Monday 28 July 2014

Ashwini Aadam – मैं अभी ज़िंदा हूँ.......

Photo: Ashwini Aadam –
मैं अभी ज़िंदा हूँ.......
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गर्म जमीन का सबसे सर्द हिस्सा 
मृत्यु का पूर्ण नैराश्य
पथरीली सतह पर टिमटिमाता है आशाओं का दीप 
भुरभूरी मिट्टी चाटती है मेरा सारा दर्द
मेरा अतीत,
कहीं आंसुओं की बहती एक छिपी सी धार 
होंठो की मुस्कान पर नमक छोड़ जाती है
सुनसान कमरे में दबे पाँव घूमती मेरी बिल्ली 
मैं ही हूँ उसकी चमकती आँखों की हिंसक तलाश 
उसकी गुर्राहट में प्रेम है मेरे मर चुके नाम का,
संगमरमरी दरारों में उग आई एक कतरा दूब 
या कोई जंगली नीला फूल गंधहीन 
कब्र के अंधेरों का सबसे सुन्दर प्रमाण है
न जाने क्यों अभी गर्म है 
मेरी मांस विहीन अस्थियों का नंगा पिंजर
जमीन के गड्ढे में गूँजता है झींगुरों का मादक स्वर
बुझे दिए में बाकी है कभी जलने के काले अवशेष 
उसे आँधियों का कोई डर नहीं है,
बड़ी दूर से ताकता है एक उदास देवदूत मुझे 
मैं बंधा हूँ किसी के स्वप्न से यहाँ
वहाँ नर्क की आग मेरी तलाश में शायद
क्रूर देवताओं तक पहुँच गयी है,
मैं आंसुओं का नमक 
बिल्ली के गले में बंधे घुंघुरू की रुनझुन
मेरे गुनाह इंसानी हैं तुम्हारी पाकीजगी के विरुद्ध
जन्नत के राजा थोड़ा इंतज़ार करो....
सबसे आसान है जिस्म का फना हो जाना
मेरी रूह अभी साँसे ले रही है,
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कि मैं अभी ज़िंदा हूँ मेरी कब्र पर एक बिल्ली अभी भी बैठी है।       
– विचित्र आदम

मैं अभी ज़िंदा हूँ.......
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गर्म जमीन का सबसे सर्द हिस्सा
मृत्यु का पूर्ण नैराश्य
पथरीली सतह पर टिमटिमाता है आशाओं का दीप
भुरभूरी मिट्टी चाटती है मेरा सारा दर्द
मेरा अतीत,
कहीं आंसुओं की बहती एक छिपी सी धार
होंठो की मुस्कान पर नमक छोड़ जाती है
सुनसान कमरे में दबे पाँव घूमती मेरी बिल्ली
मैं ही हूँ उसकी चमकती आँखों की हिंसक तलाश
उसकी गुर्राहट में प्रेम है मेरे मर चुके नाम का,
संगमरमरी दरारों में उग आई एक कतरा दूब
या कोई जंगली नीला फूल गंधहीन
कब्र के अंधेरों का सबसे सुन्दर प्रमाण है
न जाने क्यों अभी गर्म है
मेरी मांस विहीन अस्थियों का नंगा पिंजर
जमीन के गड्ढे में गूँजता है झींगुरों का मादक स्वर
बुझे दिए में बाकी है कभी जलने के काले अवशेष
उसे आँधियों का कोई डर नहीं है,
बड़ी दूर से ताकता है एक उदास देवदूत मुझे
मैं बंधा हूँ किसी के स्वप्न से यहाँ
वहाँ नर्क की आग मेरी तलाश में शायद
क्रूर देवताओं तक पहुँच गयी है,
मैं आंसुओं का नमक
बिल्ली के गले में बंधे घुंघुरू की रुनझुन
मेरे गुनाह इंसानी हैं तुम्हारी पाकीजगी के विरुद्ध
जन्नत के राजा थोड़ा इंतज़ार करो....
सबसे आसान है जिस्म का फना हो जाना
मेरी रूह अभी साँसे ले रही है,
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कि मैं अभी ज़िंदा हूँ मेरी कब्र पर एक बिल्ली अभी भी बैठी है।
– विचित्र आदम
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Ashwini Aadam

यह है कविता ! शाबास !
हार्दिक बधाई !! आज तुम जीत गये !!!
अश्विनी!!
"बुझे दिए में बाकी है कभी जलने के काले अवशेष
उसे आँधियों का कोई डर नहीं है,"
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यह पंक्तियाँ मेरे गुरु की हैं जिस कविता पर उन्होंने ऐसा कहा उसका पोस्टर भी उन्होंने ही बनाया (आज पहली बार मेरी कविता के सन्दर्भ में) जिसे नीचे पोस्ट करते हुए उनसे संवाद को सार्वजनिक कर रहा हूँ एक और कविता के माध्यम से



मेरा रकीब
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हर बार तुम जलाते हो अपना एक कतरा लहू
मेरी आँखों में थिरक रही तुम्हारी हर मुस्कान
मैं जानता हूँ मार रही होती है तुम्हारे अंतस पर खीज के चांटे
आज भी तलाश ही लेते हो मात्रा दोष मेरे लिखे पन्नों मे
मेरी गलतियाँ उपलब्धियों से कही ज्यादा है
मेरे युवा बुजुर्ग तुम ऐसे क्यों हो??

मेरी विफलताओं का कारण पता है तुम्हे
यह भी कि अड़ियल गधा बिना लातों के नहीं चलता
तुम्हारी पुचकार मुझे तुम्हारी सनक ही लगती है
इस गधे को ढोते ढोते अपने कन्धों पे
बची हैं कितनी सीढ़ियाँ जो तुम हांफते चढोगे ???

"इब्नबतूता तान के छाता निकल गया बाजार में...."
याद हैं ये पंक्तियाँ???
कविताओं का मेरा प्रथम परिचय तुम ही तो थे
मेरा डर मेरी धृष्टता की आखिरी सीमा
जिसके आगे मैं विनम्र था अनुशाषित था
तुम ही तो थे,

मुझे तुमसे केवल डांट ही अच्छी लगती है
तुम्हारे थप्पड़ मेरे जीवन का आखिरी प्राप्य हैं,
सुनो !आज रुला दिया तुमने मेरी लफ्फाजी को अपने प्रोत्साहन से,
मुझे सुनना था तुमसे -
"गधे !यह भी कोई कविता है ,कविता वह जो झिलमिलाते हुए कथ्य को निरूपित करे"
अपनी ही सफलताओं का ढोल पीटोगे तुम
इतने आत्ममुग्ध तो कभी न रहे.....
मेरे दोस्त!
कुछ औषधिया कडवी ही रहें तो बेहतर
उनका मीठापन उन्हें निष्प्रभाव कर देता है,
तुम विशाल बरगद मुझे छाँव में ही पलने दो
मेरा होना मेरी सामर्थ्य नहीं
अंधड़ बरसातें और धूप झेलती तुम्हारी खुरदुरी पीठ की तपस्या है...
मेरा कुछ भी कभी मेरा नहीं
सिवा इसके कि मेरा रकीब तुम सा है ...

-निरीह आदम

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