Saturday 12 July 2014

#कल्पनातीत_भविष्य_बनाम_शिक्षा_के_तन्त्र_और_तन्त्र_की_शिक्षा_का_सवाल !


हिमांशु कुमार जी मेरे मित्र हैं.
मुझे उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला.
आज मैंने उनसे बात भी की.
मैं समझता हूँ कि हम सब 'शिक्षा के तन्त्र और तन्त्र की शिक्षा' के दोहरे पाटों में पीसे जा रहे हैं.
हमारे बच्चे हमसे दूर होते जाने के लिए बाध्य हैं.
वे मन से इस तन्त्र के चाकर बनते रहेंगे.
हमारे सामने चुनौती है कि हम उसी तरह एक बार फिर जनपक्षधर शिक्षा-संस्थानों को खडा करने का प्रयास करें, जैसा हमारे देश की आज़ादी की जंग के दौरान किया गया था.
'नेशनल कॉलेज, लाहौर' और 'डी.ए.वी. कॉलेज' जैसे.
जिसमे से नये इन्सान गढ़े जा सकें.
जब तक ये संस्थान नहीं खड़े होते हैं, तब तक हमारे बच्चों को सही पढ़ाई का सम्मानपूर्ण हक़ कैसे मिले - यह प्रश्न लगातार दिमाग में कौंधता रहता है और दिल में करकता रहता है.
मेरा अपना '#राहुल_सांकृत्यायन_जन_इण्टर_कॉलेज' का प्रयोग अन्तर्वस्तु में सफल होते हुए भी लाभ-लोभ के चक्कर चलाने वाले व्यवस्था-वादियों के हाथ लग कर अपनी परिवर्तनकारी भूमिका से पतित हो चुका है.
अब '#व्यक्तित्व_विकास_परियोजना' की टोली के युवा क्या और कितना कर सकेंगे - इसका मूल्यांकन भविष्य के गर्भ में है.
और भविष्य कल्पनातीत होता रहा है.

मुझे अपनी वर्तमान सीमाओं पर क्षोभ है.
मेरे प्यारे दोस्तो, मेरी मदद कीजिए !

Himanshu Kumar -
"इस नेता को मत चुनो
क्यों ?
क्योंकि उसने हजारों निर्दोषों को मरवाया था .
तो क्या हुआ वो मुझे नौकरी दिलवाएगा
तुम्हे ये क्रूर नेता नौकरी कैसे दिलवाएगा ?
ये नेता उद्योगपतियों की सारी परेशानियों को दूर कर देगा
नए नए उद्योग खुलेंगे , नई नई नौकरियां निकलेंगी , मुझे भी नौकरी मिल जायेगी .

क्या तुम्हारे लिए नौकरी ही सब कुछ है ?
हाँ मेरे लिए मै ही सब कुछ हूँ .
अगर मेरे पास नौकरी नहीं होगी तो मैं गरीब रह जाऊंगा , आप मुझे बेकार ज़ाहिल और नीच मानेंगे .
मेरे पास नौकरी नहीं होगी तो मै फेसबुक पर आप के साथ बात भी नहीं कर पाऊंगा . मै क्या सोचता हूँ ये किसी को भी पता नहीं चलेगा , मै बेनाम और बेकार बना रहूँगा .मेरी शादी नहीं होगी , मेरा परिवार नहीं होगा .इसलिए मुझे नौकरी चाहिए .

तुम जानते हो की तुम्हें नौकरी देने वाले उद्योगपति तुम्हारे इस क्रूर नेता के साथ मिल कर गरीबों की ज़मीनें छींनेंगे, गरीबों को मारेंगे तब अपना उद्योग लगायेंगे ?
ये सब रोकना मेरी ज़िम्मेदारी नहीं है ,मुझे अपनी ज़िन्दगी का देखना है , मुझे नौकरी चाहिए बस .

क्या तुम्हे मालूम है तुम्हारे नेता की विचारधारा क्या है .
मुझे उसकी विचारधारा से कुछ लेना देना नहीं है .
क्या विचारधारा कुछ नहीं होती ?
विचारधारा अपने हालात से पैदा होती है , मेरे हालात में यही विचारधारा जन्म लेगी, जो आज मेरी है . .
तुम्हारा नेता तुम्हारे धर्म का नहीं है .
तो क्या हुआ धर्म मुझे नौकरी तो नहीं दे देगा ?
तुम्हारे नेता की जाति भी अलग है .
कोई बात नहीं मुझे जाति की नहीं खुद की चिंता है .

इस तरह देश से पहचान आधारित राजनीति समाप्त हुई और पूंजीवादी बाज़ार आधारित अर्थव्यवस्था ने राजनीति का स्वरूप ही बदल दिया ."
हम अपने बच्चों को ऐसी शिक्षा दिला रहे हैं जो उन्हें शिक्षित होने के बाद एक अदद नौकरी के लिए तैयार कर रही है .

हमारे बच्चों को पता है कि उन्हें नौकरी या तो सरकार देगी या पूंजीपति .

इसलिए हमारे बच्चे उस सरकार ही को चुनेंगे जो पूंजीपतियों का साथ दे .

इस शिक्षा प्रणाली में पढ़ कर बच्चे पूंजीपतियों के गुलामों को ही वोट देंगे .

अब आपकी समझ में आया कि ये मनमोहन ,चिदम्बरम या मोदी क्यों इस देश के भाग्य विधाता बन रहे हैं ?

इस बीच एक महीने पहले से छोटी बेटी हरिप्रिया ने स्कूल जाना बंद कर दिया है .

अब वो घर पर ही सब कुछ खुशी से सीख रही है .

सुबह धान लगाने के लिए गाँव में गयी है .

मिट्टी की दीवारों पर चित्र बना रही है .

मैं संतुष्ट हूँ .

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