Thursday 11 December 2014

आइए लिखना सीखें : कलम का कमाल !

मोदी न हो तो ज़िंदगी कितनी बोर हो जाएगी? - वुसतुल्लाह ख़ान बीबीसी पाकिस्तान

गोलगप्पा, सुनहरा अतीत, ख़राब वर्तमान, दूसरे की मां को बुरा भला कहने के साथ अपनी मां के चरण छूने की आदत, ख़ुद पे तरस ख़ाने की मसरूफ़ियत, किसी की गाड़ी ठोककर उसी को क़सूरवार साबित करने का हुनर.

दहेज़, कुर्ता पायज़ामा, बीड़ी की बू, पोस्टर में लगी लड़की की ख़ुशबू, सास-बहू का रिश्ता, अब्बा की मौक़ा-बे-मौक़ा डांट, महबूबा को बीवी बना लेने की जल्दी, गोरे पांव की मैल से फ़टी एड़ी, मोज़े से निकला साँवला अंगूठा, हवा के ज़ोर से मर्लिन मुनरो की स्कर्ट की तरह उड़ जाने वाली मक़रूज़ किसान की धोती.

उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ की शहनाई, एआर रहमान का ऑर्केस्ट्रा, लाहौरी मुर्ग छोले, श्रीनगर, दिलीप कुमार. हरियाणवी जाट, दरिया-ए-सिंध, बादशाही मस्जिद लाहौर, ताजमहल की सामने गड़ी वीआईपी बैंच के आसपास मंडराते फ़ोटोग्राफर.

सूरत के हीरा तराश, एमक्यूएम, इस्लामाबाद, हसीना वाजिद, गाँधी कैप, दीवान-ए-ग़ालिब, राम जन्म भूमि, ख़ुदक़श बमबार, समझौता एक्स्प्रैस, गोल आसामी चेहरा, राजस्थानी माँड, भगत सिंह की याद, ढाका का लिब्रेशन म्यूज़ियम, कराची हलवा, तालिबान, चाइना का माल, जामदानी साड़ी, लक्ष्मण का कार्टून, नक्सलाइट्स, पान की पीक मुँह में भरकर बैठने वाला सरकारी क्लर्क-बाबू.

बिहार राज्य, टैगोर, शोले की बसंती. हाफ़िज़ सईद, सुंदरबन, नेपाली कम्युनिस्ट, आम का बाग, मायावती, ड्रोन, इडली-सांभर, दाऊद इब्राहीम.

खजुराहो के मंदिर, सिंधी अलगोज़ा, अंग्रेज़ के ज़माने को याद करती नानियाँ-दादियाँ, नुसरत फ़तेह अली ख़ान, हज़ारा शिया, अज़मेर शरीफ़, बदाँयूं का पेड़ा, दार्जिलिंग चाय, शांति निकेतन, दर्रा-ए-ख़ैबर, सरदार की पग, हसीन औरत की गोद में बैठे बच्चे से बातें करने की कोशिश, पुरानी दिल्ली की गलियाँ, अरुंधती राय का गुस्सा.

पंजाबी फ़िल्म का उधम, आईएसआई, बस के पीछे से निकलने वाला काला धुआँ, गुजराती डांडिया, केरल का समंदर, बॉर्डर सिक्योरिटी फ़ोर्स, टाटा ट्रक, गऊशाला, हांफ़ता हुआ पंडित, ब्रेड पकौड़ा, गंगा, झोपड़पट्टी, अलीगढ़, आसिफ़ ज़रदारी, अमरीका, मिग 21, चार मीनार, अमीर ख़ुसरो, लस्सी, आबिदा परवीन, एनआरआई, रामसेना, अब्दुल सत्तार ईदी, ग्वालियर गायकी.

बनारस की सुबह, बेसन की रोटी, लहसुन की चटनी, एमएफ़ हुसैन का घोड़ा, दरगाह निज़ामुद्दीन, जयपुर का पत्थर, ताड़ी, आधी रात को आने वाली बाँसुरी की आवाज़, सुबह का भजन, दाल मखनी, अज़ान, सरदारों पठानों शेखों और बनियों के लतीफ़े, सड़कछाप छिछोरापन, लता की आवाज़, लद्दाख का सन्नाटा, नेहरू फ़ैमिली.

बंगाली रोसोगुल्ला, केले का पत्ता, कड़ाही गोश्त, चमेली, सरसों का खेत, ग़ुलाम अली, बाघा-अटारी, मीठी इमली, कथक, कीर्तन, बेलगाम टीवी चैनल, दारू, पुलिस, सपेरा, एटम बम, चूड़ियाँ, घघरा, सड़क पर कचरा चुनने वाले बच्चे का पुरसुक़ून चेहरा, ख़ड़ूस पंचायती बुड्ढे, बेलगाड़ी के पहियों से उड़ने वाली गर्द.

जामा मस्जिद, बास्केट, सिपारी, बॉलीवुड, गेरुआँ रंग, दुबई, नूरजहाँ के गीत, जामा मस्जिद के शाही ईमाम, पारसी कम्युनिटी, सुनहरी कल के धुंधले ख़्वाब, दीवारों पर लिखे मर्दाना कमज़ोरी दूर करने के इश्तेहार, बिजली की लोडशेडिंग, मोहल्ले के थड़ों पर शतरंज खेलने वाले बाबे, कॉफ़ी टेबल को पूरी दुनिया समझने वाली बेग़मात.

सावन में कूकने वाली कोयल, शाम के अंधेरे में आहिस्ता-आहिस्ता डूबने वाले नारियल के झुंड, कपास की फ़सल, दीवार से टेक लगाकर पेशाब करने का नशा, घरों में काम करने वाले बच्चे.

दफ़्तर से घर जाती लड़कियों में गढ़ने वाली टपकती आँखें, ताश की बेफ़िक्र बाजी, भरे-भरे सिनेमा, गिलावटी कबाब के मज़े, तूफ़ानी बारिश, भगवान और ख़ुदा की क़सम खाकर कोल्ड्रिंक मँगवाकर ज़बरदस्ती पिलाने वाले घटिया कपड़ा महंगे दाम ग्राहक को थमाने वाले मक्कार दुकानदार, पुरानी किताबों के ठेले को घेरे हुए लड़के लड़कियाँ और अब नरेंद्र मोदी भी.

अगर ये सब कुछ भी न हो तो मुझ जैसे दक्षिण-एशियाई की ज़िंदगी में सिवाय गंभीर बोरियत के क्या रह जाएगा?

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