Friday 2 May 2014

मोदी के विरुद्ध लिखने के सवाल के बारे में :



Sudhir Rai Kaushik का प्रश्न - Sir aap sirf modi pe hi likh rhe h aaz kal. kya aapki soch vyaktiwadi ho gai h ? aap b maan chuke h k next govt BJP k hi banani h.. Mananiy SP party k netavo k aaz kl jo jubaan fhisal rhi h uspe kyo kuch nhi likhye.

उत्तर : प्रिय मित्र Sudhir Rai Kaushik जी, आप का प्रश्न उचित है. मैं अन्य महत्वपूर्ण विषयों पर भी लिखने का काम लगातार कर रहा हूँ. अगर आप उन पर भी ध्यान देंगे, तो उनकी अहमियत को भी समझ सकेंगे. लगता है कि आप भी केवल मोदी से जुड़े मेरे द्वारा शेयर किये गये मैटर को ही ध्यान से देख पा रहे हैं. 

ऐसा इसीलिये हो रहा है क्योंकि आप जैसे अनेक युवा चुनाव में भरपूर दिलचस्पी ले रहे हैं. और 'चुनाव के बुखार' से पीड़ित इन सभी युवाओं में से अनेक अबोध किन्तु उत्साही युवाओं को 'मोदियाबिन्द' की बीमारी हो गयी है. मुझे भी अनेक ज़िम्मेदार मित्रों की ही तरह उनकी दृष्टि को इस भीषण जनद्रोही बीमारी से बचाने के गम्भीर दायित्व का भी वहन करना पड़ रहा है. 

अवसरवाद के अनेक रूप हैं. व्यक्तिवाद भी अवसरवाद ही होता है. पूँजीवाद जब जनवादी विरोध के प्रतिवाद के सहज स्वर को भी सहन नहीं कर पाता है और हर ऐसी आवाज़ को कुचल कर ही अब और शोषण करना उसके लिये मुमकिन हो सकता है, तो वह जनतन्त्र की रामनामी चादर उतार फेंकता है. और व्यवस्था का सञ्चालन जनतान्त्रिक और वैचारिक धरातल पर करने की जगह व्यक्ति केन्द्रित फ़ासिस्ट तरीके से करता है. 

धनतन्त्र को बनाये रखने की साज़िश को जारी रखने में इस तरीके से उसे लोगों की एकजुटता को तोड़ने और उन के बीच नफ़रत फ़ैलाने और भावनात्मक और अन्धा जोश भरने में आसानी होती है. साम्प्रदायिक दंगे इसमें उसकी भारी मदद करते हैं. इसलिये भड़काऊ भाषण दे-दे कर साम्प्रदायिकतावादी गिरोह जगह-जगह दंगे भी करवाता रहता है. इस कड़ी में संसदीय दलों, दंगाइयों, सत्ता और तन्त्र की अन्तिम साज़िश मुज़फ्फरनगर के दंगो के रूप में सामने आ चुकी है.

फासिज़्म पूँजीवादी समाज व्यवस्था के विकास की एक मन्जिल है और उस मन्जिल की अपनी एक विचारधारा भी है. समाजव्यवस्था की ऐसी स्थिति में चले जाने के बाद पूँजीवादी विचारधारा को मानने अन्य सभी दल भी उसी फ़ासिस्ट तरीके से सोचने और सरकार चलाने का काम करने लगते हैं. इसके लिये आप मायावती, मुलायम सिंह और ममता के उदहारण दे सकते हैं. 

फ़ासिस्ट तत्व जन-सामान्य की रोज़मर्रा ज़िन्दगी से जुड़ी महँगाई, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार, अभाव, अलगाव आदि असली समस्याओं से लोगों का ध्यान भटकाने के लिये जनता के बीच के धर्म, सम्प्रदाय और जाति से जुड़े सवालों को उछालते हैं. बिका हुआ मीडिया इसमें उनकी भरपूर मदद करता है. इस तरह 'बाँटो और राज करो' को चरितार्थ करने के लिये फासिज़्म विचारों की जगह व्यक्ति को केन्द्रित करके प्रचारित करता है.

अन्य संसदीय दलों में भी असह्य दलदल है. मगर वैचारिकता या तो वामपन्थ के पास है या फिर साम्प्रदायिकता फैलाने वाले कट्टर हिन्दूवादी आर.एस.एस. के समर्पित कार्यकर्ताओं में है. भले ही वह अवैज्ञानिक, दकियानूसी और दक्षिणपन्थी ही सही. 

