Saturday 28 June 2014

मयंक-शुभी !


यह मैं ही तो हूँ ! 
मैं ही हूँ अतीत से भविष्य तक का काल-यात्री ! 
मेरे बच्चो, यह तुम हो ! 
तुम ही तो हो मेरा मैं ! मेरी अस्मिता ! मेरा परिचय ! मेरा स्वप्न ! 
मेरी साधना के सुरभित पुष्प ! 
मेरे मानस का विस्तार तुम ही तो हो ! 

छायांकन-कला के चरम सौन्दर्य को व्यक्त करने वाला तुम्हारा यह ‘युगल-चित्र’ अपने आप में सजीव कविता ही तो है। स्नेहसिक्त मन निःशब्द वार्तालाप में लीन हैं। इस मौन वार्तालाप से प्रादुर्भूत आनन्द का नाद स्वयमेव ध्वनित हो रहा है। इस नाद से सहज ही प्रसारित हो रही प्रेरक ऊष्मा की उत्ताल तरंगों की अनुगूँज मुझ तक भी प्रतिध्वनित हो रही है तथा मेरे आहत जुझारू तेवर में जिजीविषा की नूतन ऊर्जा का पुनः संचार कर रही है। – तुम्हारा गिरिजेश — with Shubhi Dubey.

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