Tuesday 7 January 2014

हमारा पलटवार – गिरिजेश 20.12.13




मेरे प्यारे दोस्तो, मेरे मुखर और मौन विरोधियो, कॉमरेड खुर्शीद अनवर की क्रूर हत्या के प्रतिशोध में जारी संघर्ष के मेरे दिलेर और ज़िद्दी साथियो, मेरे मासूम और जिज्ञासु युवा मित्रो,

मैं आप सब से आज अपने हिस्से की बात करना चाहता हूँ. मैं जानता हूँ कि आप में से अनेक अभी तक गहरे सदमे में हैं. आप में से अनेक की अंगुलियाँ रह-रह कर उठने वाले ना-काबिल-ए-बर्दाश्त गुस्से से ऐंठ-ऐंठ जा रही हैं और आपके दिल को निचोड़ डालने वाले दर्द के चलते आपका दिमाग, आँख और गला बार-बार आपका साथ छोड़-छोड़ दे रहे हैं. आप में से अनेक खुलेआम या छिपे तौर पर अभी भी खुशियाँ मना रहे हैं. आप में से अनेक सोच रहे हैं कि आखिर यह सारा मामला है क्या, जिसने मुझे लगातार सब कुछ छोड़ कर केवल एक ही मुद्दे पर लिखने और आप सब का लिखा ‘शेयर’ करने को मजबूर कर दिया है !

कॉमरेड खुर्शीद अनवर एक खुशमिजाज़ और बहादुर इन्सान थे. ‘हज़रत गब्बर’ के बहाने वह व्यवस्था पर व्यंग्य करते रहते थे और ‘यादों के कारवाँ’ की किश्तों के ज़रिये बड़ी ही मासूमियत के साथ हम सब को अपने-अपने बचपन की शरारतों की याद दिला कर मुस्कुराने पर मजबूर करते रहते थे. यह ज़िन्दादिल इन्सान महज़ एक इन्सान था – एक नेक इन्सान ! एक खुद्दार इन्सान ! एक दिलेर इन्सान ! एक ज़िद्दी इन्सान ! इन्सान – जिसका मजहब था इन्सानियत. इन्सान - जो लगातार ललकारता रहता था इन्सानियत के मक्कार और बेरहम दुश्मनों को. इन्सान - जो किसी भी धमकी के सामने कभी भी झुका नहीं. इन्सान - जो अपने मोर्चे पर डट कर लड़ता रहा. इन्सान - जिसकी कलम ने इस्लामिक आतंकवाद की बखिया बार-बार उधेड़ कर रख दी. इन्सान - जिसके लेखों से कट्टरपन्थी कठमुल्ले गुस्से से पगला जाया करते थे. इन्सान - जिसने हर धमकी के बाद आतंकवादियों को ‘एक तोहफ़ा और’ देने की ज़ुर्रत की. इन्सान - जिसने बार-बार कहा कि उसकी हत्या तो की जा सकती है, मगर जीते-जी उसकी कलम को रोका नहीं जा सकता.

हत्यारों को बखूबी समझ में आ रहा था कि खुर्शीद को चुप कराना नामुमकिन है, उसको ख़रीदना नामुमकिन है, उसको हराना नामुमकिन है, ऐसे में केवल उसको बे-इज्ज़त करना और अलगाव में डाल देना ही उसके हत्यारों के लिये इकलौता मुमकिन हमला था. चूँकि ‘चरित्र-हनन’ ही किसी भी इज्ज़तदार इन्सान बे-इज्ज़त कर सकता है और उसे अलगाव में डाल सकता है. क्योंकि युग-परिवर्तन के चलते अर्थ के रूपान्तरण की प्रक्रिया से गुज़रने के बाद ‘चरित्र’ शब्द ने अपना ‘अर्थ-संकोच’ कर लिया है. इसका आशय अब केवल ‘यौन-शुचिता’ होकर रह गया है. समाज-व्यवस्था पुरुष-प्रधान है. पुरुष-प्रधान समाज-व्यवस्था में नारी उत्पीड़िता है. इस मान्यता के चलते आज ‘इन्साफ़’ और समाज दोनों ही केवल नारी के पक्ष में और पुरुष के विरुद्ध खड़े हो सकते हैं. सो उन्होंने उस ‘इन्सान’ को इसी जाल में उलझाया, फँसाया, और उसे बे-इज्ज़त करने में कोई कोर-कसर न छोड़ी. वह बिलबिलाता रहा, रोता रहा, सफ़ाई देता रहा, इन्साफ के लिये पुकार लगता रहा. मगर मग़रूर ज़माने के बहरे कानों तक उसके ईमान की पुकार पहुँच न सकी. बेरहम दुश्मन जैसे-जैसे और भी हमलावर होता गया, वैसे-वैसे उसके दोस्त उस पर शक करने लगे. उनके भी सामने धर्म-संकट पैदा होता जा रहा था. ‘इन्साफ’ बनाम दोस्ती के द्वंद्व में जूझने पर हर इन्साफ-पसन्द दोस्त ने दोस्ती के बजाय ‘इन्साफ’ का साथ देने का फैसला किया. और फिर खुर्शीद अपने ‘मुट्ठी भर दोस्तों’ के साथ बेतहाशा अकेला पड़ गया.

