Monday 28 July 2014

'माल-ए-मुफ़्त - दिल-ए-बेरहम'

Photo: 'माल-ए-मुफ़्त - दिल-ए-बेरहम' 
ज्वलन्त तथ्य का प्रत्यक्ष प्रमाण देखिए - किसका है यह जनविरोधी 'धन-तन्त्र'!
Ravinder Goel - विकास के नाम पर एक सवाल सभी साथियों से -
उद्योगपतियों को विकास हेतु सरकारें बहुत रियायतें देती हैं - टैक्स माफ़ी, सस्ती ज़मीन और सस्ता कर्ज़ा. 
साथी अंदाज़ा लगाएं की टाटा को गुजरात में कार फैक्ट्री लगाने के लिए कर्ज़ा कितना सस्ता दिया गया होगा ! 
यह जानकर आपको आश्चर्य होगा कि गुजरात सरकार ने टाटा को मोटर फैक्ट्री लगाने के लिए 420 करोड़ रूपये मात्र 0.1 परसेंट या 10 पैसा प्रति सैकड़ा प्रति वर्ष पर उधार दिया है.
(मूल पोस्ट के संक्षिप्त रूप के साथ ही समाचार और उसके सार-संकलन)

"It is an agreement between two parties — the Gujarat government and Tata Motors, so it cannot be made public.'' - Saurabh Patel, industry and mines minister 

Nano plant: Gujarat govt admits giving loan to Tata Motors
TNN | Jul 23, 2014, 
GANDHINAGAR: For the first time, the Gujarat government officially accepted — on Tuesday — that it gave Rs 419.54 crore loan from the state budgetary resources to Tata Motors under its agreement with the company. Coincidentally, Tata Group chairman Cyrus Mistry met chief minister Anandiben Patel and top officials of the state government on Tuesday. 

Government spokesperson Saurabh Patel, who is in-charge industry and mines minister, said in the assembly that the state government had given Rs 419.54 crore soft loan at 0.1% interest to Tata Motors as the incentive for their Nano car plant in Sanand. He was replying to a starred question by Viramgam Congress MLA Tejashree Patel. 

The Congress MLA asked whether the state government plans to give the benefit of loan at 0.1% interest rate to small and medium industries. The minister avoided comment on this question and defended the government's decision. He said that earlier governments too have given tax deferment and tax exemption benefits to industries. The Congress MLA then added a question: Has the company violated its agreement with the government by using the land given by the state government for a different purpose? In his, reply the minister said: "There is no violation of the agreement.'' In response, Saurabh Patel said: "It is an agreement between two parties — the Gujarat government and Tata Motors, so it cannot be made public.'' 

http://timesofindia.indiatimes.com/.../artic.../38896463.cms

प्रिय मित्र, आइए विचार करें कि ऐसा क्यों होता है !
हर चुनावबाज़ पार्टी के सुप्रीमो और उनके सारे साथी - चमचे, गुण्डे, बाहुबली और दंगाई -सभी के सभी छोटे-बड़े नेता हर तरीके से प्रत्येक प्रिन्ट और इलेक्ट्रॉनिक ही नहीं समान्तर मीडिया पर भी हर चुनाव के पहले ख़ूब ज़ोर-ज़ोर से शोर मचाते हैं कि चुनाव 'जन-तन्त्र' का 'त्यौहार' है, कि वोट 'देना' आपका अधिकार और कर्तव्य दोनों ही है, कि हमारा देश दुनिया का सबसे बड़ा 'जन-तन्त्र' है. 

मगर सच क्या है !
क्या यह तन्त्र हमारा है ! 
क्या यह तन्त्र हमारी सेवा करता है ! 
नहीं, बिलकुल नहीं !!

इस तन्त्र की सच्चाई ऊपर के इस समाचार से ही उघड़ कर सामने आ जा रही है. यह तन्त्र और इसकी हर सरकार देश के सभी ग़रीबों को बार-बार महज़ धोखा देती रहती है. यह सफ़ेद झूठ बोल कर हर बार हम सब की आँखों में महज़ धूल झोंकती रहती है. 

