Friday 26 December 2014

___कैसा हो शिक्षा का स्वरूप___



प्रश्न : — आदरणीय तिवारी जी, तो फिर शिक्षा का स्वरूप कैसा होना चाहिए? — Suryaprakash Tiwari
उत्तर : — प्रिय मित्र, मैंने अपने पिछले 'शिक्षा और सूचना'
http://young-azamgarh.blogspot.in/2014/12/blog-post_23.html
शीर्षक वाले लेख में वर्तमान शिक्षा-पद्धति की सीमाओं का विश्लेषण किया था. मेरे द्वारा वर्तमान प्रणाली पर प्रश्न-चिह्न खड़ा करने के बाद मुझसे आपका यह प्रश्न अनिवार्य और उपयुक्त है. हम केवल वर्तमान की आलोचना करके विकल्प देने के अपने दायित्व से बच नहीं सकते. मैं अभी इस सम्बन्ध में निम्न बिन्दुओं तक सोच पा रहा हूँ. इसमें आप मुझसे बेहतर सोच सकते हैं. आपको और सोचने और और अपने चिन्तन को व्यवहार में रूपायित करने में भरसक मदद मिले इस मंशा से निम्न बिन्दु प्रस्तुत कर रहा हूँ.

*शिक्षा-पद्धति को विचार और विश्लेषण करने में समर्थ बनाने की दिशा में बच्चों के दिमाग को प्रेरित करना होगा.
*बच्चों को उनके परिवेश से, जीवन की परिस्थितियों से जोड़ने और श्रम-संस्कृति का सम्मान करने की दृष्टि विकसित करने के लिये प्रयास करने की ओर मोड़ा जाना होगा.
*सीमित प्रश्न-उत्तर लिखवाने और उनको रटने और परीक्षा में लिख देने की शैली की जगह शिक्षण को प्रत्येक विषय के हर पाठ की मूल अवधारणा के स्पष्ट बोध में सहायक होना होगा.
*बच्चों को परस्पर नफ़रत की जगह मानव-मात्र से स्नेहपरक मूल्यों से लैस करने की कोशिश करनी होगी.
*बच्चों के दिमाग में स्वार्थी-भाव, स्व और दम्भ के बजाय सामूहिकता-बोध, सहानुभूति, और टीम-भावना विकसित करने की आवश्यकता है.
*वैज्ञानिक दृष्टिकोण से लैस व्यक्ति ही अन्धविश्वासों से और रूढ़ियों से मुक्त होकर अपनी और अपने लोगों की समस्याओं के निवारण के लिये उपयुक्त प्रयास कर सकेगा.
*वार्षिक परीक्षा-पद्धति की जगह उनकी क्षमता के विकास के स्तर के मूल्यांकन के लिये चैप्टर-टेस्ट की सटीक पद्धति विकसित करनी होगी.
*एक ही चैप्टर में सफल छात्रों को अगले पाठ तक जाने देना होगा और उसमें विफल छात्र को वही पाठ दुबारा तैयार करवाने के लिये अलग से व्यवस्था देनी होगी.
*एक कक्षा में छात्र-संख्या पचीस से अधिक नहीं रहे, तो शिक्षक प्रत्येक छात्र तक पहुँच सकेंगे.
*प्रत्येक कक्षा में दो शिक्षकों को तैनात करना होगा.
*शिक्षकों को अधिकतम सम्भव पारिश्रमिक देना होगा, ताकि सबसे बेहतर दिमाग वाले युवा शिक्षण को अपने व्यवसाय के रूप में चुनना पसन्द करने लगें.
*पुस्तकों में पाठों की संख्या अधिकतम दस रखनी होगी.
*शिक्षकों से शिक्षा से इतर कार्य करवाना बन्द करना होगा.
*कमज़ोर छात्रों के बोध का स्तर और उन्नत करने के लिये अतिरिक्त सुविधा देने की व्यवस्था करनी होगी.
*ट्यूशन-कोचिंग की पद्धति को पूरी तरह समाप्त करके विद्यालय में ही सपुस्तकीय परीक्षा पर आधारित मूलभूत बिन्दुओं को समझने की क्षमता के विकास के लिये प्रयास करने की तकनीक विकसित करनी होगी.
*शिक्षा को हर तरह के आर्थिक-दबाव से मुक्त करके पूरी तरह निःशुल्क करना होगा.
*पूरे देश में सभी बच्चों के लिये एक ही मानक शिक्षा-प्रणाली और एक तरह की पुस्तकों की व्यवस्था करनी होगी.
*बच्चे की रूचि के अनुरूप ही उसका विशेषज्ञता के लिये चयन करना होगा.
*प्रयोगशालाओं को जिन्दा करके पाठ की समाप्ति के साथ ही उस पाठ से सम्बन्धित प्रयोगों को सभी बच्चों द्वारा कर लेने के बाद ही अगले पाठ की शुरुवात करने की पद्धति विकसित करनी होगी.
*पूरी शिक्षा का डिजिटलाइज़ेशन करके हर विद्यालय में प्रोजेक्टर से एक समान दृश्य-श्रव्य माध्यम से शिक्षा देने की व्यवस्था करनी होगी. और उस विषय के सबसे बड़े विद्वानों से ही वे पाठ तैयार करवाना होगा.
*बोध सम्बन्धी किसी भी समस्या के समाधान के लिये विशेषज्ञों को ऑन-लाइन उपलब्ध करना होगा.
*शिक्षा को शारीरिक और बौद्धिक श्रम और स्वावलम्बन पर आधारित स्वरोज़गार से जोड़ना होगा.
*खेल-कूद और मनोरंजन की पर्याप्त व्यवस्था करनी होगी.
* इतने अधिक आर्थिक बोझ पर टिकी शिक्षा-पद्धति की समूची और सन्तोषजनक व्यवस्था केवल राज्य ही कर सकता है. और इसीलिये राज्य के द्वारा शिक्षा पर बजट का अधिकतम प्रतिशत अंश खर्च करना सुनिश्चित करना होगा.
*अन्य लाभ-आधारित उद्यमों की तरह अधिकतम फीस उगाही करने और लाभ कमाने वाले सभी प्राइवेट स्कूलों और कॉलेजों पर पूरी तरह से प्रतिबन्ध लगाना होगा.
*श्री दीपक गर्ग जी ने निम्न सुझाव दिये हैं : —
- काम पूरा न होने के लिये दण्ड की जगह काम पूरा होने पर पुरस्कार की व्यवस्था,
-शिक्षक शिक्षा-मनोविज्ञान में निपुण हों, ताकि वे छात्र को उनके व्यवहार के अनुसार निर्देशित कर सकें.
- शतरंज तथा Puzzle-Riddle प्रतियोगिताओं को बढ़ावा देना होगा.
- शिक्षा-आरम्भ करने की न्यूनतम आयु 6 वर्ष होनी चाहिए.
- 6 वर्ष के नीचे के शिशु का खेलों द्वारा सक्रिय बना कर बौद्धिक विकास करना चाहिए. (दीपक गर्ग जी का फ़ेसबुक लिंक है - https://www.facebook.com/profile.php?id=100003497451446&fref=ufi )