उसके दुश्मनों ने घात किया और ‘दोस्तों’ ने विश्वासघात. उसके खिलाफ़ मधुकिश्वर के ऑफिस में ‘पीड़िता’ के बलात्कार के बयान का विडियो बना. मधुकिश्वर मोदी की खास प्रचारिका हैं. वह ख़ूब बड़ा एन.जी.ओ. चलाती हैं. ज़ाहिर है उनका दिमाग भी ख़ास योजना पर बारीकी से जाल बुनता और उसने बुना भी. पैसे ने भी अपना घिनौना खेल खेला ही. उसके खिलाफ़ ज़हरीली कहानियाँ किश्तों में लिखीं गयीं. वे कहानियाँ ख़ूब चटकारे ले-ले कर पढ़ी भी गयीं. खुर्शीद पर मर्मवेधी टिप्पणियाँ की गयीं. उत्तराखण्ड आपदा में राहत-कार्य करने के लिये मुट्ठी भर स्वयंसेवकों की टीम ‘बूँद’ जुटी थी. उसके साथ और अधिक आर्थिक लाभ लेने के चक्कर में तब तक जुड़े ज़हरीले तपन और उसके दोस्तों ने ‘बूँद’ पर काबिज़ होने में असफल होने पर गली-गली घूम कर ख़ास-ख़ास लोगों को चुन-चुन कर वह विडियो दिखाया. वे मुझे भी शायद ‘तोप खां’ समझ रहे थे. मेरे भी पास तपन उस विडियो को लेकर आया. उसकी शक्ल देखते ही और उसकी कपट भरी बातें सुनते ही मैं उसका बिकाऊ चरित्र समझ गया. मेरे विस्तार में समझाने और मुझसे ‘सहमत’ होने का नाटक करने के बाद भी लगातार चुने हुए लोगों को ही वह विडियो दिखाया जाता रहा. साथ ही कई महीने तक लगातार पैरेलल मीडिया पर भी बेतहाशा कुत्सा-प्रचार चलता रहा.

इस बीच खुर्शीद अनवर ने ज़हरीले तपन और उसके दो साथियों के ख़िलाफ़ अदालत में मान-हानि का दावा किया. शातिर दुश्मन ख़ूब अच्छी तरह जानता था कि यह दावा खुर्शीद अनवर करेंगे ही. उसका अगला पैंतरा था – इन्तेज़ार ! थोड़ा-सा और इन्तेज़ार !! और उसने पूरे धैर्य के साथ तब तक इन्तेज़ार किया, जब तक दिल्ली में चुनाव हो जाये. दिल्ली के चुनाव के ठीक बाद अब तक पूरी तरह चुप रही मधुकिश्वर ख़ुद सक्रिय हो गयी. उसने महिला-आयोग को अब जा कर विश्वास में लिया. इण्डिया टी.वी. ने साम्प्रदायिक शक्तियों की इस साज़िश में अब ‘पीड़िता’ का साथ दे दिया. इण्डिया टी.वी. ने तड़ाक से ‘स्टोरी’ की कवरेज की. उसने अब तक परदे से चुपचाप गायब रही पीड़िता को रातो-रात खोज भी लिया और उसका भी बयान ले लिया और उसे अपनी ‘स्टोरी’ में करीने से सुनाया भी. खुर्शीद अनवर का भी ‘बयान’ लेने की खानापूर्ति की गयी. ‘स्टोरी’ में उनका बयान लेता चित्र तो दिखाया गया. मगर उनके बयान का छोटा-सा हिस्सा भी जान-बूझ कर नहीं सुनाया गया. इलेक्ट्रोनिक मीडिया का यह हमला पैरेलल मीडिया के हमले से भी अधिक ज़बरदस्त साबित हुआ. महिला-आयोग ने सरकारी तन्त्र को तत्काल जांच करने के लिये आदेशित किया. पहले से ही महीनों से बेतहाशा अलगाव, तनाव और अवसाद-ग्रस्त खुर्शीद अनवर पर वह मनहूस रात बहुत भारी पड़ी. उन्होंने चुपचाप अपने टेलिफोन को बन्द कर दिया और फिर अपना आख़िरी जवाब इस नरभक्षी व्यवस्था को मौन आत्म-बलिदान करके दे दिया.

आज खुर्शीद अनवर नहीं रहे. मगर आज भी मैं हूँ, आप हैं, और लोग भी हैं. हम सब हैं और रहेंगे ही. खुर्शीद अनवर के दोस्त और दुश्मन दोनों ही हैं और रहेंगे ही. दोस्त हैं - जो उनकी शहादत का क्षोभ के साथ मातम मना रहे हैं. दुश्मन हैं - जो अपने इस ख़ुद्दार दुश्मन की मौत पर खुशी से पागल हो कर पैशाचिक अट्टहास कर रहे हैं. ‘जानकार’ और ‘अनजान’ विरोधी हैं - जो ‘प्रशंसा’ और ‘आलोचना’ दोनों ‘शस्त्र’ चलाने में दक्ष ‘सफ़ेद बालों’ से मक्कार ‘मासूमों’ को चालाकी से ‘सजग’ कर रहे हैं और “दिमागों की बत्तियाँ जलाये रखने की सलाहें” दे-ले रहे हैं. ये सभी अपनी-अपनी भड़ांस अपनी पोस्ट्स, कमेंट्स और कविताओं के ज़रिये निकाल कर खुर्शीद की लाश पर नंगा नाच करने पर आमादा हैं. ‘बुद्धिविलासी बुद्धिजीवी’ हैं - जिनको न ‘सच’ से कुछ लेना-देना है और न साम्प्रदायिकता के खिलाफ़ जंग से. वे भी इस मुश्किल दौर में चुप रहने के बजाय अपनी ‘लाइक्स’ बढ़ाने के चक्कर में कलम चला रहे हैं. ‘साहित्य के महारथी’ हैं – जो ‘नारी-समर्थन’ की घोषणा करने में लगे हैं. पद-प्रतिष्ठा और सम्पत्ति के लोभी और सत्ता के गलियारों में ताक-झाँक करने में माहिर ‘महीन खिलाड़ी’ हैं – जो केवल परदे के पीछे बोल रहे हैं और परदे के सामने चुप्पी साधे अपनी ‘बगुला-भगती’ की छवि बनाये हुए हैं. ईमानदार लोग हैं - जो जिज्ञासा से समझना चाहते रहे हैं कि सच क्या है. सभी हैं, और रहेंगे ही.

अब ‘सच’ सामने लाना खुर्शीद के दोस्तों और दुश्मनों - दोनों के लिये फर्ज़ है. यही ‘इन्साफ़’ का तकाज़ा है. मगर सवाल है कि क्या ‘सच’ अब कभी भी सामने आ सकेगा ! क्या उस रात उस बन्द कमरे में दारू के नशे में धुत ‘पीड़िता’ और मरहूम खुर्शीद अनवर के अलावा कोई तीसरा है, जो उस सच को साबित कर सकेगा ! क्या ‘सच’ सामने लाने और इन्साफ़ होने की रत्ती भर भी गुंजाइश है ! मेरा मानना है कि नहीं है ! क़ानून अपना काम कछुवे की रफ़्तार से करने का नाटक करता रहेगा. तारीख़ें हर बार की तरह इस बार भी लगती रहेंगी. न तो ‘सच’ सामने आ सकेगा और न ही ‘इन्साफ़’ होने दिया जायेगा.