वे हमसे लगातार कहते रहते हैं कि चाहे यह सरकार हो या वह सरकार - हर सरकार आपके वोट से ही बनती और गिरती है. मगर सच तो यह है कि हर सरकार 'धन-पशुओं' के एहसान से दबे नेताओं के ही द्वारा बनती और गिरती है. और इसीलिये चाहे जो भी सरकार हो - किसी प्रान्त की या केन्द्र की - वह पूरी वफ़ादारी के साथ प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों ही तरीके से सेवा केवल देशी-विदेशी 'धन-पशुओं' की ही करती है. 

इस सेवा के लिये सरकारी खजाने में अधिकांश पैसा मुख्य रूप से देश की जनता पर लगने वाले भारी-भरकम प्रत्यक्ष और परोक्ष टैक्स से ही आता है. और देश के सभी ग़रीबों का खून निचोड़ कर इकठ्ठा हुआ सरकारी ख़जाने का सारा माल चला जाता है या तो नेताओं-अफसरों-ठेकेदारों के काकस के पेट में या मुनाफ़ाखोर अमीरों की तिजोरी में. 

ग़रीब इन्सान हर बार केवल ठगा जाता है और फिर अगली बार ठगे जाने के लिये उसको बार-बार इन धूर्तों के द्वारा फुसलाया-बहकाया जाता है. जहाँ देश का अन्नदाता किसान छोटे-मोटे कर्ज के फन्दे में फँस कर आत्म-हत्या कर लेता है, वहीं देश का हर एक उद्योगपति न्यूनतम ब्याज पर कर्ज लेकर और अमीर बनता रहता है. ऊपर से तुर्रा यह कि गड़बड़ घोटाला का यह सारा अनुचित और अनैतिक मामला हर सरकार द्वारा गोपनीय बताया जाता है. 

हमारे देश के वर्तमान प्रधानमन्त्री 'साहेब' मोदी की यह सरकार भी दलबदलू नेताओं की भारी संख्या को खरीद कर, वर्षों से मीडिया में लगातार होने वाली विज्ञापनबाज़ी कर के, चुनावी मशीन में छेड़छाड़ कर के, जगह-जगह दंगाई माहौल बना कर धार्मिक आधार पर लोगों की भावनाओं को भड़का कर मतदाताओं के साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण और विकास के फ़र्जी आँकड़ों का प्रचार करके लोगों को भरमा कर ही प्रचण्ड बहुमत से बनी है. पिछली देशद्रोही सरकार की काली करतूतों ने लोगों को जितना अधिक हताश किया था, उस हताशा ने भी लोगों को नेगेटिव वोटिंग के लिये उकसाया. विकल्प की हताश तलाश का लाभ भी सभी चुनावी गणितज्ञों की सारी भविष्यवाणियों को धता बता कर भा.ज.पा. को ही मिल गया. 

और अभी तक होने वाले सभी सरकारी फैसले साफ़ तौर पर समझाते जा रहे हैं कि इस नयी सरकार ने भी हर सरकार की तरह ही गद्दी पर बैठते ही अपने सभी कोरे चुनावी वायदों को तिलांजलि दे दी है और इसने भी पिछली सरकार के जूतों में ही अपने पैर घुसा लिये हैं. यह सरकार भी कांग्रेस के चरण-चिह्नों पर ही उससे भी अधिक तेज़ रफ़्तार से बढ़ चली है. आज हाल यह है कि ग़रीब ही नहीं मध्यम वर्ग के खाते-पीते लोग भी महँगाई डाइन की दहाड़ सुन कर त्राहि-त्राहि कर रहे हैं.

ऐसे में विचार करने का विषय यह है कि क्या केवल इस पार्टी की जगह उस पार्टी की सरकार बना देने से ही हमारे देश की सारी समस्याओं का समाधान हो जायेगा या आज के इस दमघोटू माहौल को बदलने के लिये देश के युवाओं को कुछ और सोचना और करना पड़ेगा. केवल सत्ता बदलने से ही समाज नहीं बदलता. समाज बदलता है समूची व्यवस्था बदलने से. और व्यवस्था वोट-बैंक बनाने वालों के नेतृत्व और कृतित्व से नहीं बदलती. इस आदमखोर दुर्व्यवस्था को ध्वस्त करके मानवीय गरिमा वाली जनपक्षधर सुव्यवस्था बनाने से. व्यवस्था बदलती है इन्कलाब से. 

