Tuesday 30 December 2014

पीड़ित मानवता की सेवा




"पीड़ित मानवता की सेवा ही मेरे जीवन का व्रत है,
एक इसी व्रत की पूजा में मेरा तन-मन प्रतिपल रत है."

प्रिय मित्र,
आज का दिन मेरे लिये अतिशय प्रसन्नता का दिन है.
वह इन्सान जिसने मेरे जैसे बिगड़ैल मनबढ़ अतिवादी के साथ दशकों पहले दोस्ती की और आज तक इस दोस्ती का फ़र्ज़ अदा करता जा रहा है.
वह इन्सान जिसकी वजह से मुझे अपने क्रान्तिकारी शिक्षण-प्रशिक्षण के प्रयोगों को खुल कर करने की मंच मिला.
वह इन्सान जिसके सौजन्य से मुझे अधिकतम सम्भव सम्मान पाने की सामजिक ज़मीन मयस्सर हुई.
वह इन्सान जिसके चलते मुझे हज़ारों बच्चों तक वैज्ञानिक दृष्टिकोण की रोशनी पहुँचाने का और उन सब के साथ अन्तरंग सम्बन्ध बनाने का मौका मिला.
वह इन्सान जिसे सूर्योदय से सूर्यास्त तक प्रतिदिन अथक श्रम करते देख कर मुझे और शिद्दत से श्रम करने की प्रेरणा मिलती रही है.
वह इन्सान जिसकी सहनशक्ति और विनम्रता ने अगणित मन जीते हैं.
वह इन्सान जिसने न जाने कितने लोगों की चुपचाप सेवा और सहायता की है.
वह इन्सान जो ग्रामीण पृष्ठभूमि की ग़रीबी से चिकित्साजगत की विशेषज्ञता और सम्पन्नता तक जाने में सफल हो सका है.
वह इन्सान जो आज़मगढ़ में हड्डी का जादूगर कहा जाता है.
वह इन्सान जिसके चलते मुझे डॉ. मयंक, उमाशंकर, डॉ. मनीष और डॉ. शुभी जैसे बेटे और बेटी मिले जिनके दम पर मैं अपनी परिवर्तनकामिनी धारा के अनवरत प्रवाह को काल से होड़ लेते देख पा रहा हूँ.
आज उस विनम्र और गर्वीले इन्सान का जन्म-दिन है.
काश आज़मगढ़ में कुछ और डॉ. R.b. Tripathi होते, तो आज़मगढ़ को आतंकगढ़ कहने वालों की ना-काबिल-ए-बर्दाश्त ज़ुर्रत का मुँहतोड़ जवाब देना मेरे लिये और भी आसान होता.
ढेर सारे प्यार के साथ - आपका गिरिजेश (28.12.14)

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