तो सवाल है कि अब क्या किया जाना चाहिए !
मेरी समझ है कि ‘क़ानून’ को अपना ‘काम’ करने देना चाहिए और हमें अपना काम जारी रखना चाहिए.
हमारे लिये खुर्शीद अनवर आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध में एक शहीद हैं.
हमारा स्पष्ट शब्दों में इन्सानियत के दुश्मनों पर यह आरोप है कि उनकी हत्या राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय जन-विरोधी शक्तियों द्वारा आतंकवाद को इस विद्रोही कलमकार के लगातार जारी हमले से बचाने के लिये जवाबी हमले के तौर पर की गयी साज़िश के चलते हुई है.

हम इस लड़ाई को जारी रखेंगे. हम आतंकवाद का विरोध हर स्तर पर हर तरीके से करना जारी रखेंगे. हम इस देश की गंगा-जमनी तहजीब की हिफाज़त के लिये हर मुमकिन क़दम उठाते रहे हैं और आगे भी उठाते रहेंगे. हम अपने दोस्तों के साथ और भी गहरी एकजुटता के लिये प्रयास करते रहे हैं. आगे भी हम सभी जनपक्षधर शक्तियों और अपने सभी दोस्तों को आवाज़ देते रहेंगे कि आपस के सभी छोटे-बड़े मतभेदों को दर-किनार कीजिए, आपस के सभी तात्कालिक टकरावों से ऊपर उठिए, परस्पर एक दूसरे पर शक करना बन्द कीजिए और हाथ से हाथ और कन्धे से कन्धा मिला कर इस लड़ाई में एक साथ जूझने का मन बनाइए.

इन्सानियत की प्रगति-पथ के अवरोध साबित हो चुके सभी खूँख्वार दरिन्दों की कुटिल साज़िश के चलते हुई कॉमरेड खुर्शीद अनवर की शहादत का यही हमारा सबसे शानदार बदला होगा.
इन्सान का खून पीने को जीभ लपलपाने वाली इस जनविरोधी समाज-व्यवस्था की चुप्पी का जवाब हमारे बहादुर खुर्शीद ने पूरी आन-बान-शान से अपनी चुप्पी से दिया है.
इस आदमखोर समाज-व्यवस्था को नंगा करके उसका घिनौना चेहरा लोगों के सामने लाने के लिये हम बज़िद हैं.
ताकि ‘सच’ सामने आ सके. ‘सच’ - जो इतना वीभत्स है कि मुझे और मेरे साथियों में से किसी को भी किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं है.

आचार्य माओ ने कहा था – “पॉलिटिक्स इन कमाण्ड’ !
और हमारे अपने मुक्तिबोध हम सब से पूछ रहे हैं – “पार्टनर, तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है?”
तो मेरे प्यारे दोस्तो और मेरे ज़ालिम दुश्मनो, यही है हमारी पॉलिटिक्स, यही है हमारा पलटवार, यही है हमारा हमला !
खुर्शीद अनवर का केवल शरीर मारा गया है, उनके विचारों की हत्या नामुमकिन है.
वे विचार हमारी तलवार की धार को और सान चढ़ायें – हम इसके लिये हर मुमकिन कोशिश करते रहेंगे !
आतंकवाद मुर्दाबाद !
साम्प्रदायिकता मुर्दाबाद !!
इन्कलाब ज़िन्दाबाद !!!



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कॉमरेड खुर्शीद अनवर की ख़ुद की कलम से उनका बयान :
Khurshid Anwar’s Own Story
Khurshid Anwar to Suman Keshari, on 22nd November via facebook mail, detailing the events of 12 september and immediately afterwards -

बूँद नाम की एक टीम उत्तराखंड में बाद पीड़ितों के लिए काम कर कर थी. इला और मयंक इसमें शामिल थे जिनको मैं पहले से जानता था. इला मुझे भाई कहती थी. १२ सितम्बर को हमने उत्तर प्रदेश भवन पर प्रदर्शन किया . मयंक वहां मौजूद था.

उसी शाम मयंक और इला मुझसे पूछे बिना भीड़ लेकर मेरे घर आये. जैसा कि मैंने लिखा उनको पता था कि घर जी (ही) जा रहा हूँ क्योंकि उस दिन प्रदर्शन के बाद मैंने बताया था कि घर जाऊँगा. जितने वहां मौजूद थे उनसे एक बात पूछी जा सकती है कि मैंने कहा था भाई रुकेगा कोई नहीं.

तमाम लोगों ने शराब पी. शराब पीकर एक लड़की की तबियत खराब खराब होना शुरू हुई. मैंने देखा नहीं कब इला या किसी और ने उसे मेरे बेडरूम में लिटा दिया. मैं ड्राइंग रूम में औरों के साथ बैठा था. अब जाने का समय हुआ. मैंने खुद दो टैक्सी इसी लिए बुलाई थी कि तमाम लोग जा सकें और कोई रुके नहीं.

(जाने के लिये ) किये कहा. इस के बात(बाद) कृष्णा और मेरे मना करने के बावजूद लड़की को यह लोग वहीँ छोड़ गए.

मेरे बार बार कहने के बावजूद लड़की को मेरे घर छोड़ने का फैला लिया . इला का एलान था सब चलो उसको यहीं सोने दो. इला रुकने को तैयार न थी. मगर मैंने सोचा कि अगर इस लड़की की तबियत खराब है तो कोई महिला ही संभाले. तीसरी लड़की स्वाति से मैंने कहा. उसने कहा इला नहीं चाहेगी. इस से पहले कि मैं कोई बात कह सकूँ सब से पहले इला और मयंक का सीढियां उतर कर चल दिए. उनके साथ हि तमाम अन्य लोग भी.