इन्कलाब - जिसका सपना हमारे बहादुर, बलिदानी और समझदार पुरखों ने देखा था, इन्कलाब - जिसने धरती पर मज़दूर-किसानों के राज गढ़े थे, इन्कलाब - जिसने हर इन्सान को गर्व से सिर उठा कर जीने का माहौल दिया था, इन्कलाब - जिसके नाम से ही दुर्दान्त शोषक और अत्याचारी शासक थरथरा जाया करते हैं, इन्कलाब - जो बलिदान और ईमान के बिना नामुमकिन होता है, इन्कलाब - जिसको पलट कर पूँजीवाद की पुनर्स्थापना कर देने की सफल साज़िशें हो चुकी हैं, इन्कलाब - जिसका आयात और निर्यात नहीं किया जा सकता, इन्कलाब - जो अतीत की फोटोकॉपी नहीं हुआ करता, इन्कलाब - जो मासूम मेहनतकश की आँखों में चमक और दिमाग में जुनून बन कर दमकता है, इन्कलाब - जो पैशाचिक शोषण, अपमानकारी उत्पीड़न और तरह-तरह की नफ़रत के माहौल को नेस्तनाबूत कर देता है, इन्कलाब - जो धरती पर स्वर्ग की रचना करता है. 

वह इन्कलाब आप सब की बिखरी हुई अतुलनीय ताकत को एकजुट करके ही किया जा सकता है. इसलिये आप से अनुरोध है कि इन्कलाब की तैयारी कीजिए. उसके लिये आपस के हर विवाद से ऊपर उठ कर हर हाथ से अपना हाथ और हर कन्धे से अपना कन्धा मिला कर एकजुट होने की पहल कीजिए. देश के विराट जन-बल को सशक्त नेतृत्व और जन-प्रतिवाद को प्रबल स्वर दीजिए. आज भी खण्ड-खण्ड होकर बिखरी हुई इन्कलाब-पसन्द लोगों की संख्या समाज में सक्रिय किसी भी दूसरी ताकत से कम नहीं है. अगर सभी इन्कलाब-पसन्द साथी एक साथ जुट जायें, तो अभी भी हम संख्या और सामर्थ्य की दृष्टि से दूसरी सभी शक्तियों की तुलना में अधिक सबल ही साबित होंगे.

इन्कलाब ज़िन्दाबाद ! 
'धन-तन्त्र मुर्दाबाद !!
ढेर सारे प्यार के साथ - आपका गिरिजेश 

(प्रिय मित्र, अनुरोध है कि कृपया इस पोस्ट को अधिकतम मित्रों तक पहुँचाने के लिये जगह-जगह शेयर करके सहायता कीजिए, ताकि इस धूर्त 'धन-तन्त्र' की सच्चाई के बारे में सभी मित्रों का भ्रम टूट सके.)

ज्वलन्त तथ्य का प्रत्यक्ष प्रमाण देखिए -
किसका है यह जनविरोधी 'धन-तन्त्र'!
Ravinder Goel - विकास के नाम पर एक सवाल सभी साथियों से -
उद्योगपतियों को विकास हेतु सरकारें बहुत रियायतें देती हैं - टैक्स माफ़ी, सस्ती ज़मीन और सस्ता कर्ज़ा.
साथी अंदाज़ा लगाएं की टाटा को गुजरात में कार फैक्ट्री लगाने के लिए कर्ज़ा कितना सस्ता दिया गया होगा !
यह जानकर आपको आश्चर्य होगा कि गुजरात सरकार ने टाटा को मोटर फैक्ट्री लगाने के लिए 420 करोड़ रूपये मात्र 0.1 परसेंट या 10 पैसा प्रति सैकड़ा प्रति वर्ष पर उधार दिया है.
(मूल पोस्ट के संक्षिप्त रूप के साथ ही समाचार और उसके सार-संकलन)

"It is an agreement between two parties — the Gujarat government and Tata Motors, so it cannot be made public.'' - Saurabh Patel, industry and mines minister

Nano plant: Gujarat govt admits giving loan to Tata Motors
TNN | Jul 23, 2014,
GANDHINAGAR: For the first time, the Gujarat government officially accepted — on Tuesday — that it gave Rs 419.54 crore loan from the state budgetary resources to Tata Motors under its agreement with the company. Coincidentally, Tata Group chairman Cyrus Mistry met chief minister Anandiben Patel and top officials of the state government on Tuesday.

