Tuesday 7 January 2014

व्यायाम और 'व्यक्तित्व विकास परियोजना'



प्रिय मित्र, 'व्यक्तित्व विकास परियोजना' के सदस्य ये दो युवक व्यायाम करने के बाद मस्ती में एक दूसरे के साथ दिख रहे हैं. इनके नाम हैं जनार्दन और बिट्टू सिंह. दोनों ही ग्यारहवीं के छात्र हैं. 

मैं कल्पना करता हूँ कि किसी दिन आज़मगढ़ के अनेक युवक इसी तरह व्यायाम कर के अपने स्वस्थ शरीर से मानवता की सेवा करने को प्रतिबद्ध होंगे. 
इस चित्र को देखने के बाद मेरी यह कविता भी पढ़िए और सोचिए कि क्या आप भी इनकी तरह स्वयं के शरीर को बनाना पसन्द करेंगे. 
अगर हाँ, तो देर मत कीजिए. 
नये वर्ष के आगमन के अवसर पर आज ही निर्णय कीजिए और कल से लागू कर दीजिए. 
ढेर सारे प्यार के साथ - आपका गिरिजेश 
मेरा अपना फ़र्ज़ - गिरिजेश
रोज सवेरे कसरत करने में भी क्या कुछ कठिनाई है? 
“कसरत नहीं किया” - कह देने पर क्या लाज नहीं आयी है?

हरदम दुनिया में शरीर ही तो सब कुछ करता आया है; 
मरियल-सा, कमजोर, आलसी, रोगी मित्र किसे भाया है?

जितने रोग, डॉक्टर उतने, उनसे भी हैं अधिक दवाएँ;
बेच-बेच कर, लूट मुनाफा, पूँजी दुनिया में इतराये। 

खाना नहीं जहाँ मिल पाता, कैसे महँगी मिलें दवाएँ?
पूँजीवादी क्रूर व्यवस्था! क्या अब तक हम जान न पाये?

तो क्या हम भी रोगी बन बिस्तर में पड़ सड़ कर मर जायें?
और हमारे भी सिरहाने, झोला भर कर रहें दवाएँ !

कसरत करना, स्वास्थ्य बनाना, चन्द मिनट में कर दिखलाना।
सबसे कठिन काम में भी, अपने बल का लोहा मनवाना। 

छोड़-छाड़ कर सबको पीछे, हर टक्कर में आगे आना।
किसे नहीं अच्छा लगता है - अच्छा कर ताली बजवाना?

और क्रान्तिकारी जितने थे, क्या टुटहे, मरियल टट्टू थे?
थे वे सबल पेशियों वाले, उन पर तो सब ही लट्टू थे।

मैं भी सबल शरीर बना कर सबकी सेवा खूब करूँगा।
हर सच को इज़्ज़त बख्शूँगा, सदा झूठ को नफ़रत दूँगा।

गद्दारों से टक्कर लूँगा, और फ़र्ज़ से प्यार करूँगा;
घृणित गुलामी से पूँजी की, भारत का उद्धार करूँगा।

No comments:

Post a Comment