बेडरूम का अंदर से दरवाज़ा बंद किया जा सकता था पर पता नहीं ऐसा क्यों नहीं किया उस लड़की ने और शायद किसी ने उसको कहा भी नहीं. . लड़की उस समय भी इतना कर सकती थी क्योंकि पैरों पर चल के गयी थी कमरे (में). मैंने जब सारी बात अपने ड्राइवर को बताई तो उसने अपनी बात रखी. सब बताया. चूंकि वह तब तक वहां मौजूद था और दो टैक्सियां जब लोगों को छोड़ने के लिए आयीं तभी उसके साथ कृष्णा भी निकला. कृष्णा ने मुझे बताया कि जब लड़की बीमार पड़ी तो मौजूद लोगों में से एक लड़के (ने) कोई लगभग दस मिनट कमरा बंद करके उस से बात की. इला ने उस लड़के को बाहर बुलाया और लड़की को अकेला छोड़ देने.

मैं ड्राइंग रूम में लेटा.

थोड़ी देर बाद लड़की का रोना शुरू हुआ . मैंने यह देखने के लिए कि तबियत ज़्यादा तो खराब नहीं हो गयी अंदर जाकर उस से तबियत पूछी. मगर छूटते उसने मुझसे ग़ैर ज़िम्मेदाराना मांग की दो बार. मैं झिडक झिडक कर वापस जाने को मुड़ा तो दोबारा उसने यही बात कही. मैं डांटते हुए ड्राइंग रूम वापस आ गया.

सुबह मैंने उसको उठने को कहा. ड्राइंग रूम आकर उसकी वही रात वाली फरमाइश. मैं ताजुब में आ गया . “स्टॉप इट” कह कर उसको ख़ामोश किया . किसी लड़की ने ऐसा मुझसे बोला तीन बार. क्यों? मेरे दिमाग में घूमता रहा फिर भी इसे साज़िश नहीं माना पाया उस समय .

काम वाली के आने के बाद मैं तैयार होकर बाहर आया. मैंने पूछा कहाँ रहती हो कहाँ छुड़वाना है. उसने कहा इला के घर जाना है. मैंने कहा मैं अभी फोन करता हूँ मगर जब मैं बाथरूम था तभी दोनों की बात हो चुकी थी. क्या हुई मुझे पता नहीं.

उसके बाद अपनी गाड़ी में बिठाकर खुद दफ्तर उतर के उसको इला के घर छुडवाया . मेरे दफ्तर के रास्ते भ उसने कोई बात नहीं की. मैंने उस से तबियत का हाल ज़रूर लिया.

इला मुझे भाई कहती थी इस लिए यह बात इला से कहना उचित न समझ कर तीसरी मौजूद लड़की स्वाति को मिलने के लिए मेरा बोलना. पुरुषों तक मैं यह बात लाना नहीं चाहता था. उसके न आने पर मैं चुप रहा. फिर सन्नाटा. मैं अपने काम में. अगले दिन मित्र समर का मेरे घर आया. मैंने उसको घटनाक्रम की जानकारी दी.. फिर मुझे पता चला कि इलज़ाम है मुझ पर. इला और मयंक ने मुझसे बात बंद कर दी. समर से पता चला कि यह लोग उस से मिले. समर के बार बार कहने पर भी इन्होंने मुझसे मिलने से इनकार कर दिया. मुझसे सीधे सवाल से इनकार. क्यों? पता नहीं. फिर कुछ दिन बाद मुझसे करीब आठ दस लोग आये. मैंने अपनी तरफ़ से मनीषा पांडे को बुलाया. बाद में पता चला कि इला कह कर आयी थी मुझे छट्टी का दूध याद दिला देंगी. मगर सीधे इन लोगों का मुझसे माफ़ी मांगी और इला ने कहा कि हाँ सच है लड़की ने इला के सामने भी माना कि उसने कहा था. “फक मी”. बाद में पता चला कि लड़की गायब की जा चुकी थी. मैंने पूछा कि लड़की कहाँ है साफ़ बात करवाओ. इला ने मुझे कहा वह नहीं आ रही. मगर मेरी सामने ही इला के पास उसका फोन आया और बात इला ने अलग जाकर की. कहा इसके बारे में नहीं है. मेरी तरफ़ से बात खत्म हो गयी थी. मुझे कुछ और कहना नहीं था. क्योंकि वीडियो की बात यह साफ़ छिपा गए मुझे. अब तक मैं इला और मयंक पर विश्वास खो चुका था सो मैंने बिना बताए सारी बात फोन पर रेकॉर्ड कर ली जो सुरक्षित है. लगभग डेढ़ घंटा की रिकॉर्डिंग जिसमे सारी साज़िश तपन और नितिन की बताई. बताया कि यह लोग लड़की को लेकर गायब हो गए थे और उनको पता नहीं था.

फिर मैंने उस लड़की को फेस बुक पर मेसेज लिखा. मैंने कहा बताओ तुमने ऐसा करने को मुझसे कहा और मैंने नहीं किया. मैं पुलिस के पास जाऊँगा. एक जवाब आया. उसने बिलकुल नहीं कहा कि मैं झूट बोल रहा हूँ. हाँ यह कहा जाओ पुलिस के पास. इसको भी मैं स्क्रीन प्रिंट लेकर सुरक्षित कर लिया. फिर मैंने तलाश शुरू की लड़की की. मणिपुर लड़की पहुची नहीं. दिल्ली में कहीं अता पता नहीं. सिर्फ और सिर्फ इला और मयंक ही बता सकेंगे कहाँ है लड़की. कारण क्या है इला और मयंक द्वारा उस लड़की को गायब करना और अभी तक छिपा कर रखना .

अब कुछ बातें.

वीडियो पर कोई सुबूत नहीं पेश करना था तो वीडियो पर इंटरव्यू के लिए राज़ी. मेडिकल जांच से सुबूत न मिल पाना साफ़ था इस लिए इनकार. सफल न होने पर वीडियो तैयार करवाना और मेडिकल न करवाना. मतलब आरोप के लिए मुद्दा तैयार करके फ़ौरन लड़की को गायब कर देना. इसके बाद एक बेहद ज़रूरी बात. हज़ारों रुपये इला ने उस लड़की को दिए. जिसको बताया वह खुद लिखेंगी दो चार दिन में. इला ने कहा उसके पास पैसे खत्म हो गए थे. अगर हमारे आपके पास पैसे खत्म हो जाएँ तो आप हज़ार दो हज़ार देंगे . शायद पैंतीस हज़ार दिए इला ने. मैं सोच नहीं सकता कोई किसी को यूँ ही इतनी बड़ी रकम यूँ ही दे.