Government spokesperson Saurabh Patel, who is in-charge industry and mines minister, said in the assembly that the state government had given Rs 419.54 crore soft loan at 0.1% interest to Tata Motors as the incentive for their Nano car plant in Sanand. He was replying to a starred question by Viramgam Congress MLA Tejashree Patel.

The Congress MLA asked whether the state government plans to give the benefit of loan at 0.1% interest rate to small and medium industries. The minister avoided comment on this question and defended the government's decision. He said that earlier governments too have given tax deferment and tax exemption benefits to industries. The Congress MLA then added a question: Has the company violated its agreement with the government by using the land given by the state government for a different purpose? In his, reply the minister said: "There is no violation of the agreement.'' In response, Saurabh Patel said: "It is an agreement between two parties — the Gujarat government and Tata Motors, so it cannot be made public.''

http://timesofindia.indiatimes.com/.../artic.../38896463.cms

प्रिय मित्र, आइए विचार करें कि ऐसा क्यों होता है !
हर चुनावबाज़ पार्टी के सुप्रीमो और उनके सारे साथी - चमचे, गुण्डे, बाहुबली और दंगाई -सभी के सभी छोटे-बड़े नेता हर तरीके से प्रत्येक प्रिन्ट और इलेक्ट्रॉनिक ही नहीं समान्तर मीडिया पर भी हर चुनाव के पहले ख़ूब ज़ोर-ज़ोर से शोर मचाते हैं कि चुनाव 'जन-तन्त्र' का 'त्यौहार' है, कि वोट 'देना' आपका अधिकार और कर्तव्य दोनों ही है, कि हमारा देश दुनिया का सबसे बड़ा 'जन-तन्त्र' है.

मगर सच क्या है !
क्या यह तन्त्र हमारा है !
क्या यह तन्त्र हमारी सेवा करता है !
नहीं, बिलकुल नहीं !!

इस तन्त्र की सच्चाई ऊपर के इस समाचार से ही उघड़ कर सामने आ जा रही है. यह तन्त्र और इसकी हर सरकार देश के सभी ग़रीबों को बार-बार महज़ धोखा देती रहती है. यह सफ़ेद झूठ बोल कर हर बार हम सब की आँखों में महज़ धूल झोंकती रहती है.

वे हमसे लगातार कहते रहते हैं कि चाहे यह सरकार हो या वह सरकार - हर सरकार आपके वोट से ही बनती और गिरती है. मगर सच तो यह है कि हर सरकार 'धन-पशुओं' के एहसान से दबे नेताओं के ही द्वारा बनती और गिरती है. और इसीलिये चाहे जो भी सरकार हो - किसी प्रान्त की या केन्द्र की - वह पूरी वफ़ादारी के साथ प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों ही तरीके से सेवा केवल देशी-विदेशी 'धन-पशुओं' की ही करती है.

इस सेवा के लिये सरकारी खजाने में अधिकांश पैसा मुख्य रूप से देश की जनता पर लगने वाले भारी-भरकम प्रत्यक्ष और परोक्ष टैक्स से ही आता है. और देश के सभी ग़रीबों का खून निचोड़ कर इकठ्ठा हुआ सरकारी ख़जाने का सारा माल चला जाता है या तो नेताओं-अफसरों-ठेकेदारों के काकस के पेट में या मुनाफ़ाखोर अमीरों की तिजोरी में.

ग़रीब इन्सान हर बार केवल ठगा जाता है और फिर अगली बार ठगे जाने के लिये उसको बार-बार इन धूर्तों के द्वारा फुसलाया-बहकाया जाता है. जहाँ देश का अन्नदाता किसान छोटे-मोटे कर्ज के फन्दे में फँस कर आत्म-हत्या कर लेता है, वहीं देश का हर एक उद्योगपति न्यूनतम ब्याज पर कर्ज लेकर और अमीर बनता रहता है. ऊपर से तुर्रा यह कि गड़बड़ घोटाला का यह सारा अनुचित और अनैतिक मामला हर सरकार द्वारा गोपनीय बताया जाता है.

