Tuesday 31 March 2015

कैसा हिन्दुस्तान बनाया ?


एक सन्देश साथी आशीष सागर जी के नाम
प्रिय मित्र, मैं आपका प्रशंसक हूँ. आपकी तस्वीरें आपकी कलम की तरह ही बुन्देलखण्ड सहित देश के दूसरे कोनों में जीवन-संघर्ष में जूझ रहे जन-मन की वेदना के बिम्ब हैं. कल आपकी यह कविता पढ़ी. इसकी पहली ही पंक्ति ने दिमाग को झनझना दिया. कल अस्त-व्यस्तता में चाहा, मगर नहीं कर सका. आज बिना आपकी पूर्व-अनुमति के ही साधिकार आपकी कलम पर कलम चलाने की जुर्रत कर बैठा. क्षमा-याचना के साथ अपने शब्द आपको स्नेह और सम्मान के साथ 'गिफ्ट' कर रहा हूँ. आशा है मुझे अन्यथा नहीं लेंगे.
ढेर सारे प्यार के साथ - आपका गिरिजेश


"पोखर को मैदान बनाया, खेतों को शमशान बनाया ;
कर्जदार क्यों बच्चा-बच्चा, क्यों बदहाल किसान बनाया !
कैसा हिन्दुस्तान बनाया ?

आंगन में दीवार उठाया, जीवन क्यों दुश्वार बनाया !
घर तोड़ा, मन-भेद बढ़ाया, भाई को अनजान बनाया;
कैसा हिन्दुस्तान बनाया ?

सबको सीमाओं में बाँधा, केवल अपना उल्लू साधा;
गाँव मिटा कर शहर बनाया, मरना क्यों आसान बनाया ?
कैसा हिन्दुस्तान बनाया ?

जादू क्यों बाज़ारों का है, बिकने को सम्मान बनाया;
खुलेआम हर दिन बिकता है, क्यों ऐसा ईमान बनाया ?
कैसा हिन्दुस्तान बनाया ?

ज़िल्लत सहता, बेदम रहता, कुछ भी कर लो, कुछ न कहता !
हारा-थका और टूटा-सा, क्यों एक-एक इन्सान बनाया ?
कैसा हिन्दुस्तान बनाया ?

जल-जमीन-जंगल का सौदा, करने नेता क्यों ललचाया,
देशी और विदेशी धनपशु, किसके दम पर है इतराया ?
कैसा हिन्दुस्तान बनाया ?

सेना से जंगल घिरवाया, आदिवासियों का पशुओं-सा
क्यों उनसे शिकार करवाया ? जंगल में बन्दूक उगाया !
कैसा हिन्दुस्तान बनाया ?"
(आशीष सागर जी की कलम के सहारे और उनके ही प्रति स-सम्मान)

सन्दर्भ - https://www.facebook.com/photo.php?fbid=1100110010014557&set=a.100451799980388.896.100000467040877&type=1

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