Tuesday 23 December 2014

____उग्रता और आत्मालोचना___

प्रिय मित्र,
आप सब के स्नेह के लिये मैं ऋणी हूँ.
इस क़र्ज़ से उबर पाना मेरे लिये नितान्त असम्भव है.
कल रात ज़िन्दगी ने मुझे एक बार फिर दरेर दिया.
झटका तगड़ा था, सो मन भिन्ना गया.
और नतीज़ा रहा कि आज का पूरा दिन अस्तव्यस्त रहा.
दिन भर पूरी तरह आराम किया.
बच्चों से बातें की. Amit Singh से फोन से बात की.
अपनी अस्त-व्यस्त विकास-यात्रा की सीमाओं के बारे में ख़ूब सोचा
और कठोरता के साथ आत्मालोचना की. अभी मन शान्त और स्थिर है.
और तब जाकर अब मुझे एक बार फिर
अपनी अव्यावहारिकता, मूर्खता, दम्भ, उग्रता और आतुरता की सघनता का एहसास हुआ.
मुझसे अभी और भी अधिक संतुलन, धीरज और सहनशक्ति की अपेक्षा की जाती है.
स्वाभिमान की खोल में छिपे अपने दम्भ के चलते
अपनी उग्रता से
अपने जिन भी मित्रों को
मैंने अपनी पूरी ज़िन्दगी में
जाने-अनजाने कभी भी मार्मिक पीड़ा पहुँचायी,
उन सभी से अन्तर्मन से ईमानदारी के साथ क्षमायाचना करता हूँ.
उम्मीद करता हूँ कि
जब ज़िन्दगी दुबारा परीक्षा लेगी,
तो मैं और सहज होकर निखर सकूँगा.
ढेर सारे प्यार के साथ - आपका गिरिजेश (22.12.14).

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