Tuesday 23 December 2014

____सिद्धान्त और व्यवहार___

Alam Khan — Sir science के थिअरी को व्याहारिक में realise कैसे होगा?
उत्तर :— प्रिय आलम, विज्ञान के सभी सिद्धान्त व्यवहार से ही निकले हैं. पहले किसी भी मामले में लोग पिछले तरीके से काम करते रहते हैं. फिर अचानक उनमें से ही किसी एक के दिमाग में कोई आइडिया आता है. वह अपने साथियों को अपने आइडिया के बारे में बताता है. तब जब लोगों को उसका विचार समझ में आता है, तो वे भी उसे लागू करने में उसका साथ देने के लिये आगे आते हैं. जब कुछ लोग उसे सफलतापूर्वक लागू कर ले जाते हैं, तो उनको उससे मिल रहे लाभ को देख कर और अधिक लोग उनका अनुसरण करने लगते हैं. और इस तरह उस सिद्धान्त को व्यवहार में लागू करने में सफलता मिल जाती है.

उदाहरण के लिये आप अपनी 'व्यक्तित्व विकास परियोजना' को ही देख लीजिए. पहले एक विचार सामने आया कि पूरी शिक्षा-पद्धति बाज़ार के मुनाफाखोरों के कब्ज़े में जा चुकी है और शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है. इस समस्या के समाधान के रूप में निःशुल्क शिक्षा-पद्धति के प्रयोग की रूप-रेखा बनी. आप और आपके सभी साथियों को यह आइडिया सही लगा. और आज़मगढ़ में पहली बार निःशुल्क शिक्षण-प्रशिक्षण का प्रयोग सीमित संसाधनों के सहारे शुरू किया गया. धीरे-धीरे कर के यह परियोजना चौथे वर्ष तक सफलता के साथ चलती रही. अब पिछले केन्द्र का स्थान कम लगने लगा और नये केन्द्र की व्यवस्था की गयी.

अब इस वर्ष इस प्रयोग में रात में केन्द्र पर रुक कर परीक्षा की तैयारी के लिये स्वाध्याय करने की योजना लागू करने के विचार पर काम शुरू किया गया. इसमें पहले एक छात्र ने रुकने का मन बनाया. फिर दूसरा भी उसका साथ देने के लिये सामने आया. मगर अगले ही दिन अपने बम्बई से लौटे भाई के कहने पर वह पीछे हट गया. मगर पहला छात्र डटा रहा. उसके बाद चार छात्र रुके. कल इनकी संख्या छः थी. आज ये नौ हो गये.

इस रूप में सार-संकलन कीजिए, तो अब नौ किशोर आपकी योजना के साथ चौबीस घन्टे काम कर रहे हैं और उनके परिवार के लोग भी इस प्रयोग में अपने बच्चे को आने और रुकने की अनुमति देकर प्रयोग को लागू करने में मदद कर रहे हैं. कुछ युवक निःशुल्क पढ़ाने के लिये समय देने लगे. कुछ मित्रों और शुभचिन्तकों ने आर्थिक सहायता देने की पहल लिया. कुल मिला कर हम यह कह सकने की स्थिति में पहुँच रहे हैं कि निःशुल्क शिक्षा-व्यवस्था का सिद्धान्त व्यवहार में लागू हो रहा है. और आगे चल कर यह बाज़ार आधारित शिक्षण-प्रशिक्षण का एक लोकोपयोगी वैकल्पिक मॉडल बना सकेगा.

इसी तरह जनार्दन का सीमित संसाधनों में स्वरोज़गार का प्रयोग भी सफल जा रहा है. देखते-देखते दूसरे युवा भी उनका अनुसरण करने लगेंगे.

इस तरह हम समझ सकते हैं कि विज्ञान के सभी सिद्धान्त व्यवहार से उत्पन्न होकर त्रुटि-सुधार पद्धति से चलते हुए व्यवहार की सेवा करते हैं. और लोगों के बीच उनको लोकप्रियता, सम्मान और स्वीकृति मिलने लगती है.

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