Thursday 11 December 2014

____ इन्कलाब ज़िन्दाबाद ! ____


प्रिय मित्र, मैं विनम्रता के साथ आपका अभिवादन कर रहा हूँ.
मैं आज एक बार फिर आप के साथ ज़िन्दगी के सच की चर्चा करना चाहता हूँ.
वर्तमान जनविरोधी व्यवस्था को धनतन्त्र कहते हैं.
समूची धरती पर आदमखोर भेड़ियों की हुकूमत है.
धरती का हमारा अपना हिस्सा भी इसका महज़ एक अंग है.

धरती के हर देश में हुकूमत करने वाले इन भेड़ियों के पास तरह-तरह के हथियार हैं.
वे उनमें से हर एक का इस्तेमाल करते चले जा रहे हैं.
उनका मकसद केवल एक है — अपनी हुकूमत को बनाये रखना.
अपनी हुकूमत कायम रखने के लिये वे किसी भी हद तक पतित होते रहे हैं.
मगर उनकी तो गिनती भी मुट्ठी भर से अधिक नहीं है.
झूठ उनका सबसे शातिर हथियार है.
अन्धविश्वास की ताकत उनकी ताकत है.

समूची धरती पर मेहनतकश इन्सानों की तादाद अरबों में है.
हमारे महान पुरखों ने एक से एक शानदार कारनामे किये हैं.
उनकी सारी की सारी कहानियाँ प्रेरक और रोमांचकारी हैं.
जन-सामान्य की ज़िन्दगी की भीषण यन्त्रणा को दूर करना ही हमारा मकसद है.
सच हमारा सबसे धारदार हथियार है.
विज्ञान की ताकत हमारी ताकत है.

समूची धरती पर आज संक्रमण का अभूतपूर्व दौर चल रहा है.
जीवन के समुद्र में ज्वार-भाटा जारी है.
जीवन जैसा कल था, वैसा आज नहीं है.
जीवन जैसा आज है, कल फिर निश्चय ही वैसा नहीं रहेगा.
युवा आज अधिक तेज़ रफ़्तार से सोच रहे हैं, देख रहे हैं, समझ रहे हैं.
युवा तूफ़ानी रफ़्तार से आने वाले दिनों में आगे बढ़ने जा रहे हैं.
युवाओं के तेवर पर ही मुझे भरोसा है.

इतिहास अगली करवट लेने जा रहा है.
इतिहास को रोका नहीं जा सकता.
इतिहास को पीछे नहीं ले जाया जा सकता.
इतिहास आगे ही बढ़ता है.
वे इतिहास की धारा के विरुद्ध हैं.
उनको प्रतिगामी कहते हैं.
हम इतिहास की धारा के साथ हैं.
हम प्रगतिशील कहे जाते हैं.

आज उनका है.
मगर कल हमारा था.
कल धरती पर मेहनतकश का लाल परचम लहराता था.
लाल परचम हमारे महान शहीदों के बलिदान की याद दिलाता है.
हमने जीवन-संग्राम में केवल मोर्चा हारा है, युद्ध नहीं.
99% मेहनतकश जन और 1% जन-शत्रुओं के बीच का वर्ग-संघर्ष कल भी जारी था.
वह वर्ग-संघर्ष वैसे ही आज भी जारी है.

कल फिर हमारा होगा.
कल फिर हमारी धरती पर हमारा लाल परचम लहरायेगा.
आइए, अनोखी आन-बान-शान वाले उस कल को साकार करने का सपना देखें.
आइए, अपने सपने को साकार करने के लिये जो भी कर सकते हैं, कर गुज़रें.
आज मुझे न जाने किसका लिखा यह शानदार शेर बेतहाशा याद आ रहा है.

हिसाब कर लो चाहे जैसे, चाहे जितना भी;
मुझे घटा क' तुम गिनती में रह नहीं सकते | — अज्ञात

ढेर सारे प्यार और पूरी उम्मीद के साथ — आपका गिरिजेश (22.11.14)

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