Tuesday 31 March 2015

___साहित्य-सृजन तथा वीभत्स-चित्रण____


____अनुवाद का एक प्रयोग___
प्रिय मित्र, भाषा केवल सम्प्रेषण का एक साधन ही तो है. मगर हमारे समाज में अंग्रेज़ी के प्रति अतिशय आग्रह और आकर्षण ने नयी पीढ़ी के कलमकारों को हिन्दी से दूर करने के कुचक्र का जाने-अनजाने साथ दिया है. मेरा प्रस्तुत लेख आपके सामने है. युवा कलमकारों से इस लेख का अंग्रेज़ी में अनुवाद करने का अनुरोध कर रहा हूँ. अगर कोई दिक्कत होगी, तो मैं आपकी इनबॉक्स मदद भी कर देने का आश्वासन देता हूँ. अगर यह प्रयोग विफल नहीं हुआ, तो हम अनुवाद के लिये कुछ और बेहतर गद्य या पद्य के अंशों को हाथ में लेंगे, ताकि आपकी भाषा पर पकड़ और मजबूत हो.
ढेर सारी शुभकामना के साथ - आपका गिरिजेश ...

___साहित्य-सृजन तथा वीभत्स-चित्रण____
अन्य विधाओं की ही तरह साहित्य-सृजन भी एक विशेष विधा का सृजन-कर्म है. यदि इसकी अपनी सीमाएँ हैं, तो इसकी अपनी उपयोगिता भी है ही. वीभत्स पक्ष जीवन का अंग है तो, किन्तु यह वह पक्ष है जिसके निवारण के प्रयास अगणित कलमकारों ने असंख्य बार अपनी-अपनी शैली में भिन्न-भिन्न देश-काल-परिस्थिति में किया है. निवारण करने तक न सफल हो पाने पर भी इसकी विद्रूपता की त्रासद अनुभूति, जो संवेदना को मथती रहती है, उसे न्यूनतम करने का प्रत्येक प्रयास अनुकरणीय रहा है और जन उस प्रयास की प्रशंसा कर-कर के मुग्ध होता रहा है.

सृजन 'स्व' का विस्तार ही होता है और रचनाकार के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का परिचायक भी. इसीलिये कलम से झूठ नहीं बोला जाता, बोला जा सकता भी नहीं. और अगर किसी के जीवन और कथन में, आचरण और अभिव्यक्ति में द्वैत शेष रह जाता है, तो सभ्यता को ढोंग करना पड़ता है. सभ्यता को इस ढोंग से बचने के लिये भी और सकारात्मक प्रेरणा का अधिकतम सम्भव सम्प्रेषण करने के लिये तो अनिवार्यतः ही जीवन-सौन्दर्य के स्वस्थ मूल्यों को बिखेरना होता है. स्वस्थ मूल्यों का विस्तार ही मानव-मुक्ति का और जीवन के विद्रूप से दो-दो हाथ कर ले जाने के हौसले का प्रेरक कारक तथा प्रमाण बनता है.

हाँ, लोक और स्व के बीच चीन की दीवार नहीं होती, हो ही नहीं सकती. दोनों परस्पर नाभिनालबद्ध होते हैं. तुलसी की 'रघुनाथ-गाथा' भी लोक-हित का कारक बन कर ही चेतना के उत्स से फूटती है. वह मात्र तुलसी तक ही सिमट कर नहीं रह सकती. लोक-हितकारी होना जीवन और जगत के स्व और पर के सकारात्मक पक्षों के साथ खड़े होना है. वहीं लोक-लुभावन होना लोक को छलने के लिये किया जाने वाला स्वांग है. अन्ततः तथ्य का बोध होने पर लोक स्वांग की भर्त्सना करता है. परन्तु वीभत्स की मार्मिक यन्त्रणा से मुक्ति के प्रयास का परिणाम और पुरस्कार ही जीवन का मूल-स्वर है और वह है आनन्द की अनुभूति.

जीवन और जगत के सौन्दर्य से उपजने वाला आनन्द सहज ही उपलब्ध हो सकता है. परन्तु मानवमात्र को उसकी गरिमा से वंचित कर देने के लिये ही अमानुषीकरण करने वाला प्रचार-साहित्य शासक वर्ग के चारणों द्वारा रचा जाता है. शोषण-उत्पीड़न-अन्याय पर टिकी वर्तमान वर्गीय समाजव्यवस्था अमानवीय, अपमानजनक और अवसादकारिणी है. निहित स्वार्थों का कुत्साप्रचार मानवीय दृष्टि को बाधित कर देने वाली धुन्ध है. और उस धुन्ध के पीछे है शासक-शोषक वर्गों का कुटिल प्रयास.

यह प्रयास जीवन के सम्मान और आनन्द को छिपाने और यन्त्रणा को उत्पीड़ित वर्ग के जीवन का मूलस्वर बना देने के लिये होता है क्योंकि तब शासक वर्गों की कुटिलता का प्रतिवाद और प्रतिरोध करने की सामर्थ्य से सामान्य-जन वंचित रह जाने के लिये अभिशप्त हो जाता है. अतएव यह प्रगतिशील और परिवर्तनकामी साहित्य की जाज्वल्यमान मशाल ही है, जिसकी ज्वाला की दीप्ति से वह धुन्ध छाँट देना सम्भव होता है. स्वस्थ बोध का विस्तार ही जन-साहित्य के सृजन का मूल प्रेरक कारक भी है. वीभत्स के चित्रण की सीमा लेखक और पाठक दोनों को ही अवसादग्रस्त कर सकती है. कलमकार द्वारा स्वयं को इस परिणति से बचने और जन को बचा लेने की कोशिश की जानी चाहिए.
सामर्थ्यवान कलमकारों से भरपूर उम्मीद के साथ — आपका गिरिजेश (23.2.15)



Babu Shandilya इतनी अंग्रेजी नहीं आती बाबा।
February 23 at 9:05pm · Unlike · 1


Girijesh Tiwari मेरी बेटी, सीखने की न कोई उम्र होती है और न ही कोई सीमा. कोशिश करो और सबसे खराब अनुवाद करने का मन बना कर कलम उठाओ. शायद कल तुम वह कर ले जा सको, जो जीवन भर हाथ-पैर चलाने के बाद भी मैं आज तक नहीं कर सका और न ही दूसरा कोई कर सका. न भूतो न भविष्यति...
February 23 at 9:10pm · Like · 1


निधि जैन सामर्थ्यवान
February 23 at 9:33pm · Unlike · 1


Girijesh Tiwari निधि जैन जी, यह शब्द 'सामर्थ्य' हमारी सीमा नहीं विकास-यात्रा के अगले चरण की सम्भावना मात्र है. और सामर्थ्य प्रयास के साथ ही विकसित होती रहती है. मेरी अपनी सीमाएँ मुझे अच्छी तरह ज्ञात हैं. मगर हम सब मिलकर ही तो सीख रहे हैं और दिन प्रतिदिन आगे और आगे बढ़ रहे हैं.
February 23 at 9:52pm · Like · 1


Pravahan Pandey Sir I will try may be wrong but I will do it
February 23 at 11:40pm · Unlike · 1


Girijesh Tiwari very good Pravahan Pandey. We must try our best to hit all of the available options.
February 24 at 9:37am · Like

Balkrishna Tripathi · 17 mutual friends
Hello sir..
Good afternoon..
Your statement is too good.
it is the best advice for learning everyone...
I agree with this..

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