Monday 17 August 2015

___ नक़ल नहीं, अकल ___

प्रिय मित्र, सोच रहा हूँ कि क्या केवल लेनिन की जीवनी पढ़ने से या भगत सिंह की फिल्म देखने से या चे ग्वेरा के चित्र वाली शर्ट पहिनने से आज तक कोई भी दूसरा लेनिन, भगत सिंह या चे बन सका ! नहीं न! तो क्यों!

क्योंकि कोई भी शीर्षस्थ इतिहास-पुरुष अनन्य होता है। वह किसी की भी नक़ल नहीं करता। उसकी मौलिकता ही उसकी विशिष्टता होती है। अपने देश-काल-परिवेश की विसंगतियों से टकरा कर ही उसका उत्कर्ष हो पाता है।

महान क्रान्तिकारियों की केवल भोंड़ी नक़ल करने वाले लोग उनके जैसा बनने के नाम पर उनके जैसा ही दिखने, लिखने या करने के चक्कर में जीवन भर भ्रम में ही जीते चले जाते हैं। ऐसे नकलची लोगों के पास ख़ुद अपनी तनिक भी सृजनात्मक क्षमता नहीं होती।

हम भी शोषण और अपमान करने वाली वर्तमान व्यवस्था में क्रान्ति का सपना देखते रहे हैं। इस सपने को साकार करने के लिये हमें भी अपने यशस्वी पुरखों से अपने देश-काल-परिवेश के जटिल यथार्थ को समग्रता में समझने और पूरी शिद्दत के साथ जूझने के लिये केवल प्रेरणा ही मिल सकती है।

केवल उनकी तरह प्रतिबद्ध जीवन जीने से, सतत श्रम करने से और संघर्ष में दृढ़तापूर्वक डटे रहने से ही हम उनके असली वारिस बन सकते हैं। किसी का भी अन्धानुकरण हास्यास्पद तो होता ही है, कई बार आत्मघाती भी हो जाता है।

ढेर सारे प्यार के साथ... – आपका गिरिजेश (15 अगस्त '15)

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