Thursday 11 December 2014

___संक्रमण का दौर और एकजुटता का सवाल___

प्रिय मित्र,
आज पूरी दुनिया में अतिमहाबली अमेरिका की चौधराहट वाली लुटेरी व्यवस्था है.
आज हमारे देश में परिधान-मन्त्री मोदी की सत्ता है.
उनका दृष्टिकोण अन्धहिन्दूवादी दृष्टिकोण है.
उनकी विचारधारा साम्प्रदायिकतावादी विचारधारा है.
दिल्लीश्वर की सत्ता मनमाने तरीके से हमारे इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने में लगी है.
साहेब की सरकार पिछली सरकार से भी अधिक तेज़ गति से राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध सन्धियाँ करने और जनविरोधी नीतियाँ बनाने में लगी है.
मोदीवादी स्वर और भी ज़ोर-शोर के साथ जन-सामान्य में दुर्भावना फ़ैलाने की हर मुमकिन साज़िश और बयानबाज़ी कर रहे हैं.
आम इन्सान पहले से ही महँगाई, बेरोज़गारी और भ्रस्टाचार से त्रस्त है.
आम इन्सान की रोज़-ब-रोज़ की ज़िन्दगी को और भी तकलीफ़देह बनाने की मंशा से सत्ता बाज़ार की लुटेरी शक्तियों को और भी बढ़ावा दे रही है.
इस तरह हर क़दम पर मोदीवादियों का हस्तक्षेप अनुचित, अपमानजनक और असह्य है.

आज विश्व-पटल पर सन्नाटा पसरा है.
ऑकुपाई आन्दोलन और अन्ना-आन्दोलन के दौर का जन-ज्वार बीते कल की कहानी बन चुका है.
इतिहास अगले जन-उभार की बेचैनी के साथ प्रतीक्षा कर रहा है.
आज का दौर इतिहास के संक्रमण का दौर है.
संक्रमण के इस दौर की व्यवस्था-जनित विकृतियों का समाधान प्रस्तुत करने का ऐतिहासिक दायित्व हमारे सामने है.
विचारधारात्मक विच्युतियों ने हमारे देश में क्रान्तिकारी आन्दोलन की अपूरणीय क्षति की है.
इन विचलनों से मुक्त होकर क्रान्तिकारी परिवर्तन की पृष्ठभूमि तैयार करने की चुनौती हमारी आँखों में घूर रही है.

मेरे सामने तीन प्रश्न हैं.
ये प्रश्न मुझे लगातार मथते रहते हैं.
पहला प्रश्न है कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण के सर्वाधिक विकसित चिन्तन को परम्परावादी चिन्तन, आचरण और अनुकरण के मकड़जाल में उलझ कर परेशान हो रहे भोले-भाले मासूम जन-सामान्य तक कैसे पहुँचाया जाये !
दूसरा प्रश्न है कि सभी प्रतिबद्ध और ईमानदार जनपक्षधर शक्तियों और व्यक्तियों को एकजुट करने के लिये वर्तमान परिस्थिति में क्या और कैसे किया जाये !
तीसरा प्रश्न है कि ऐसे लोगों का क्या किया जाये, जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण को ख़ूब अच्छी तरह जान-समझ चुके हैं. मगर अपनी व्यक्तिगत व्यवस्था को हर तरह से चाक-चौबन्द करने में ही रात-दिन लगे रहते हैं. ऐसे लोग अपना किसी तरह का नुकसान किये बिना क्रान्ति के नाम पर केवल ज़बानी जमाखर्च करते रहना चाहते हैं. इनके दोहरेपन से होने वाले नुकसान से अपने आन्दोलन को कैसे बचाया जाये !

मुझे लगता है कि अगर हम इन तीन प्रश्नों के सन्तोषजनक समाधान प्रस्तुत कर सके, तो आज की वैश्विक और राष्ट्रीय चुनौतियों का सामना बेहतर तरीके से कर सकेंगे.
यदि हम सहमत हैं, तो एकजुटता के लिये एक बार और पहल लेनी होगी.
यदि हम सहमत हैं, तो एक साथ मिल-बैठ कर विचार-विमर्श करना होगा.
यदि हम सहमत हैं, तो एक साथ खड़े होकर प्रतिवाद के स्वर को और सशक्त बनाना होगा.
आपके विचारों का स्वागत है.
आपसे पहल की उम्मीद है.
ढेर सारे प्यार एक साथ –– आपका गिरिजेश (4.12.14)

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