Wednesday 7 August 2013

मैं सोऊँगा ! - गिरिजेश




मेरे 'बेटे'
सारे के सारे ही
मुझसे बड़े हो गये,
मुझसे आगे सभी बढ़ गये;
मेरा सपना अब ये आँखें देख रही हैं !
इससे अधिक मुझे क्या लेना ?
किसको यह सुख लेना-देना !

मुझे ख़ुशी है;
बहुत जगा हूँ,
रात-रात भर
कलप-कलप कर
बिलख-बिलख कर
मैं रोया हूँ.
अब सोऊँगा !

दशकों बीते जाग रहा हूँ,
हरदम सरपट भाग रहा हूँ;
अब थक कर मैं चूर हो चुका,
अब सोऊँगा !

मेरे हिस्से में जो आया,
समर अभी तक मैंने झेला;
अब आगे कुछ और लड़ाई बढ़ जायेगी,
हुआ भरोसा मेरे मन को.
आज और भी हँसी-ख़ुशी से,
मस्ती से मन झूम रहा है;
पस्ती का माहौल नहीं अब पीछा करता,
अब सोऊँगा !

आज नाक का बाजा अपने,
बजा-बजा कर ज़ोर-ज़ोर से
‘ख़ुर्र-पीं, ख़ुर्र-पी’ की लय पूरे सुर में गूंजेगी ज़रूर ही.
मैं सोऊँगा !

अब तुम जगना, अब तुम लगना;
अब तुम लड़ना, आगे बढ़ना;
मैं हरदम ही साथ रहूँगा,
कदम-कदम पर
आगे-आगे मेरे चलना;
मुझको भी दिखलाना रस्ता,
इस अन्धेरे में भी तुमको सूझ रहा है;
मुझे ख़ुशी है !

हम जीतेंगे कठिन लड़ाई,
आज भले ही उनका है,
पर कल निश्चय ही अपना होगा;
पूरा जन का सपना होगा !
तुम सपने साकार करोगे,
मैं संतुष्ट हो चुका तुमसे;
अब सोऊँगा !

पूरी हुई तपस्या मेरी,
मैंने जग से जितना माँगा,
उससे भी है बढ़ कर पाया;
अब तुम सोचो,
अब तुम जानो;
कैसे होगा !
काम तुम्हारा
तुमको ही है पूरा करना.
मैं सोऊँगा !

- गिरिजेश
(1.8.13. 11p.m.)

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