Friday 2 August 2013

ज़िन्दगी कितनी ख़ूबसूरत है ! - गिरिजेश




ज़िन्दगी कितनी ख़ूबसूरत है !
हर एक इन्सान दर्द में डूबा, हर एक दिल यहाँ इतना अधिक उदास क्यों है !
ज़िन्दगी के हर एक मोड़ पर
मेरी भलाई चाहने वाले मेरे सभी के सभी ‘शुभ-चिन्तकों’ ने
मेरी ख़ातिर ख़ूब-ख़ूब कोशिश की.
मुझे हज़ार बार, हर कदम प’, हर तरह सिखाया गया –
“बेवकूफ़, थोड़ा और समझदार बनो !”

मेरी समझ से अभी भी मेरा गुनाह महज़ इतना है –
“मैं इनको, उनको, सबको बेतहाशा प्यार करता हूँ.”
अभी भी मेरी ग़लतियाँ कोई भी मुझे बताता ही नहीं.
मेरा अपराध बताने की जगह सभी महज़ इतना ही कहते रहते हैं –
“तुम बेवकूफ़ हो, कुछ भी समझ ही नहीं सकते.”
उनकी सज़ा मेरे लिये अब तो यही मुक़र्रर है –
“जुबान बन्द रखो, कुछ भी किसी से न कहो.”

अगर मुझे पता ही न चल पाये –
“क्या है चूक मेरी या है क्या मेरी ग़लती !”
और यह मुझको बताने के लिये भी कोई भी तैयार न हो.
हर एक मुझसे महज़ बार-बार यही कहे, कहता रहे –
“तुम समझ नहीं सकते, तुम तो अव्यावहारिक हो.”
क्या महज़ इतनी बात सुन-सुन कर खुद ही सब समझ लूँगा ?
और समझदार भी बन जाऊँगा?

मुझे अभी भी नहीं लग रहा है –
मैंने आज तक किसी से भी, किसी तरह से, कभी भी, कोई भी ग़द्दारी की.
हाँ, ज़िन्दगी में जब कभी चालाक दिमागों ने मेरा पीछा किया.
मुझे किसी भी तरह से फँसाने-जकड़ने की कोशिश की.
मैं चुपचाप “दो कदम पीछे” हटा.
वे मुझको कभी भी किसी भी तरह से जकड़ नहीं पाये.
मुझे किसी का भी कैसा भी रहा हो, मगर पट्टा नहीं बर्दाश्त हुआ.
और मैं भाग चला देख कर दोहरेपन को.

“दो क़दम पीछे” हटा.
और फिर से उसी सड़क पर पहुँचा.
जिसने मुझे बार-बार गिरने पर उठाया है.
जिसने मुझे बार-बार प्यार दिया, मौका दिया, काम दिया.
फिर भी चाहे कितना भी दर्द झेलना पड़ा मुझको.
कभी पलट कर अपनी ज़िम्मेदारी से पीछे न हटा.

मगर अब भी मुझे समझ में नहीं आता है –
ऐसी हालात है मेरे दिल की !
और मैं क्या कर दूँ, कैसे करूँ ?
किससे कहूँ, कैसे कहूँ, कितना कहूँ ?
सामने इतना बड़ा काम है ललकार रहा,
मेरा ईमान भी मुझको ही है धिक्कार रहा;
मगर य’ दिल है कि कुछ सुनने को तैयार नहीं,
और कुछ सोच सकूँ इसके भी आसार नहीं.
3.8.13. (8 a.m.)

No comments:

Post a Comment