ले पा रहे हो !
क्या अभी भी तुम्हारा मन क्षोभ से बेचैन नहीं है !
क्या अभी भी तुमको मानवता से अधिक सिक्के से लगाव है !

क्या अभी भी तुमको फ़ुटबाल और क्रिकेट की ख़बरों में दिलचस्पी है !
क्या अभी भी तुम बिलबिलाती मानवता की छटपटाहट महसूस नहीं कर पा रहे हो !
क्या अभी भी तुम गर्व से सिर उठा कर ख़ुद को मनुष्य कह पा रहे हो !
क्या अभी भी तुम अपने मासूम बच्चे से आँख मिला पा रहे हो !
क्या अभी भी तुम अपने लाचार बुजुर्गों के पैर छू पा रहे हो !
क्या अभी भी तुम अपनी पत्नी को सान्त्वना दे पा रहे हो !
क्या अभी भी तुम अपने दोस्तों के साथ ठहाके लगा पा रहे हो !

नहीं न !
तो फिर वक्त की पुकार सुनो !
वक्त की पुकार इतिहास की पुकार होती है !
इतिहास की पुकार को अनसुनी मत करो !
संघर्ष की वेला में चुप लगाने वाले इतिहास के अपराधी होते हैं !

क्या तुम भी इतिहास के अपराधी ही हो !
नहीं न !
इसीलिये मेरे दोस्तो, मेरे साथियो, मेरे अपनो !
अपनी कूबत भर सोचो, बोलो, करो !

ढेर सारे प्यार के साथ - तुम्हारा ही गिरिजेश (15.6.14. 8.30 p.m.)

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