हमारे देश के वर्तमान प्रधानमन्त्री 'साहेब' मोदी की यह सरकार भी दलबदलू नेताओं की भारी संख्या को खरीद कर, वर्षों से मीडिया में लगातार होने वाली विज्ञापनबाज़ी कर के, चुनावी मशीन में छेड़छाड़ कर के, जगह-जगह दंगाई माहौल बना कर धार्मिक आधार पर लोगों की भावनाओं को भड़का कर मतदाताओं के साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण और विकास के फ़र्जी आँकड़ों का प्रचार करके लोगों को भरमा कर ही प्रचण्ड बहुमत से बनी है. पिछली देशद्रोही सरकार की काली करतूतों ने लोगों को जितना अधिक हताश किया था, उस हताशा ने भी लोगों को नेगेटिव वोटिंग के लिये उकसाया. विकल्प की हताश तलाश का लाभ भी सभी चुनावी गणितज्ञों की सारी भविष्यवाणियों को धता बता कर भा.ज.पा. को ही मिल गया.

और अभी तक होने वाले सभी सरकारी फैसले साफ़ तौर पर समझाते जा रहे हैं कि इस नयी सरकार ने भी हर सरकार की तरह ही गद्दी पर बैठते ही अपने सभी कोरे चुनावी वायदों को तिलांजलि दे दी है और इसने भी पिछली सरकार के जूतों में ही अपने पैर घुसा लिये हैं. यह सरकार भी कांग्रेस के चरण-चिह्नों पर ही उससे भी अधिक तेज़ रफ़्तार से बढ़ चली है. आज हाल यह है कि ग़रीब ही नहीं मध्यम वर्ग के खाते-पीते लोग भी महँगाई डाइन की दहाड़ सुन कर त्राहि-त्राहि कर रहे हैं.

ऐसे में विचार करने का विषय यह है कि क्या केवल इस पार्टी की जगह उस पार्टी की सरकार बना देने से ही हमारे देश की सारी समस्याओं का समाधान हो जायेगा या आज के इस दमघोटू माहौल को बदलने के लिये देश के युवाओं को कुछ और सोचना और करना पड़ेगा. केवल सत्ता बदलने से ही समाज नहीं बदलता. समाज बदलता है समूची व्यवस्था बदलने से. और व्यवस्था वोट-बैंक बनाने वालों के नेतृत्व और कृतित्व से नहीं बदलती. इस आदमखोर दुर्व्यवस्था को ध्वस्त करके मानवीय गरिमा वाली जनपक्षधर सुव्यवस्था बनाने से. व्यवस्था बदलती है इन्कलाब से.

इन्कलाब - जिसका सपना हमारे बहादुर, बलिदानी और समझदार पुरखों ने देखा था, इन्कलाब - जिसने धरती पर मज़दूर-किसानों के राज गढ़े थे, इन्कलाब - जिसने हर इन्सान को गर्व से सिर उठा कर जीने का माहौल दिया था, इन्कलाब - जिसके नाम से ही दुर्दान्त शोषक और अत्याचारी शासक थरथरा जाया करते हैं, इन्कलाब - जो बलिदान और ईमान के बिना नामुमकिन होता है, इन्कलाब - जिसको पलट कर पूँजीवाद की पुनर्स्थापना कर देने की सफल साज़िशें हो चुकी हैं, इन्कलाब - जिसका आयात और निर्यात नहीं किया जा सकता, इन्कलाब - जो अतीत की फोटोकॉपी नहीं हुआ करता, इन्कलाब - जो मासूम मेहनतकश की आँखों में चमक और दिमाग में जुनून बन कर दमकता है, इन्कलाब - जो पैशाचिक शोषण, अपमानकारी उत्पीड़न और तरह-तरह की नफ़रत के माहौल को नेस्तनाबूत कर देता है, इन्कलाब - जो धरती पर स्वर्ग की रचना करता है.

