Monday 28 July 2014

#कहीं_पर_निगाहें_कहीं_पर_निशाना ! रामदेव का नया कारनामा !

Photo: #कहीं_पर_निगाहें_कहीं_पर_निशाना ! 
रामदेव का नया कारनामा !
हजारों करोड़ों के घोषित और उससे अधिक अघोषित परिसम्पत्ति का साम्राज्य खड़ा करने वाले, योग विद्या, देशी दवाओं और आयुर्वेद के कुटिल व्यापारी रामदेव का एक और नया कारनामा सामने आया है !
'लुक हीयर-सी देयर' वाले आत्म-मुग्ध 'बाबा' की नज़रें शुरू से ही अधिकतम सम्पत्ति संचय पर ही रही हैं.
सम्पत्ति-संचय का अपना ही तर्क होता है.
सम्पत्ति-संचय की प्रवृत्ति वाले लोग सबसे पहले अपने निकटस्थ वफ़ादारों को ही अपना शिकार बनाते रहे हैं.
परफेक्ट बिज़नेसमैन रामदेव भी इसका अपवाद नहीं है. लोग उसे 'दामदेव' कहते रहे हैं.
एक विश्वस्त सूत्र ने बताया कि 'सलवारी बाबा' ने अभी-अभी अलग-अलग नगरों के अपने एक सौ कर्मचारियों को तकनीकी तरीके से छाँट कर काम से निकाल दिया है. 
बाबा के बिज़नेस-साम्राज्य के धूर्त प्रबंधकों द्वारा अचानक बेरोज़गार बना दिये गये हैं.
और इसके परिणाम-स्वरूप इस भीषण महँगाई के दौर में उन सब 'कार्यकर्त्ता' कहे जाने वाले अल्प-वेतनभोगी कर्मचारियों के घरों के चूल्हे एक साथ बुझा दिये गये हैं. 
ये सभी युवा गत अन्ना-रामदेव की जुगलबन्दी वाले आन्दोलन की उपज और विद्रोही रहे हैं. 
अभी तक इस 'बाबा' की नौकरी में इनको केवल रु. 5000/- प्रति माह मिलता रहा है. 
और इनमें से सभी ने बाबा को करोड़ों का बिज़नेस दिया है. 
अब ये बाबा के ख़िलाफ़ लड़ने का मन बना रहे हैं. 
उनके सम्पर्क सूत्र ने कहा कि ये मुझसे सम्पर्क करना चाहते हैं. 
मैंने उनको बता दिया कि इनके बीच से वे ही मुझसे सम्पर्क करें, जो क़दम पीछे न हटाने वाले लोग हों. 
अगर वे आर-पार लड़ने का मन बना चुके हों, तभी मुझसे सम्पर्क करें. 
वरना मैं दूसरों के शिकार को हाथ नहीं लगाता.
पूँजी के इन गुलामों की बेइंतेहा पैशाचिक हविश घिनौनी है. 
इनकी ऐसी काली करतूतों को देख-सुन कर इन धन-पशुओं से नफ़रत और बढ़ जाती है.
यह अमानुषिक व्यवस्था हर एक मुमकिन जायज और नाजायज तरीके से पूँजी के विस्तार करती जाती है.
और वहीं दूसरी ओर अपनी सेवा में लगे मासूम और मजबूर इन्सान का इस्तेमाल करके उसे कूड़ेदान पर फेंक देती है. 
मानवता का इस तरह भीषण शोषण, उत्पीड़न और अपमान करने वालो की इस जनविरोधी नरभक्षी व्यवस्था को चकनाचूर करना ही होगा. 
इसके बिना प्रत्येक इन्सान गरिमा के साथ जी नहीं सकता.
मानवता की मुक्ति के लिये ज़रूरी है कि धन-तन्त्र का नाश हो !
पूँजीवाद मुर्दाबाद !
इन्कलाब जिंदाबाद !!
रामदेव का नया कारनामा !
हजारों करोड़ों के घोषित और उससे अधिक अघोषित परिसम्पत्ति का साम्राज्य खड़ा करने वाले, योग विद्या, देशी दवाओं और आयुर्वेद के कुटिल व्यापारी रामदेव का एक और नया कारनामा सामने आया है !
'लुक हीयर-सी देयर' वाले आत्म-मुग्ध 'बाबा' की नज़रें शुरू से ही अधिकतम सम्पत्ति संचय पर ही रही हैं.
सम्पत्ति-संचय का अपना ही तर्क होता है.
सम्पत्ति-संचय की प्रवृत्ति वाले लोग सबसे पहले अपने निकटस्थ वफ़ादारों को ही अपना शिकार बनाते रहे हैं.
परफेक्ट बिज़नेसमैन रामदेव भी इसका अपवाद नहीं है. लोग उसे 'दामदेव' कहते रहे हैं.
एक विश्वस्त सूत्र ने बताया कि 'सलवारी बाबा' ने अभी-अभी अलग-अलग नगरों के अपने एक सौ कर्मचारियों को तकनीकी तरीके से छाँट कर काम से निकाल दिया है.
बाबा के बिज़नेस-साम्राज्य के धूर्त प्रबंधकों द्वारा अचानक बेरोज़गार बना दिये गये हैं.
और इसके परिणाम-स्वरूप इस भीषण महँगाई के दौर में उन सब 'कार्यकर्त्ता' कहे जाने वाले अल्प-वेतनभोगी कर्मचारियों के घरों के चूल्हे एक साथ बुझा दिये गये हैं.
ये सभी युवा गत अन्ना-रामदेव की जुगलबन्दी वाले आन्दोलन की उपज और विद्रोही रहे हैं.
अभी तक इस 'बाबा' की नौकरी में इनको केवल रु. 5000/- प्रति माह मिलता रहा है.
और इनमें से सभी ने बाबा को करोड़ों का बिज़नेस दिया है.
अब ये बाबा के ख़िलाफ़ लड़ने का मन बना रहे हैं.
उनके सम्पर्क सूत्र ने कहा कि ये मुझसे सम्पर्क करना चाहते हैं.
मैंने उनको बता दिया कि इनके बीच से वे ही मुझसे सम्पर्क करें, जो क़दम पीछे न हटाने वाले लोग हों.
अगर वे आर-पार लड़ने का मन बना चुके हों, तभी मुझसे सम्पर्क करें.
वरना मैं दूसरों के शिकार को हाथ नहीं लगाता.
पूँजी के इन गुलामों की बेइंतेहा पैशाचिक हविश घिनौनी है.
इनकी ऐसी काली करतूतों को देख-सुन कर इन धन-पशुओं से नफ़रत और बढ़ जाती है.
यह अमानुषिक व्यवस्था हर एक मुमकिन जायज और नाजायज तरीके से पूँजी के विस्तार करती जाती है.
और वहीं दूसरी ओर अपनी सेवा में लगे मासूम और मजबूर इन्सान का इस्तेमाल करके उसे कूड़ेदान पर फेंक देती है.
मानवता का इस तरह भीषण शोषण, उत्पीड़न और अपमान करने वालो की इस जनविरोधी नरभक्षी व्यवस्था को चकनाचूर करना ही होगा.
इसके बिना प्रत्येक इन्सान गरिमा के साथ जी नहीं सकता.
मानवता की मुक्ति के लिये ज़रूरी है कि धन-तन्त्र का नाश हो !
पूँजीवाद मुर्दाबाद !
इन्कलाब जिंदाबाद !! 


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