अब इसके बाद इला और मयंक तो मुझे पहचानते भी नहीं. लड़ाई कहीं और थमा कर तमाशा देख रहे हैं. इसमें मेरी गलती? बाकी साथी एक बार तो मुझसे सवाल करते लड़ते?"
http://campaignforkhurshidanwar.wordpress.com/2013/12/23/khurshid-anwars-own-story/
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यह है हमारा पलटवार ! अब वे बचाव की मुद्रा में हैं !!
ATTACK IS THE BEST DEFENCE - MAO
नो कनफ्यूज़नः खुर्शीद अनवर की आत्महत्या और उसके जिम्मेदार
"खुर्शीद अनवर की मौत से पहले जिन लेखक, एक्टिविस्ट और प्रफेसर ने उनपर लगे आरोपों में दिलचस्पी ली थी, अब वे बैकफुट पर हैं। आए दिन क्रांति का आहवान करने वाले ये पुरोधा ना सिर्फ तर्कों और विश्लेषण से खुद को बचा रहे हैं, मामले को उलझा रहे हैं बल्कि बयानबाजी करने के बाद अब उससे मुकर भी गए हैं। दूसरी ओर युवा लंपटों का गिरोह खुर्शीद की मौत का जश्न मना रहा है। जिसने शुरू से उनके खिलाफ कैंपेन किया, सोशल मीडिया ट्रायल किया, बिना जांच के उन्हें बलात्कारी मान लिया और आत्महत्या के लिए मजबूर किया। लंपटों को लेखक, एक्टिविस्ट, प्रफेसर और पत्रकारों की शह मिली हुई थी। बेशक खुर्शीद को बेकसूर और इंसाफ दिलाने के नाम पर लड़की के चरित्रहनन पर बात होनी चाहिए लेकिन सबसे पहले नारीवादी कविता कृष्णन, डीयू प्रफेसर आशुतोष कुमार और नामचीन साहित्यकार उदय प्रकाश की मंशा समझिए।

कविता कृष्णनः तहलका मामले में न्यूज़ चैनलों पर कहती रहीं कि पीड़ित लड़की को तय करने दीजिए कि वह क्या चाहती है। उसने इंटरनल जांच की मांग की है तो होने दीजिए। भविष्य में वह पुलिस की शरण जाना चाहे तो उसकी मर्जी है। अब खुर्शीद अनवर का मामला देखिए। तमाम कोशिशों के बाद कविता कृष्णन की लड़की से कोई मुलाकात नहीं हुई, फिर भी कुछ लफंगों के संपर्क करने पर उन्होंने आईएसडी से संपर्क कर जांच करने की वकालत क्यों की? बिना लड़की की मर्ज़ी के वह इस मामले में पार्टी क्यों बनी? आईएसडी से संपर्क करने से पहले कविता कृष्णन ने खुर्शीद अनवर से सीधे आरोपों के संबंध में सवाल-जवाब क्यों नहीं किया? जबकि खुर्शीद हर जगह सफाई देते फिर रहे थे कि वह एक साज़िश का शिकार हुए हैं।

उदय प्रकाश: हिन्दी के नामचीन साहित्यकार उदय प्रकाश खुर्शीद अनवर से कभी नहीं मिले। इन्होंने ने खुर्शीद अनवर से संपर्क करने या फिर कोई सवाल-जवाब करने की बजाय उनके खिलाफ पहले फेसबुक पर बयानबाज़ी की और बाद में श्रद्धांजलि दी। रेप जैसे संवेदनशील मामले में आरोपी की जिंदगी भर की कमाई गई इज्ज़त, विश्वसनीयता और प्रतिष्ठा दांव पर लगी होती है। बड़ा और जिम्मेदार नाम होने के नाते आपके हर एक स्टेटमेंट को गंभीरता से लिया जाता है, फिर भी आपने फेसबुक पर खुर्शीद अनवर के खिलाफ झट से टिप्पणी कर दी। सफाई में उदय प्रकाश का कहना है कि फेसबुक पर की गई टिप्पणी महज़ एक्सप्रेशन है और यह वक्त बेवक्त बदलती रहती है। यानी कि कभी लड़की के पक्ष में हो सकती है और कभी खुर्शीद अनवर के पक्ष में। कभी ‘पीड़िता’ के पक्ष में तो कभी ‘बलात्कारी’ के पक्ष में।

आशुतोष कुमार: कॉमरेड प्रफेसर आशुतोष कुमार कहते हैं कि मैंने खुर्शीद के पक्ष या विपक्ष में कभी कुछ नहीं लिखा। एक बार बिना नाम ज़ाहिर किए कहानी के रूप में ज़रूर लिखा था। दूसरी बार उनकी मौत के पहले लिखा लेकिन मौत की ख़बर सुनते ही हाइड कर लिया। खुर्शीद अनवर ने मुझे नाम लेकर बताया था कि आशुतोष कुमार ने उनके खिलाफ लिखा है। एक दिन उन्होंने फोन करके बताया कि पत्रकार अभिषेक श्रीवास्व ने फेसबुक पर उनका नाम लेकर लिख दिया है। बहरहाल, कॉमरेड आशुतोष कुमार खुर्शीद अनवर से कभी नहीं मिले हैं और ना ही इस मामले में सीधे खुर्शीद से तस्दीक किया, बस इनके पास सीडी लेकर पहुंचे लड़कों की बातों में आ गए। हैरत इस बात की यह कि आशुतोष कुमार से लफंगों ने पूछा कि क्या यह सीडी यूट्यूब पर डाल दें, लेकिन बकौल आशुतोष कुमार उन्होंने मना कर दिया। खुर्शीद के खिलाफ कैंपेन करने वालों की समझ, गंभीरता और उनकी मंशा का अंदाज़ा खुद लगाइए।