युवाओं के अतिरिक्त और कोई सामाजिक शक्ति समाज को बदलने की अपनी क्षमता अभी तो नहीं ही दिखा पा रही है. संसदीय वाम भी अपनी परम्परागत दृष्टि की सीमाओं के चलते इसीलिये वोट-बैंक की राजनीति में सफल नहीं हो सका. और अपनी क्रान्तिकारी पृष्ठभूमि को छोड़ कर सत्ता-प्रतिष्ठान की गणेश-परिक्रमा करने के चक्कर में वैचारिक तौर पर भी दीवालिया साबित हो चुका है. 

अतएव अब सामजिक परिवर्तन के लिये अनवरत वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रचार, वैचारिक जागरण और नूतन सामजिक प्रयोगों की अनिवार्य आवश्यकता है. और वैचारिक जागरण के लिये वैचारिक विमर्श की ही आवश्यकता होती है. 

और फिर सच का सवाल मेरे लिये सबसे बड़ा सवाल है. और मोदी ऐंड कम्पनी लगातार सरासर झूठ का गुब्बारा फुलाती रहती है. इतिहास के सवाल पर भी असहनीय स्तर के गड़बड़ बयान आ चुके हैं. विकास के सवाल पर भी उनके बड़बोलेपन से सम्बन्धित तथ्यों को प्रस्तुत करने वाले पत्रकारों और विशेषज्ञ जानकारों के तथ्यपरक और विस्तृत लेख मैंने बार-बार शेयर किया है.

आशा है कि इस उत्तर से आपकी जिज्ञासा तृप्त हुई होगी.
साभार - आपका गिरिजेश

एक ही व्यक्ति (मोदी) के बारे में अधिक चर्चा पर एक और सवाल :
Rahul Anand Srivastava : Sir...her saakh pe uloo baithe hai barbad gulista karne ko.. hame to aaj ke bharat me bahut saare bhrast aur anaitikta wale neta nejar aate hai lekin aajkal ek bykti besesh pe hi tipri jyada ho rahi hai..

उत्तर : मित्र Rahul Anand Srivastava जी, इस हमाम में सभी नंगे हैं. कोई भी किसी से कम नहीं है. हर दल में दल-दल है. सभी के नेता वैश्विक पूँजी के लुटेरे व्यापारियों को देश को लूटने के लिये बुलाने में एक जैसा चरित्र रखते हैं. देश बेचने में कोई किसी से पीछे नहीं रहने वाला.

मगर लोगों की बार-बार टिप्पणी का शिकार होने वाला पात्र व्यक्ति अपनी ख़ुद की करनी-करतूत और अंडबंड बयानबाज़ी के चलते ही उपहास और चर्चा का विषय बन रहा है. जब यह जिस चीज़ के बारे में नहीं जानता है, तो क्यों बिलावजह हर जगह फ़र्जी विद्वान बनने के चक्कर में अपना मज़ाक उडवाता है ? दूसरे तो इतिहास की छीछालेदर नहीं कर रहे. मगर यह तो एक तो अनपढ़ है और दूसरे बढ़-बढ़ कर बोलता रहता है. ऐसा क्यों करता है यह ?

यह अगर मूर्ख है, तो अपने अज्ञान को विनम्रता से स्वीकार करने की जगह घमण्ड के साथ अपनी मूर्खता का प्रदर्शन क्यों करता रहता है ? अंग्रेज़ी नहीं जानता है, मगर उलटे अर्थ देने वाली बात जबरदस्ती अंग्रेज़ी में बोलेगा तो मज़ाक का पात्र तो बनेगा ही.
कहा गया है - "जान परत हैं काक-पिक ऋतु बसन्त के मांहि."

और फिर किसी का भी शादी करना गुनाह नहीं है. न ही न करना अपराध है. मगर बार-बार सच छिपाने के बाद अब जाकर कबूल कर लेना, तो बयानहल्फ़ी के हिसाब से अनैतिक अनुचित और अपराध भी है. हर कदम पर एक के बाद एक यह सब अनुचित आचरण करने वाला क्या किसी के भी सम्मान का पात्र हो सकता है ?

ज़रा वह दौर भी याद कीजिये, जब लोग लालू की जोकरई का मज़ाक उड़ाते रहते थे. मगर यह तो लालू से भी आगे निकल गया. कहावत है - "बकरे ने मैं-मैं करी, तुरत कटायो सीस." इसकी दुर्गति का मैं तो कारण यही समझता हूँ.

यह दूसरे दल के लोगों को तो छोड़ दीजिए, ख़ुद अपने ही दल के वरिष्ठ लोगों को जिस तरह अपमानित करता रहा है, क्या उसके बाद इसे कोई सम्मान दे सकता है ? क्या यह जब आडवाणी की उम्र का होगा, तो इसके साथ भी इसके अनुयायी वही सुलूक नहीं करेंगे?

