Tuesday 31 March 2015

___सहनशील आस्तिक : मूर्ख नास्तिक___



प्रिय मित्र, जीवन-दर्शन का यह अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं विचारणीय मुद्दा है. क्रान्तिकारी धारा के लगभग सभी कार्यकर्ताओं के सामने परम्परागत दृष्टिकोण से मुक्त होने और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को आत्मसात करने की अपनी विकास-यात्रा में ऐसा एक चरण आता ही है, जब वे अपने को ऐसा आस्तिक घोषित करते हैं, जो परम्परागत रूप से सामान्य आस्तिकों से भिन्न अपेक्षाकृत अधिक आदर्शवादी अवस्थिति पर पहुँच चुका है. ऐसे में वे अपने से कम उदार आस्तिक मनोदशा के लोगों को अपने से कम समझदार महसूस करते हैं.

साथ ही एक ऐसा चरण भी इसके तुरन्त बाद आता है, जब वे अपने निकटस्थ शुभचिन्तकों, मित्रों, परिजनों, सहकर्मियों के साथ आस्तिक बनाम नास्तिक की बहस पूरे जोश से चलाते हैं और अपनी दृढ़ता को असह्य कट्टरता के चरम बिन्दु तक ले जाकर शेष सब के लिये अझेल हो जाते हैं. उनकी इस दृढ़ता के चलते उनकी अभिव्यक्ति की कटुता और आचरण की असहनशीलता तथा अव्यावहारिकता उनको असामाजिक और अलगावग्रस्त बना देती है. विकास-यात्रा का यह चरण व्यक्ति को अनेक 'नेगेटिव लेसन' से लैस करता है. इस चरण में हुई क्षति का आकलन करने का प्रयास करने वाला ही इससे उबरने के बारे में भी विचार करना आरम्भ करता है. और फिर यात्रा आगे बढ़ती है.

इसके बाद ही सन्तुलन का वह चरण आता है, जब वे मतभेदों का सम्मान करना तथा विनम्रता के साथ अपने तर्क प्रस्तुत करना सीख पाते हैं. साथ ही वे दर्शन के इस प्रश्न को जीवन-संग्राम के लिये चल रहे क्रान्तिकारी वर्ग-संघर्ष के साथ जोड़ने की कला में लचीलेपन की दक्षता भी सीखने का प्रयास करते हैं और तब जाकर ही आस्था के प्रश्न को वैयक्तिक अस्मिता से सन्नद्ध बिन्दु के रूप में देख सकने का बोध विकसित हो पाता है. इस स्तर तक का विकास हो जाने से पूर्व आस्था के प्रश्न पर वे अनेक कटु और तिक्त टक्करों में अपनी अनेक सम्भावित उपलब्धियों से चूक चुके होते हैं और अनेक अन्तरंग एवं प्रिय सम्बन्धों को प्रभावित कर चुके होते हैं.

जो अभी तक एक परम्परागत नास्तिक का मत होता रहा है, वही मेरा मत है और ज्ञान-विज्ञान के विविध क्षेत्रों में मेरे सीमित बोध के चलते वही हो भी सकता है. थोड़ा तर्क, थोड़ा विज्ञान, थोड़ा जीवन का विद्रूप यथार्थ और थोड़ा उस यथार्थ को बदल देने की अदम्य कामना.

पंकज कुमार मुझे प्रिय हैं. उनका ज्ञान मुझसे अधिक है. वह सापेक्षतः अधिक सहजता के साथ आस्था के उस बिन्दु पर दृढ़तापूर्वक खड़े हैं, जिसके चलते हमारे समाज के सामान्य-जन की परस्पर सहनशीलता तथा परम्परागत भाई-चारे की गंगा-जमुनी संस्कृति दोनों ही प्रमुख सम्प्रदायों के अतिवादियों के प्रबल प्रभाव को पराभूत करती चली आयी है और आज भी साम्प्रदायिकता के उन्माद के बार-बार जगह-जगह उबल पड़ने वाले एक-एक हमले को मुंहतोड़ टक्कर देने में सफल है.

पंकज कुमार की अवस्थिति पर खड़े अनेक ऐसे क्षमतावान व्यक्तियों में मैं तीन नामों का यहाँ उल्लेख करना समीचीन समझता हूँ क्योंकि वे उन अनेक मेधाओं का प्रतिनिधित्व करने में समर्थ हैं जिनके बिना मैं अपने जीवन-संघर्ष की कल्पना भी नहीं कर सकता.
ढेर सारे प्यार के साथ — आपका गिरिजेश

पंकज कुमार — "हसीम अमला मुसलमान ही है ना !! लम्बी दाढ़ी भी रखता है , नमाज भी पढता है , सुना है कुरान भी पढ़ रखी है उसने। काफी शांत चित्त बंदा है , अपने आदर्शों पर अटल रहने वाला। तो ऐसा कम से कम मुझे तो नहीं लगता कि धर्म इंसान को उन्मादी ही बनता है। आप पर निर्भर करता है , धर्म से आपको क्या चाहिये। अरे भाई, अपने बिहार और उत्तर प्रदेश के मित्रों को बच्चों के नैतिक शिक्षा के कहानियों में डबल मीनिंग ढूंढते देखा है , आप भी अपना मतलब निकाल रहे हैं , नास्तिक भी अपना मतलब निकाल रहे हैं जिहादी भी अपना मतलब निकाल रहा है। 

लम्बी दाढ़ियों ने धर्म का अच्छा खासा नुक्सान किया है। नुक्सान भारत के दोनों मुख्य धर्म का हुआ है , लेकिन फिर भी ये बात हिन्दू और मुस्लिम के लिए सामान रूप से सही नहीं है। यही कारण है मुस्लिम दाढ़ियाँ एक वक़्त संदेह और डर का कारण भी बनी। ऐसे में हसीम अमला ने भी ढाढी रखी और मायने बदल गए। एक ही धर्म , दो अलग अलग इंसान के लिए अलग अलग हो सकता है। 

और . . . मेरे जैसा धार्मिक भी हो सकता है जो मंदिर मस्जिद चर्च जाना पसंद नहीं करता ,सारे कुरीतियों का पुरजोर विरोध करता है। किसी संगठित धर्म में विश्वास नहीं , खुद को हिन्दू ,मुसलमान , सिख , ईसाई मानने की बाध्यता नहीं , जाति की बाध्यता नहीं। लेकिन ईश्वर में विश्वास है , वो मेरे साथ होता है , जब कोई साथ नहीं होता। 

आस्तिक और नास्तिक की गुटबंदी बेकार का काम है। जो इंसान को केवल इस आधार पर आंकते हैं कि वो आस्तिक है या नास्तिक , वो मूर्ख है। और जो इस स्थिति तक पहुँच गया है कि आस्तिकों को या नास्तिकों को ब्लॉक/अमित्र करने लगा है , वो बौद्धिक आतंकवादी बन चुका है , उसे मानसिक रूप से विक्षिप्त समझिये।
बाँकी आपकी मर्जी !!"

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