लड़की का अपमान, चरित्र हनन और धमकी: खुर्शीद की मौत से पहले जब उनके खिलाफ फेसबुक पर कैंपेन किया जा रहा था तो मोहम्मद अनस ने बेशक उस लड़की के चरित्र पर सवाल उठाया लेकिन समर अनार्य ने उसकी तमाम बयानबाज़ी की वजह से उसे संदिग्ध कहा। उसे संदिग्ध कोई भी कह सकता है और कहना भी चाहिए जब लड़की की कहानी में सैकड़ों पेच हों और लड़की किसी कानूनी कार्रवाई की बजाय सिर्फ लोगों तक जाकर बस अपनी आपबीती बता रही है। खुर्शीद के दूसरे दोस्त समर अनार्य ने लड़की के साथ पुलिस या दूसरी कानूनी मदद की पेशकश आधा दर्जन लोगों के सामने की, लेकिन वह हर बार इस तरह के प्रस्ताव को नकारती रही थी और इस बार भी नकारा। ध्यान रहे कि खुर्शीद अनवर की इन दोनों लोगों से दोस्ती महज़ साल भर पुरानी है। खुर्शीद के हमउम्र और उनके पुराने दोस्तों ने कभी भी एक शब्द लड़की के खिलाफ कहीं कुछ नहीं लिखा, बल्कि खुर्शीद को फेसबुक से दूर रहने की सलाह देते रहे लेकिन उनकी आत्महत्या के बाद ज़रूर इन्होंने सीमाओं से परे जाकर हंगामा किया। यहां एक बार फिर ध्यान दिया जाना चाहिए कि खुर्शीद की मौत से पहले मोहम्मद अनस और समर अनार्य को छोड़कर उनके किसी भी दोस्त ने फेसबुक पर खुर्शीद के पक्ष में लिखते वक्त सीमाएं नहीं लांघी लेकिन दिग्गज साहित्यकार और कॉमरेड प्रफेसर ने मामले को बिना जाने समझे उनके खिलाफ लिखने का काम ज़रूर किया।

खुर्शीद की मौत के तार यहां हैं: खुर्शीद अनवर की जान के पीछे पड़े तीन लड़के टीम बूंद से उत्तराखंड त्रासदी के वक्त जुड़े। उस वक्त बूंद की हालत यह थी कि बेइमान, मौकापरस्त, आईडेंटिटी ऑबसेस्ड और नेशनलिस्ट बिना किसी स्क्रीनिंग के टीम का हिस्सा होते जा रहे थे। मुमकिन है कि तीनों लड़के इसी कैटगरी के हैं। टीम बूंद में कुछ दिनों तक रहकर इससे खुद को अलग करने वाले एक सदस्य बताते हैं कि तपन कुमार टीम बूंद में बदमज़गी पैदा करने वाला शख्स था। मुखिया मयंक और इला थे लेकिन कई फैसले यह खुद कर लेता था जिसकी वजह से मयंक कई बार परेशान हुआ। बाद में इसी शख्स ने इकट्ठा हुए लाखों रुपयों को लेकर सवाल किया और टीम दो फाड़ हो गई। टीम में खींचतान चरम पर थी उसी वक्त लड़की का मामला सामने आया। इला के मुताबिक घर आने के बाद लड़की दो दिन उसी कपड़े में रही और बाहर जाते वक्त कपड़ा बाथरूम में छोड़कर चली गई जहां पहले से कपड़ों का ढेर था। अगर इला की बातों पर विश्वास करें तो कोई लड़की सबसे अहम सबूत के प्रति इतनी लापरवाह कैसे हो सकती है। फिर लड़की दूसरी टीम के संपर्क में आई जिसकी अगुवाई तपन कुमार कर रहा था जहां से मयंक और इला जोशी को एक्सपोज़ करने और खुर्शीद को अपराधी बनाने का खेल शुरू हुआ। इन लड़कों ने बूंद के एक सदस्य को जब ‘बलात्कार’ की कहानी सुनाकर फोन करके मदद मांगी तो कुछ ही मिनट के अपना अजेंडा भूलकर इला और मयंक को सबक सिखाने की बात करने लगे।

12 सितंबर की रात और खुर्शीद का घरः लड़की ने अपनी वीडियो टेस्टीमनी में कहा है कि वह नीट शराब पीती है। खुर्शीद के घर पहुंचने पर उसने रम पीने की फरमाइश की। खुर्शीद ने अपने ड्राइवर को भेजकर रम मंगवाई और लड़की ने वहां भी नीट रम पी। खुर्शीद ने टीम बूंद से पहले ही कहा था कि कोई भी उनके घर पर नहीं रुकेगा। लेकिन उस रात लड़की की तबीयत बिगड़ी, फिर भी बूंद के सभी सदस्य उसे छोड़कर आए। यह टीम बूंद की गलती या साज़िश दोनों हो सकती है। वहां शराब नहीं पीने वाली एक लड़की को खुर्शीद ने रोका लेकिन वह नहीं रुकी। आरोपों के मुताबिक खुर्शीद ने लड़की को ड्रिंक्स में नशीली दवाएं मिलाकर पिलाया ताकि उसका रेप कर सकें। फिर एक ऐसी लड़की को वह अपने घर क्यों रोक रहे थे जो पूरी तरह होशोहवास में थी और शराब नहीं पी थी।

हत्या या आत्महत्या: रहस्य कुछ भी नहीं बस क्रिएट किया जा रहा है। द्वारका में अपने सबसे करीबी दोस्त अज़हर के घर रुके खुर्शीद अनवर वॉक करने की बात कहकर बाहर निकले। उन्होंने पर्स, फोन वगैरह सब फ्लैट पर ही छोड़ा। 10-15 मिनट अज़हर ने घर से बाहर निकलकर देखा तो खुर्शीद दूर-दूर तक नहीं दिखाई दिए। अज़हर ने फौरन खुर्शीद के साथ ज्यादातर रहने वाले लारैब को फोन किया जो सुबह-सुबह इस मामले में वकील की तलाश में निकले थे। लारैब अभी गाड़ी मोड़कर द्वारका की ओर बढ़ ही रहे थे कि उनके पास खुर्शीद अनवर के पड़ोसी का फोन आया। बकौल लारैब- पड़ोसी ने कहा कि खुर्शीद अनवर फ्लैट की चाबी मांग रहे हैं। खुर्शीद अनवर की गैरमौजूदगी में घर की चाबी उनके दफ्तर में होती है। लारैब ने खुर्शीद अनवर के ड्राइवर कृष्णा को फोन कर चाबी वसंत कुंज लेकर पहुंचने को कहा। लेकिन कृष्णा के पहुंचने से पहले ही पड़ोसी का दोबारा फोन आया कि खुर्शीद अनवर चौथी मंजिल से कूद गए हैं। खुर्शीद अपने घर से नहीं कूद सकते थे क्योंकि उनके फ्लैट की बालकनी से कूदने पर सेकेंड फ्लोर का टैरिस है जहां से मौत होने की कोई संभावना नहीं बनती।

