Thursday 29 May 2014

"गर्व से कहो - हम मनुष्य हैं..."


प्रिय मित्र, जन्म से हम सभी मनुष्य हैं. मनुष्य होना केवल जीव-विज्ञान का मामला नहीं है. यह हमें उच्चतर स्तर का संस्कार, चिन्तन और आचरण भी प्रदान करता है. मनुष्यता हमें प्रकृति के सबसे विकसित प्राणी के रूप में सबसे विकसित मस्तिष्क भी देती है. मनुष्यता हमें 'वसुधैव कुटुम्बकम' की चेतना की ज़मीन प्रदान करती हैं. मनुष्यता हमें एक दूसरे से प्यार करना और एक दूसरे की सहायता करना सिखाती है. मनुष्य के लिये समाज से परे अस्तित्व असम्भव है. हमें अकेले न तो तृप्ति प्राप्त हो सकती है और न ही मुक्ति. 

अपने श्रम से हमें उपलब्धियाँ मिलती हैं. जन-सेवा से हमें यश मिलता है. अपनी उपलब्धियों की सार्थकता और अपनी सेवा में विनम्रता और निःस्वार्थ भावना पर ही हमें वास्तविक प्रसन्नता होती है. परन्तु विडम्बना है कि अभी हमारा समाज विभिन्न धर्मों और सम्प्रदायों में विभाजित है. यह विभाजन काल-प्रवाह में अनेक टक्करों के परिणाम स्वरूप अपने वर्तमान रूप तक विकसित हुआ है. जब कि रंग-भेद, जाति-भेद, धर्म-भेद, क्षेत्र-भेद और सम्प्रदाय-भेद ने मनुष्य को मनुष्य से प्यार करना नहीं सिखाया है. इन सब ने मनुष्य को केवल अपने समूह से - अपनी धारा से भिन्न होने पर एक दूसरे से नफ़रत करना सिखाया है. 

किसी का भी किसी परिवार में जन्म होना केवल एक संयोग है. हर परिवार किसी न किसी धर्म को मानता है. ऐसे में केवल जन्म होना गर्व का आधार बन ही नहीं सकता. हम में से जो भी यह सोचते हैं कि वे श्रेष्ठ हैं और दूसरे लोग नीच हैं और अपने इस श्रेष्ठता के भ्रम के आधार पर स्वयं को गौरवशाली मानते हैं. वे वास्तव में अभी भी विचारों के स्तर तक विकसित नहीं हो सके हैं. उनमें से एक नारा लगाता है - "गर्व से कहो हम हिन्दू हैं..." और दूसरा उसके जवाब में नारा लगाता है - "गर्व से कहो हम मुसलमान हैं..." किसी के हिन्दू या मुसलमान परिवार में जन्म होने मात्र से किसी के लिये गर्व का आधार कैसे बन सकता है? 

हम अपने धर्म या सम्प्रदाय को दूसरे धर्म या सम्प्रदाय से श्रेष्ठ मान कर दम्भग्रस्त हो जाते हैं. यह श्रेष्ठताबोध हमारे चिन्तन के फलक को संकीर्ण करता है. दूसरों को हेय दृष्टि से देखना और उनका छिद्रान्वेषण करना हमारी आत्मतुष्टि का आधार बनाता है. साम्प्रदायिकता की घृणा की भाव-भूमि यही है. अपने हिन्दू या मुसलमान होने पर अगर आपको गर्व है, तो अभी आप मनुष्य ही नहीं बन सके. केवल हिन्दू या मुसलमान ही रह गये. 

मिस्टर हिन्दू, क्या आपने अपनी नफ़रत में अपने अगल-बगल के परिवारों में जन्म लेने वाले दूसरे धर्मों और सम्प्रदायों के लोगों को बार-बार अपनी शत्रुता का शिकार नहीं बनाया है ? क्या आपने पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपने ही धर्म की अन्य जातियों के लोगों को और अन्य सम्प्रदायों के अनुयायियों को भावावेश में आकर न केवल उत्पीड़ित और अपमानित किया है, अपितु उनकी निर्ममता के साथ हत्या भी नहीं की है ? और मिस्टर मुसलमान, आपके शिया-सुन्नी के दंगों से कौन अपरिचित है ? क्या इस्लामिक आतंकवाद, शरीयत की बर्बरता और वहाबी कट्टरता की जड़ता ने दुनिया में जगह-जगह बार-बार शान्ति भंग नहीं की है ? 

दंगे होते हैं - यह सत्य है. मगर दंगे क्यों होते हैं - यह विचारणीय है. हिन्दू को मुसलमान के खिलाफ़ भड़काने और मुसलमान को हिन्दू के विरुद्ध नफ़रत से भरने और उन्मादग्रस्त करने वाले दोनों धर्मों के स्वघोषित ठेकेदारों के खुले खेल से अब कोई भी अपरिचित नहीं है. सत्ता के पायदान चढ़ने में यह नफ़रत और इनकी उपज दंगे सीढ़ियों की तरह काम दे रहे हैं. भगवा गिरोह की सरकार बन जाने के बाद यह नफ़रत और उन्माद तनिक भी कम नहीं हुआ है बल्कि और बढ़ा ही है. 

हमारे देश में इस चुनाव के बाद एक कठिन दौर सामने आ चुका है. मजबूत विपक्ष के बिना लँगड़े लोकतन्त्र की अपनी सीमाएँ स्पष्ट हैं. इस दौर की अपनी विशिष्ट चुनौतियाँ हैं. यह दौर हम सब से एकजुटता की माँग करता है. आपसी मतभेदों को दरकिनार करके हम सबको एक साथ मिल बैठ कर सोचना चाहिए. हम सब को परस्पर एक दूसरे को नफ़रत की जगह मुहब्बत बाँटना चाहिए. 

हम सबको यह कामना करनी चाहिए कि अब कोई और इस अन्धी नफ़रत का शिकार न हो. हमें प्रयास करना चाहिए कि अब कहीं और कोई दंगा न हो. हमें अपने आस-पास प्रेम और भाईचारा की सहज भावना को बनाये रखने के लिये सचेत प्रयास करना चाहिए ताकि अब और किसी की बेटी के साथ दुराचार न हो. हमें सतर्क रहना चाहिए कि अब कोई और अफ़वाह न फैला सके. हमें अपने दोस्तों के कन्धे से कन्धा मिला कर एक स्वर में आवाज़ बुलन्द करनी चाहिए ताकि अब कहीं कोई और घर और फसल न जलायी जा सके. यही हमारे मनुष्य होने की शर्त है.

ढेर सारे प्यार के साथ - आपका गिरिजेश (25.5.14. 10.45p.m.)

{ विशेष टिप्पणी :- इस लेख में प्रस्तुत विचारों को मूलतः मेरे सम्मानित मित्र प्रतिबद्ध गाँधीवादी सरल शैली में लेखन-विधा के विशेषज्ञ और इस विधा में मेरे मार्गदर्शक श्रीHimanshu Kumar जी द्वारा 'व्यक्तित्व विकास परियोजना' के सदस्यों को फोन से अपने सम्बोधन में व्यक्त किया गया था. उनके वक्तव्य का लिंक है :

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