वह इन्कलाब आप सब की बिखरी हुई अतुलनीय ताकत को एकजुट करके ही किया जा सकता है. इसलिये आप से अनुरोध है कि इन्कलाब की तैयारी कीजिए. उसके लिये आपस के हर विवाद से ऊपर उठ कर हर हाथ से अपना हाथ और हर कन्धे से अपना कन्धा मिला कर एकजुट होने की पहल कीजिए. देश के विराट जन-बल को सशक्त नेतृत्व और जन-प्रतिवाद को प्रबल स्वर दीजिए. आज भी खण्ड-खण्ड होकर बिखरी हुई इन्कलाब-पसन्द लोगों की संख्या समाज में सक्रिय किसी भी दूसरी ताकत से कम नहीं है. अगर सभी इन्कलाब-पसन्द साथी एक साथ जुट जायें, तो अभी भी हम संख्या और सामर्थ्य की दृष्टि से दूसरी सभी शक्तियों की तुलना में अधिक सबल ही साबित होंगे.

इन्कलाब ज़िन्दाबाद !
'धन-तन्त्र मुर्दाबाद !!
ढेर सारे प्यार के साथ - आपका गिरिजेश

(प्रिय मित्र, अनुरोध है कि कृपया इस पोस्ट को अधिकतम मित्रों तक पहुँचाने के लिये जगह-जगह शेयर करके सहायता कीजिए, ताकि इस धूर्त 'धन-तन्त्र' की सच्चाई के बारे में सभी मित्रों का भ्रम टूट सके.)
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किसका है यह तन्त्र !
किसके हैं ये बैंक !!
किसकी है यह सरकार !!!
किसानों को क़र्ज़ के फन्दे में फँसा कर उनको आत्महत्या करने पर मजबूर करने वाले इस 'धन-तन्त्र' के दोहरेपन को इस ख़बर में देखिए और सोचिए कि क्या कभी किसी 'धन-पशु' ने भी क़र्ज़ के फन्दे के चलते आत्महत्या की है. अगर नहीं, तो क्यों !
Ravinder Goel - "धन्ना सेठों को एक और तोहफे की तैयारी
आज खबर छपी है की करीबन 7 लाख करोड़ बकाया टैक्स राशि वसूली नहीं जा सकती. मतलब अब इसे माफ़ करने की तैयारी करनी चाहिए. अब यह तो बताने की जरूरत शायद नहीं पड़ेगी कि टैक्स की बकाया राशि किसकी देनदारी है या होगी.
पढ़िए पूरी खबर"
Around 90 per cent of Rs 6.7 lakh crore tax arrears cannot be recovered
By TNN | 25 Jul, 2014,
Data shows that at the end of 2012-13, tax demands raised by authorities, but not realized added up to nearly Rs 5 lakh crore.
NEW DELHI: The government may be budgeting for tax arrears of Rs 6.7 lakh crore but top government officials admit that it is virtually impossible to recover nearly 90 per cent of the money which authorities had claimed as unpaid taxes.

Sources, speaking on the condition of anonymity, said nearly 37 per cent of the arrears shown by the income tax authorities are related to Hasan Ali Khan, the Pune-based businessman, who is accused of money laundering and stashing $8 billion (around Rs 48,000 crore at current exchange rate) into Swiss Bank accounts.

But despite being under investigation for several years, the tax department and the Enforcement Directorate has not made much headway in the case.

Then, there is the late Harshad Mehta, who was main accused in the 1992 stock market scam. Going by tax department's claims, Mehta owes the government close to Rs 35,000 crore but now the special court trying the cases is left with few assets that would help the Centre realize the amount.

Data released by the government shows that at the end of 2012-13, the latest period for which numbers have been made public, tax demands raised by authorities, but not realized added up to nearly Rs 5 lakh crore.

Nearly 84 per cent of this amount, which is around Rs 4.14 lakh crore, was on account of direct taxes, official data revealed.

Of this amount, Rs 2.6 lakh crore was on account of income tax, while Rs 1.5 lakh crore was being disputed by companies.

Indirect tax claims not realized were estimated at nearly Rs 79,000 crore with customs at Rs 37,800 crore, service tax at Rs 30,400 crore and the remaining Rs 10,500 crore on account of customs duties.
http://economictimes.indiatimes.com/news/economy/finance/around-90-per-cent-of-rs-6-7-lakh-crore-tax-arrears-cannot-be-recovered/articleshow/38987920.cms

Around 90 per cent of Rs 6.7 lakh crore tax arrears cannot be recovered - The Economic Times
economictimes.indiatimes.com

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