Wednesday 5 August 2015

____ राष्ट्रवाद — Himanshu Kumar

Himanshu Kumar जी की धारदार कलम से दो-टूक सच _____
सोशल मीडिया पर भारतीय नागरिक इस समय दो खेमे में बंटे हुए दिखाई दे रहे हैं .
एक तरफ वो हैं जो याकूब की फांसी के विरोध में हैं
और दूसरे जो याकूब की फांसी के समर्थन में हैं .

जो याकूब की फांसी के समर्थन में हैं उनमे भी दो तरह के लोग हैं.

पहले वो लोग हैं जो कहते हैं कि याकूब को जो फांसी हुई है वह कोई साम्प्रदायिक निर्णय नहीं है
उनका कहना है कि इसलिए इस फांसी को लेकर जो लोग हल्ला मचा रहे हैं वह गलत कर रहे हैं और साम्प्रदायिक आधार पर भारतीय न्याय व्यवस्था पर हमला कर रहे हैं .

फांसी के समर्थन में दूसरा तबका मोदी भक्त वर्ग का है जो इस फांसी के बहाने फिर से मुसलमानों को नीचा दिखाने की कोशिश में लगा हुआ है.
ये लोग अभद्र और भड़काऊ भाषा और जुमले इस्तेमाल कर रहे हैं ताकि मुसलमानों को चिढ़ा सकें .
ये लोग हल्ला मचा रहे हैं कि जो भी फांसी का विरोध कर रहे हैं, वह सभी लोग आतंकवादियों के समर्थक हैं.

इसी तरह फांसी के विरोध में भी दो तरह के लोग हैं.

पहले वो लोग हैं जो किसी को भी फांसी देने के खिलाफ़ हैं.
ये लोग पहले से ही किसी भी मौत की सज़ा के खिलाफ़ लिखते रहे हैं.
लेकिन जब ये किसी भी मौत की सज़ा के खिलाफ़ लिखते हैं तो इन्हें भक्त जन तुरंत आतंकवादियों के एजेंट घोषित कर देते हैं .

फांसी के खिलाफ़ दूसरी तरह के जो लोग हैं जो मानते हैं कि याकूब को मुसलमान होने के कारण फांसी दी गयी है इसलिए हम इस बात का विरोध कर रहे हैं .

इनमे भी दो तरह के लोग हैं पहले वो लोग हैं, जो भारत में साम्प्रदायिक राजनीति, लोकतंत्र के नाम पर बहुसंख्यवाद, हिंदुत्व के नाम पर भारतीय जनता का साम्प्रदायिकरण और संघ कुनबे द्वारा जानबूझ कर मुसलमानों को नीचा दिखाने के विरोध में हैं .

फांसी का विरोध करने वाले बहुत सारे मुस्लिम भी हैं जो इस फांसी को मुसलमानों को डराने के कदम के रूप में देख रहे हैं .
ये लोग जो प्रतिक्रिया कर रहे हैं उसका आधार बस यही है कि अगर वह मुसलमान ना होता तो उसे फांसी ना होती और यह कदम मुसलमानों को डराने के लिए लिया गया है इसलिए हम इसके विरोध में हैं .

याकूब की फांसी के बाद मुसलमानों के मन में डर और गुस्सा बिलकुल स्वाभाविक बात है.
डर को ठीक से समझना ज़रूरी है.
डर याकूब के लिए नहीं है. याकूब तो मर गया उसके लिए अब क्या डर?
मुसलमानों का डर तो उनके खुद अपने लिए है.
मुसलमान डर कर सोच रहे हैं की क्या मुसलमान होने के कारण हमें भारत में अब डर कर रहना पड़ेगा?
इसलिए काफी सारे मुसलमान इस डर से निजात पाने के लिए इस फांसी के विरोध में आवाज़ उठा रहे हैं.

आपको खुद याद होगा कि आपने दिल्ली में दामिनी कांड के बाद किस तरह से बलात्कार के विरोध में प्रदर्शन किया था.
वह भी आपके अपने डर की ही परिणिति थी.
आप दामिनी के लिए नहीं बल्कि खुद अपनी या अपनी बहन बेटियों की सुरक्षा के लिए के लिए सड़कों पर उतरे थे.

इसी तरह भारतीय मुसलमान भी याकूब के लिए नहीं बल्कि खुद अपनी सुरक्षा के लिए आवाज़ उठा रहे हैं
और कह रहे हैं कि भारत में अगर किसी को मुसलमान होने के कारण फांसी दी जाती है तो वह गलत है .
इसलिए फांसी के विरोध में उठने वाली किसी भी तरह की आवाज़ को आतंकवादी समर्थक कहना गलत होगा .