खुर्शीद अनवरः खुर्शीद को मैं एक जिंदादिल, यारबाश, महिलाओं के प्रति संवेदनशील और निहातय क़ाबिल शख्स के तौर पर जानता हूं। एक बार उनसे मिलने वाला उनका मुरीद हो जाता था। एक वक्त था कि मैं हफ्ते में दो से तीन बार शाम उनके घर गुज़ारता था। कई बार मैं किसी काम में फंसा होता था तो मेरी दोस्त अकेली खुर्शीद के घर जाती, खाती-पीती और अगले दिन अपने दफ्तर निकल जाती। उसने या खुर्शीद के घर रुकने वाली हर महिला मित्र ने उन्हें इमानदार और संवेदनशील मानती है। खुर्शीद विमन इश्यूज पर काम करते थे और उनकी ज्यादातर दोस्त फेमिनिस्ट हैं। कहीं उनके चरित्र को लेकर कोई सुगबुगाहट नहीं। हां एक बात ज़रूर है कि खुर्शीद किसी को अपने घर बड़ी बेबाकी से बुलाते थे। वह किसी को भी बुलाते वक्त उसका महिला या पुरुष होना नहीं देखते थे। कई महिलाएं उनके घर जाने के प्रस्ताव ठुकरा देती थीं। ज़ाहिर है कि उनकी समझ होगी कि मैं किसी पुरुष मित्र या सहयोगी के घर अकेली कैसे और क्यों जाऊं? अब अगर इस समझ को बाज़ार में छोड़ दिया जाए तो कुछ ही घंटे में खुर्शीद बलात्कारी घोषित कर दिए जाएंगे। और खुर्शीद ही क्या, किसी के भी बारे में यह बात फैला दी जाए कि फलां पुरुष महिलाओं को अपने घर शराब पीने के लिए बुलाते हैं तो लोग उसका क्या हश्र करेंगे, यह आप खुद ही तय करें।

खुर्शीद नहीं रहे, तमाम दलीलें फिज़ूल लेकिन उनसे मिलने वाला हर एक शख्स जानता है कि वो क्या इंसान थे।"
http://hillele.org/2013/12/25/नो-कनफ्यूज़नः-खुर्शीद-अन/
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Asad Jafar - "कविता कृष्णन जवाब दो :
कविता कृष्णनः तहलका मामले में न्यूज़ चैनलों पर कहती रहीं कि पीड़ित लड़की को तय करने दीजिए कि वह क्या चाहती है। उसने इंटरनल जांच की मांग की है तो होने दीजिए। भविष्य में वह पुलिस की शरण जाना चाहे तो उसकी मर्जी है। अब खुर्शीद अनवर का मामला देखिए। तमाम कोशिशों के बाद कविता कृष्णन की लड़की से कोई मुलाकात नहीं हुई, फिर भी कुछ लफंगों के संपर्क करने पर उन्होंने आईएसडी से संपर्क कर जांच करने की वकालत क्यों की? बिना लड़की की मर्ज़ी के वह इस मामले में पार्टी क्यों बनी? आईएसडी से संपर्क करने से पहले कविता कृष्णन ने खुर्शीद अनवर से सीधे आरोपों के संबंध में सवाल-जवाब क्यों नहीं किया? जबकि खुर्शीद हर जगह सफाई देते फिर रहे थे कि वह एक साज़िश का शिकार हुए हैं।

लानत है ऐसी फ्रीडम ऑफ़ स्पीच पर जो आप का घर उजाड़ दे आपके बच्चो को यतीम बना दे आपके कारोबार को नेस्तनाबूद कर दे और फिर भी आप अपने को सोशल एक्टिविस्ट कि संज्ञा से पहचनवाते रहे आप सोशल कहाँ रह गए आप तो अहले खबीस कि क़ौम की नुमाइंदगी करने वाला ख़बीस ए ख़ास है।

आज मै कविता कृष्णन से यह सवाल करता हु की आओ पब्लिक प्लेटफार्म पर और बताओ आज तक तुमने औरतो के हुकूक के लिए क्या किया नहीं बता पाओगी यह तो बता दो गी १०० बार टीवी शो पर आयी क्या १०० औरतो को बदहाली से बाहर निकला।

बुद्धिजीवी लगा रहे हर टुकड़े
बेकार के तर्कों का कांटा,
कोई कर रहा बाल कल्याण,
कोई महिलाओं की रक्षा के लिये चला बाण,
कोई गरीब को अमीर बनाने में जुटा,
कोई बीमार के लिये हमदर्दी रहा लुटा,
हजारों हाथ उठे दिखते हैं
जमाने की भलाई के लिये
मलाई मिलने का मौका मिलते ही
कमजोरों की पीठ में छुरा घौंपते हैं।"

"क़िश्वेर झूट बोल रही है ऑन रेकॉर्डव वह यह कह चुकी है कि उसने लड़की का बयान रिकॉर्ड किया जो अपने आप में ज़ुर्म है फिर उसकी एक प्रति उसने लड़की के मित्र को दिया जो दुरसा ज़ुर्म आपका बयान लेने के दौरान यह कहना कि वह लड़की जिसने आरोपित किया है वह उसकी मूल स्वेंसेवी संस्था कि ओर से रिटर्न गिफ्ट था तीसरा आरोप। मधु क़िश्वेर कितना और झूट बोलोगी तुम्हे पता नहीं झूट के पैर नहीं होते किसी भी समय वह धड़ाम से धरती पे गिर जाता है फिर उठने कि शक्ति उसमे नहीं होती है।

