Tuesday 18 June 2013

महापुरुष - गिरिजेश



रोज सवेरे चार बजे उठना कितना कड़वा लगता है?
सात बजे तक सोते जाना किसे नहीं अच्छा लगता है?

मीठी नींद, सुहाने सपने, गरम रजाई, नर्म बिछौने;
जिनको भी हैं अच्छे लगते, रह जाते जीवन में बौने।

मगर भला क्या सोते-सोते कोई कुछ भी है कर पाया?
‘जो सोयेगा - वह खोयेगा’ - इसी बात को है सच पाया।

जितने महापुरुष थे, उनमें से क्या कोई भी था ऐसा?
‘फों-फों’ कर सोता रहता था पेट फुलाये भोगी भैंसा। 

नहीं-नहीं, सब सुबह उठे थे, ब्रह्म-काल में जाग लिये थे;
जब तक लद्धड़ सोते रहते, अपना आधा काम किये थे।

अधिक दूसरों की तुलना में उनके घण्टे इसीलिये थे;
इसीलिये उनकी करनी के जग ने भी गुणगान किये थे।

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