पिछले दिनों मुझे युवा लड़के लड़कियों के एक प्रशिक्षण शिविर में बुलाया गया .
मुझे राष्ट्रवाद और साम्प्रदायिकता पर बोलने के लिए कहा गया.
मैंने वहाँ मौजूद ग्रामीण शिक्षित युवाओं से पूछा कि बताइये कि दुनिया का सबसे अच्छा राष्ट्र कौन सा है ?
सबने एक स्वर में कहा कि भारत .

मैंने अगला सवाल पूछा कि अच्छा बताओ कि सबसे अच्छा धर्म कौन सा है ?
सबने कहा हिंदू धर्म,

मैंने पूछा कि अच्छा बताओ सबसे अच्छी भाषा कौन सी है ?
कुछ ने जवाब दिया की हिन्दी, कुछ युवाओं ने जवाब दिया कि संस्कृत सर्वश्रेष्ठ भाषा है .

मैंने उन युवाओं से अच्छा अब बताओ कि दुनिया का सबसे बुरा देश कौन सा है ?
सारे युवाओं ने कहा की पाकिस्तान,

मैंने पूछा सबसे बेकार धर्म कौन सा है ?
उन्होंने कहा इस्लाम ?

मैंने इन युवाओं से पूछा कि क्या उन्होंने जन्म लेने के लिए अपने माँ बाप का खुद चुने थे ?
सबने कहा नहीं .

मैंने पूछा कि क्या आपने जन्म के लिए भारत को या हिंदू धर्म को खुद चुना चुना था ?
सबने कहा नहीं .

मैंने कहा यानि आपका इस देश में या इस धर्म में या इस भाषा में जन्म महज़ एक इत्तिफाक है .
सबने कहा हाँ ये तो सच है .

मैंने अगला सवाल किया कि क्या आपका जन्म पाकिस्तान में किसी मुसलमान के घर में होता
और मैं आपसे यही वाले सवाल पूछता तो आप क्या जवाब देते ?
क्या आप तब भी हिंदू धर्म को सबसे अच्छा बताते ?
सभी युवाओं ने कहा नहीं इस्लाम को सबसे अच्छा बताते .

मैंने पूछा अगर पाकिस्तान में आपका जन्म होता और तब मैं आपसे पूछता कि सबसे अच्छा देश कौन सा है तब भी क्या आप भारत को सबसे अच्छा राष्ट्र कहते ?
सबने कहा नहीं तब तो हम पाकिस्तान को सबसे अच्छा देश कहते .

मैंने कहा इसका मतलब यह है कि हम ने जहां जन्म लिया है हम उसी धर्म और उसी देश को सबसे अच्छा मानते हैं .
लेकिन ज़रूरी नहीं है की वह असल में ही वो सबसे अच्छा हो.
सबने कहा हाँ ये तो सच है.

मैंने कहा तो अब हमारा फ़र्ज़ यह है कि हम ने जहां जन्म लिया है उस देश में और उस धर्म में जो बुराइयां हैं उन्हें खोजें और उन् बुराइयों को ठीक करने का काम करें .
सभी युवाओं ने कहा हाँ ये तो ठीक बात है .

इसके बाद मैंने उन्हें संघ द्वारा देश भर में फैलाए गए साम्प्रदायिक ज़हर और उसकी आड़ में भारत की सत्ता पर कब्ज़ा करने और फिर भारत के संसाधनों को अमीर उद्योगपतियों को सौपने की उनकी राजनीति के बारे में समझाया .
मैंने उन्हें राष्ट्रवाद के नाम पर भारत में अपने ही देशवासियों पर किये जा रहे अत्याचारों के बारे में बताया.
मैंने उन्हें आदिवासियों, पूर्वोत्तर के नागरिकों, कश्मीरियों पर किये जाने वाले हमारे अपने ही अत्याचारों के बारे में बताया.

मैंने उन्हें हिटलर द्वारा श्रेष्ठ नस्ल और राष्ट्रवाद के नाम पर किये गये लाखों कत्लों के बारे में बताया.
मैंने उन्हें यह भी बताया की किस तरह से संघ उस हत्यारे हिटलर को अपना आदर्श मानता है .

