Tuesday 7 January 2014

प्रश्नोत्तर : इन्सान की कीमत - गिरिजेश

प्रश्न : क्या अपने देश में मरने के बाद ही किसी इन्सान की कीमत पता चलती है ? - Ankur Rai

उत्तर : मेरे युवा दोस्त, अपने देश के बारे में यह कथन बिलकुल ही सच नहीं है. दूसरों को छोड़ो. तुम ख़ुद अपने को और अपने ही साथ मुझको भी इस कथन के उलटे उदहारण के रूप में देख लो.
मैंने तो तुम्हारी 'कीमत' हम दोनों में से किसी के भी 'मरने' से पहले ही पहिचानी है और सार्वजनिक तौर पर घोषित भी किया है कि 'अंकुर' को 'वृक्ष' के रूप में देखने की कोशिश करो. वह अपने लिये जितना ले रहा है, लोगों को उससे बहुत अधिक फल और छाया देगा. मेरे मरने के बाद भी तुमको तो जीना ही है. तब देखना कि क्या मैंने ग़लत कहा था !

हाँ, मेरी कहानी अपनी ज़िन्दगी के 'दोहरेपन' के बारे में आम लोगों से थोड़ा अलग ही है. मेरी असली कीमत आम तौर पर मेरे कुछ कम समझदार 'दोस्तो' को कम से कम तीन साल के बाद ही समझ में आती रही है. 
जबकि मुझे दूसरों से कुछ अधिक ही करीब से जानने वाले मेरे कुछ अधिक समझदार 'मासूम' दोस्तों को तो दशकों के बाद समझ में आ पाया है कि मैं कितना बड़ा अवसरवादी, जातिवादी, झुट्ठा, चोर, कुण्ठित, पतित, मनोरोगी, विश्वासघाती, ढोंगी, नीच, लफंगा, कुत्ता, सूवर और लालची आदमी हूँ. 
अरे यह क्या ! 
तुम मेरी बात सुन कर मुस्कुरा क्यों रहे हो !

और अभी तो मैं घोषित तौर पर पूरी तरह 'मरा' भी नहीं हूँ. 
मेरा शरीर अभी भले ही बेकार हो चुका है. 
मगर अभी तक कम से कम मेरा दिमाग कुछ-न-कुछ ही सही काम तो कर ही रहा है और वही इसका सुबूत है कि मैं अभी भी ज़िन्दा ही हूँ. अभी मैं 'मरा' नहीं हूँ.

फिर भी ये सारे लोग भी कितने बेवकूफ़ हैं, जो मुझे बिला वजह इतना अधिक 'भाव' देते रहते हैं. ये भी सब के सब कुछ ही वर्षों के बाद या फिर कुछ दशकों के बाद एक न एक दिन उन सभी 'दोस्तों' की तरह ही मुझे अपने करीब आने देने और अपना 'दोस्त और शुभचिन्तक' बनने देने का मौका देने के अपने-अपने फैसले पर खूब-खूब पछतायेंगे और तब उनकी ही तरह ये सभी लोग भी मुझे भर हिक कोसेंगे. ये तो अभी मेरी कीमत समझ ही नहीं सकते. क्योंकि मैं तो अभी तक उनकी ही तरह इन सब लोगों का भी बड़ी बारीकी से 'ब्रेन-वाश' कर देता रहता हूँ. इसलिये ये लोग अभी तो मेरे मुखौटे से अलग कर के मेरा असली चेहरा पहिचान ही नहीं सकते.
क्या अभी तुम भी मेरे साथ इन सब लोगों की बेवकूफ़ी पर हँस रहे हो !

अपने बारे में अगर मैंने कुछ भी गलत कहा हो, तो बताना. 
कितना बुरा हूँ मैं ! है न ! 
फिर भी लोग अगर मुझसे सटने की गलती करते रहते हैं, तो ग़लती उनकी ही है. 
इसमें मेरा क्या अपराध है. 
जब कि मैं तो सबको साफ़-साफ़ बता भी देता रहता हूँ - 
"सजगै रहिया भइया, सटला त गइला !" 
मगर उस पर भी लोग हैं कि मुझ जैसे धूर्त से इतना अधिक सटने से बाज नहीं आ रहे. अब तुम ही बताओ कि मैं क्या करूँ !

अरे अभी तक तुमने मेरी बात का कोई उत्तर क्यों नहीं दिया ! 
मैं तो लोगों की बेवकूफ़ी पर ठहाका लगा रहा हूँ ! 
मगर अब तो तुम भी मेरे साथ ठहाका लगाने में शामिल हो गये !
अरे भाई, इतना ज़ोर से मत हँसो !
आखिर लोग क्या सोचेंगे ! 

और फिर देखो यार, लोग तो ठहरे लोग ही. 
वे सोचें चाहे जो भी, मगर कुछ तो कहेंगे ही न ! 
क्योंकि लोगों का तो काम ही कहना है. है कि नहीं !

अब तो मुझे भी लग रहा है कि तुम भी मेरी ही तरह लोगों के साथ बहुत अधिक ज्याद्दती कर रहे हो ! 
कर रहे हो न ! 
देखो लोग तो बहुत ही शरीफ़ हैं.
वे हमसे भी अपने साथ ऐसी ही शराफ़त की उम्मीद कर रहे हैं.
बोलो मेरी बात सही है न ! बताओ, है या नहीं ! है न !
आज क्या मैंने कुछ उलटा-पलटा बोल दिया ! बोला न ! 
फिर भी ढेर सारे प्यार के साथ तुम्हारा अपना ही दोस्त - गिरिजेश 
(22.12.13. 1.30.A.M.)

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