क्यों इसे आतुरता है कि नकली लालकिले से भाषण देने का पाखण्ड करने चला गया ? यह जोकरई करने की क्या ज़रूरत थी ? अगर इसे इतना ही भरोसा ही है कि प्रधानमन्त्री बन ही जायेगा, तो कुछ दिन रुक जाता, तो असली लालकिले से भाषण देने की इसकी इच्छा भी पूरी हो जाती.

मगर तुलसी बाबा गलत थोड़े ही कह गये हैं -
"मूरख हृदय न चेत, जो गुरु मिलें विरंचि सम..."
इसको तो इसका कोई गुरु भी सम्मान नहीं दे सकता क्योंकि गुरु का स्नेह लेने के लिये विनम्रता की ज़रूरत होती है. यह तो अपने गुरु को ही लंगी मारने में उस्ताद हो चुका है ?

और यह देश हमेशा की तरह अभी भी सच का और सादगी का सम्मान करता है. यह देश फकीरों से दुआ पाने के लिये उनके दर पर सिर झुकाता है और हर इन्सान एक दूसरे को सारे मतभेद के बावज़ूद दिल से प्यार करता है. यहाँ मतभेद तो होता है, मनभेद नहीं होता.

यह गाँधी का देश है. यह भगत सिंह का देश है. यह मेहनत और किफायत से जीने और मानवता की सेवा करने वालों का देश है. यहाँ राजा हरिश्चन्द्र से लेकर युधिष्ठिर और राम से लेकर गाँधी तक, मदर टेरेसा और दयानन्द, विवेकानन्द से लेकर जयप्रकाश नारायण और अन्ना तक अपनी सत्य-निष्ठां, सादगी, सेवा, सहजता और विनम्रता के लिये सम्मान पाते रहे हैं. यह देश आज भी साईं बाबा की फ़कीराना मस्ती और कबीर के तेवर से प्रेरणा लेने वाले लोगों का देश है. यहाँ कभी भी सम्पत्ति का सम्मान नहीं हो सका. केवल त्याग का सम्मान करने वालों के इस देश की विशाल जनसंख्या की मानसिकता का क्या यह व्यक्ति कभी भी प्रतिनिधित्व कर सका ?

मगर इसके पास न तो विनम्रता है, न ही सादगी है और न ही स्नेह. लोगों के बीच केवल एक दूसरे के लिये नफ़रत का बीज बोने वाले को लोगों का प्यार कैसे मयस्सर हो सकता है? गरीबों के हमारे देश में इसका अपनी अमीरी का भोंडा प्रदर्शन और फिजूलखर्ची की इन्तेहा कर देना किसे प्रिय लग सकता है ? सब दलों के नेताओं की असलियत का हर हिस्सा, सब का सब कुछ सबको समझ में क्या नहीं आ रहा है ? बिलकुल आ रहा है.

आज ही नहीं, प्रत्येक काल में वैभव मुट्ठी भर के ही पास रहा है. मगर अधिकतर लोग मनुष्य हैं. भले ही वे नितान्त गरीब भी हैं, तो क्या हुआ ! उनकी सूनी और बेबस आँखों में देखिए. कैसे पूरे परिवार के लिये दो वक्त की रोटी भी मुश्किल से जुट पा रही है. ऐसे में तथाकथित विकास की इसकी कोरी गप गरीबी की रेखा के नीचे घुट-घुट कर जीने और कलप-कलप कर मरने वाले आम इन्सान को कैसे अच्छी लग सकती है ?

यह तो अपनी करनी और कथनी के दोहरेपन और झूठ के चलते जितना नंगा हो चुका, वही बहुत है. अभी तो उसका दुर्दिन शुरू हुआ है. अभी तो और भी सच सामने आते जायेंगे. कहा जाता है कि झूठ के पैर नहीं होते, केवल पंख होते हैं. वह आसमान में चकरा तो सकता है, धुवाँ भी फैला सकता है, गर्दा भी उड़ा सकता है. मगर उसके पैर नहीं होते. वह ज़मीन पर सीधा तन कर खड़ा हो ही नहीं सकता. इसके विपरीत सच की सोर पाताल तक जाती है. झूठ और सच के बीच की इस जंग में जीतेगा तो सच ही. झूठ तो हर बार की ही तरह इस बार भी हारने जा रहा है.

मुझे पूरी आशा है कि जो बात सब लोग समझते रहे हैं, उन सब की तरह ही कम से कम अब तो इसके बारे में पूरा सच समझ में आने में इस विश्लेषण से आपको भी अवश्य ही मदद मिली होगी.

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