मैंने उन्हें बताया की असल में हमारी राजनीति का लक्ष्य सबको न्याय और समता हासिल करवाना होना चाहिए .
हमने भारत के संविधान की भी चर्चा करी .
इन युवाओं में काफी सारे मोदी के भक्त भी थे .
लेकिन इस प्रशिक्षण के बाद वे मेरे पास आये और उन्होंने कहा कि आज आपकी बातें सुनने के बाद हमारी आँखें खुल गयी हैं.

असल हमें इस तरह से सोचने के लिए ना तो हमारे घर में सिखाया गया था ना ही हमारे स्कूल या कालेज में इस तरह की बातें बताई गयी थीं.
मुझे लगता है की हमें युवाओं के बीच उनका दिमाग साफ़ करने का काम बड़े पैमाने पर करना चाहिए. क्योंकि उनका दिमाग खराब करने का काम भी बड़े पैमाने पर चल रहा है .

{ August 01, 2015 

1 comment:

  1. Girijesh Tiwari ____ #हिमांशु_कुमार_जी_का_और_एक_भगवाई_कीर्तनिये_का_राष्ट्रवाद'____
    आदरणीय मित्र, आन्दोलनकारियों के पुरोधा, लेखनी के धनी और हम सब के सम्मानित साथी श्री Himanshu Kumar जी की सफल और प्रशंसित पोस्ट __'राष्ट्रवाद'__ को मैंने साभार इस लिंक पर शेयर किया.
    https://www.facebook.com/photo.php…
    उस पर एक कीर्तनिये की यह टिप्पणी आयी. बेचारे बेचैन कीर्तनिये ने कल देर रात में कई बार अपने इस फोन नम्बर 09333699754 से बात करने और 'संस्कृत' में अपनी माँ को याद करने का प्रयास किया. उसे सुन कर और अब उसकी यह टिप्पणी पढ़ कर मुझे अब्दुर्रहीम खानखाना याद आ रहे हैं. उन्होंने ऐसे ही लोगों के सन्दर्भ में लिखा था और मैंने उनके दोहे की पोस्ट लगायी थी.
    उसे यहाँ इस कीर्तनिये और इसके जैसे दूसरे भगवाइयों की बुद्धि को जगाने की कामना से पुनर्प्रेषित कर रहा हूँ. वैसे बुद्धि-वितरण की लाइन में खड़ा होना भगवाइयों को अपना 'अपमान' लगता है. वे कहानी के ठण्ड से थरथराते उस मन्द-अकल बन्दर की तरह ही सलाह देने वाली गौरैया का घोंसला नोच लेने पर आमादा हो जाते हैं.
    फिर भी देखिए जो रहीम ने लिखा है -
    "जैसी जाकी बुद्धि है, तैसी कहै बनाय।
    ताकों बुरा न मानिए, लेन कहाँ सो जाय॥"
    और
    "रहिमन जिह्वा बावरी, कहि गइ सरग पताल।
    आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल॥"
    और ऊपर से मज़े की बात तो यह है कि यह उद्दण्ड कीर्तनिया आज़मगढ़ का ही है. इसका लिंक है - https://www.facebook.com/mahandra.yadav.16?fref=ufi
    @Mahandra Yadav - "राष्ट्रवाद नही ईसलामबाद कहो क्यो की तुम साले जो हो समझ मे आ रहा है दो खेमे जो है ये बताओ
    हिन्दु किसी को बली दी किसी ने जब मुम्बुई मे 250 आदमी एवंग बच्चे मरे उस समय अपनी माॅ को कोठे पे ले गया था क्या 26/11 के समय अपनी बहन को ले गया था कश्मीर मे पंडीतो पर हमले हुए तब अपनी खाला को दिया था क्या सालो जब भारतीय मरते है तब अपनी मइयाॅ चुदाते हो और जब मुसलीम समुदाय पर फैसले आते है तो पुरा विश्व मे गलत एवंग
    असान्ती फैलाई जाती है वो कोई हिन्दु,,बौध्य ईटालियन
    क्रिसचन,जैन,फारसी कहने का मतलब मुसलीम छोड़ दुसरा कोई जात विश्व मे अशान्ती नही फैला रहा है जहा मुसलिम 100% है वहा भी मुसलिम हैरान परेसा है नीचा जो है वो नीचा ही रहेगा पाकिस्तान मे जीतने लोग मारे जाते है कोई साला तब अपनी मईया नही चुदाता साले अब हिन्दु
    जाग गये है एक तरफ वोट तुम दो नही तो हिन्दु हो जाओ एक तरफ अब जाग हम हिनदुस्तानी देखो अगर अन्दाजाहो गया है तो अपना आशियाना ढुढ लो"

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