मधु क़िश्वेर चिल्ला कर और अपने रसूक का तथा अपनी विचार धरा से जुड़े लोगो की शाह पर कुछ भी करने और कहने कि किये स्वतंत्र है। प्रदीप शर्मा IAS अधिकारी के विषय ने भी कुछ इसी प्रकार कि भाषा का इस्तेमाल मैडम ने किया था जिसके खिलाफ श्री प्रदीप शर्मा के द्वारा मानहानि का मुकदमा पंजीकृत करवाया गया है। कोई सिखाये मधु जी को मर्यादा में रहना उनके लिए तथा समाज के लिए अच्छा होगा।"
https://www.facebook.com/jafar42
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क्यों ? खुर्शीद अनवर पर आरोप लगाने वाले पैसा क्यों माँग रहे थे ?
Shahnawaz Malik - "खुर्शीद के दोस्त या फिर उनके मिलने जुलने वालों ने इस आरोप में कभी यकीन नहीं किया, फिर भी लड़की के साथ रहे। खुर्शीद पर आरोप लगने के बाद उनके पक्ष या समर्थन में मैंने कभी कुछ नहीं लिखा क्योंकि संगीन आरोप लगे थे तो बस जांच ही एक मात्र रास्ता था ना कि नेतागीरी। लड़की समेत खुर्शीद का दुष्प्रचार करने वालों लफंगों ने जिन भी लोगों से संपर्क साधा, हर समझदार व्यक्ति ने यही कहा कि भई हम मदद बाद में करेंगे लेकिन सबसे पहले पुलिस में शिकायत कीजिए। लेकिन लड़की किसी भी सूरत में पुलिस या किसी भी जांच के लिए तैयार नहीं थी। फिर फेसबुक पर नेतागीरी करने का क्या मतलब। खुर्शीद की सबसे बड़ी परेशानी यही थी कि लोग कानूनी रास्ता अपनाने की बजाय फेसबुक पर उनके खिलाफ लिख रहे हैं। खुर्शीद जवाब दे देकर थक चुके थे। आशुतोष दा उनसे कभी नहीं मिले। फेसबुक से जानते थे लेकिन खुर्शीद से बिना मिले उनके खिलाफ पोस्ट क्यों लगाई। कविता कृष्णन को जब पता चला कि लड़की कानूनी कार्रवाई के पक्ष में नहीं है फिर बीच में क्यों कूदी। यह सरासर अपनी ब्रांडिंग और नेतागीरी चमकाने का मामला है।...

....मुद्दई सुस्त और गवाह चुस्त वाली बात ठीक नहीं है। वह लड़की सिर्फ घूम घूम कर यही बता रही थी कि उसका रेप हुआ है। साला दुनिया को बताने से इंसाफ मिलता है या कानून की शरण में जाने से। और आप जितना आसान समझ रहे हैं. वैसा है भी नहीं। जो लफंगे उस लड़की को लेकर घूम रहे थे, वह पीड़िता और रेप की बात कम करते थे और बूंद के मुखिया इला और मयंक की बात ज्यादा करते थे। इला मयंक से यह रुपया मांग रहे थे जो पब्लिक से इकट्ठा हुआ था। लड़की भी मांग रही थी। पता करें। क्यों चाहिए था इन्हें पब्लिक का रुपया अपनी अय्याशी के लिए।"
ये कमेंट्स इस पोस्ट पर हैं :
On the Death of Khurshid Anwar: Kalyani Menon Sen and Kavita Krishnan DECEMBER 22, 2013
(http://kafila.org/2013/12/22/on-the-death-of-khurshid-anwar-kalyani-menon-sen-and-kavita-krishnan/)
"खुर्शीद अनवर के निधन से हमें गहरा सदमा और दुख पहुंचा हैं।

महिलाओं के खिलाफ हिंसा के खात्मे के लिए प्रतिबद्ध कार्यकर्ता होने के नाते खुर्शीद अनवर के खिलाफ लगे आरोपों के सिलसिले में हम कानून और न्याय की मुनासिब प्रक्रिया को सुनिश्चित करवाने की कोशिश करते रहे।

ये आरोप सोशल मीडिया पर गैरजिम्मेदाराना बहसों में लगाए गए। वहीं शिकायतकर्ता के खिलाफ भी धमकी और चरित्र-हनन का सामूहिक अभियान चलाया जा रहा था।

हम जानते हैं कि सोशल मीडिया पर इस तरह के गैरजिम्मेदाराना अभियान से दोनों पक्षों के अधिकारों का उल्लंघन हुआ है। इसलिए हम दोनों [इन्स्टीच्यूट फॉर सोशल डेमोक्रेसी की बोर्ड सदस्य की हैसियत से कल्याणी और एक राष्ट्रीय स्तर के महिला संगठन की पदाधिकारी के बतौर कविता] ने शिकायतकर्ता से संपर्क करने की कोशिश की। हमने कोशिश की कि शिकायतकर्ता सामने आ सके जिससे समुचित जांच शुरु हो सके।

हम समझ-बूझ कर सीधे पुलिस या राष्ट्रीय महिला आयोग के पास नहीं गए क्योंकि हमारे पास इस मामले में शिकायतकर्ता के स्पष्ट निर्देश नहीं थे। हमने अभियुक्त और शिकायतकर्ता, दोनों की गोपनीयता का हर संभव तरीके से पूरा ध्यान रखा। हम स्पष्ट रूप से कहना चाहते हैं कि हमने शिकायतकर्ता की गवाही और मामले से जुड़े किसी भी अन्य तथ्य को किसी से साझा नहीं किया।

खुर्शीद अनवर की असामयिक एवं दुखद मृत्यु की त्रासदी अपने पीछे बहुतेरे अनुत्तरित सवाल छोड़ गई है। सोशल मीडिया पर शिकायतकर्ता के खिलाफ लगातार जारी धमकियाँ और खुसफुसाहटें भी उतनी ही व्यथित करने वाली हैं। हमें डर है कि इस तरह के अभियानों से इस त्रासद मामले के समाधान की बची-खुची संभावना भी नष्ट हो जाएगी।

हम खुर्शीद अनवर के मित्रों, सहयोगियों और परिवारजनों के दुख के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त कराते हुए आशा करते हैं कि धर्मनिरपेक्षता और शांति के लिए किया गया उनका महत्वपूर्ण काम उनकी सच्ची स्मृति हो।"
https://www.facebook.com/shahnawaz.malik.908

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