मैं स्पष्तः स्वीकार करता हूँ कि मेरी अपनी शिक्षा की सीमा है. इसके चलते मेरी दृष्टि की भी सीमा हो सकती है. आप शिक्षा के मेरे इस काल्पनिक मॉडल से असहमत भी हो सकते हैं और सहमत होने की स्थिति में इनमें और भी सटीक बिन्दु जोड़ सकते हैं.

परन्तु वर्तमान जनविरोधी शिक्षा-व्यवस्था का और भी बेहतर विकल्प देने और आने वाले कल के लिये और अधिक ज़िम्मेदार नागरिक तैयार करने के मकसद को पूरा करने के कार्य-भार को प्रतीकात्मक स्तर पर ही सही अपने हाथ में लेने के अलावा हम सबके पास कोई रास्ता नहीं है. इस कल्पना को साकार करने के लिये आप तथा दूसरे सभी साथी-दोस्तों को तन-मन-धन-जन — हर स्तर पर सहयोग करना होगा.
Personality Cultivation Project व्यक्तित्व विकास परियोजना में हम अपने मुट्ठी भर साथियों और अपने सीमित संसाधनों के सहारे इसी दिशा में धीरे-धीरे ही सही एक प्रयास कर रहे हैं.

इस पुनीत दायित्व में आपकी सक्रिय भागीदारी और
सामर्थ्य भर आपसे सहायता की उम्मीद के साथ — आपका गिरिजेश (26.12.14)

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